Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादिका
( २३१ )
स्वच्छ अङ्गारों पर पकाकर गोलियां बनावें । इनको । इन्द्रायनके रसमें घोटकर चनेके बराबर गोलियां
बनावें ।
सेवन करनेसे आठ प्रकारके शूल नष्ट होते हैं । [ ७६४] कुमारिकावर्त्तिः
पात नष्ट होता है ।
।
(भै. र. नेत्र, बं. से., वृ. मा; च. द.) अशीतिस्तिलपुष्पाणि षष्टिः पिप्पलितण्डुलाः । जाती पुष्पाणि पश्चाशन्मरिचानि च पोडशः ॥ एषा कुमारिका वर्तिर्गत चक्षुर्निवर्तयेत् ॥
तिलके फूल ८० नग, पीपलके चावल ६० नग, चमेलीके फूल ५० नग, कालीमिर्च १६ नग इनको पीसकर बत्ती बनाकर नेत्रोंमें आंजनेसे नेत्र रोग दूर होते हैं ।
[ ७६७] कुलिकादिवटिका ( भै. र. । विष.) कुलिकं सप्तपर्ण च कुष्ठं तोलकसम्मितम् । माषम नं तथा दारु मर्दयेदर्कवारिणा || सर्षपामां वटीं कृत्वा योजयेत्पयसा सह । अपि तक्षक दष्टश्च मृतकल्पं हतखरम् ॥ पुनः संजीवयेदाशु सर्वक्ष्वेडविनाशिनी । कुलिकादिवटी हन्ति ज्वरांश्च विषमांस्तथा ॥
कुलिक ( कण्टकपाली), सतौना और कूठ १ - १ तोला, देवदारु १ भाषा, सब को आक के रसमें घोट कर सरसों के बराबर गोलियां बनावें ।
[ ७६५ ] कुमारीवटी (भै. र. । परिशि.) कुमार्यद्धिमरौप्यं हरितालं च माक्षिकम् । शतशो भावयित्वाथो गुञ्जामात्रां वटीं चरेत् ॥ धात्र्यम्भसा वटीसेयं कुमारी योजिता हरेत् । निखिलान् खायुजान् रोगान् कुर्यात्तीक्ष्णं धनञ्जयम् ॥
इन्हें दूध के साथ देने से सांप के काटने से आसन्नमृत्यु और हतस्वर (जिसका स्वर नष्ट हो गया हो ) हुवा मनुष्य भी स्वस्थ हो जाता है । यह वटी सब प्रकार के विष और विषमज्वरों का नाश करती है ।
सोनेकी भस्म, चांदीकी भस्म, शुद्ध हरताल और सोना मक्खी भस्म, बराबर बराबर लेकर घीकुमार के रसकी सैंकड़ों भावना देकर १-१ रत्ती की गोलियां बनावें ।
जलमें पीसकर इसकी नस्य देनेसे घोर सन्नि -
[ ७६८] कुष्ठादिवर्तिः (च. स. चि. अ. ३०) कर्णिन्यां वर्तिका कुष्ठपिप्पल्याकयि सैंधवैः । बस्तमूत्रकृता धार्या सर्व च श्लेष्मनुद्धितम् ॥
कर्णिनी योनिमें कूठ, पीपल, आककी कोंपल और सैंधव का बकरे के मूत्र में पीस कर बत्ती बना कर रखने से योनि शुद्ध होती है।
इन्हें आमलेके रसके साथ सेवन करनेसे स्नायुरोग और अग्निमांद्य नष्ट होता है । [ ७६६ ] कुलवटी (र. रा. सुं. । सन्नि.) शुद्धं सूतं मृतं ताम्रं मृतनागं मनःशिला । तुत्थं च तुल्यतुल्यांश दिनमेकं विमर्दयेत् ॥ द्रवैश्वोत्तरवारुण्या चणकाभां वटीं कुरु । सन्निपातं निहंत्याशु नस्यमात्रे सुदारुणम् ।। एषा कुलवटीनाम जले पिष्ट्वा प्रयोजयेत् ॥
शुद्ध पारा, ताम्र भस्म, शीशा भस्म, मनसिल
और नीलाथोथा, समान भाग लेकर १ दिन तक | एकद्वित्रिचतुः तंच तिन्दोवजस्य षट् क्रमात् ॥
इसी प्रकार अन्य कफ नाशक औषधियां और पथ्य प्रयोग करना चाहिये । [ ७६९ ] कृमिघातिनी गुटिका ( र. ग. सु. । क्रिमि.) रसगंधाजमोदानां कृमिघ्नं ब्रह्मबीजयोः ।
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