Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(२८८)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
सुहागे की खील, पीपल, शंख भस्म और | गोप्यागोप्यतः सुखेन सुलभः शुद्ध मीठा तेलिया बराबर २ लेकर ३ दिन
सर्वत्र सिद्धोऽस्त्ययम् । तक अदरक के रसमें घोटें।
| वैद्यानां कमलाविलासकरसोऽत्यंत यशस्कारकः।। __ इसे १ रत्ती की मात्रानुसार अदरक के रस
| लोह भस्म, अभ्रक भस्म, शुद्ध गन्धक, शुद्ध के साथ देनेसे पीनस, श्वास, खांसी, गलरोग,
, श्वास, खासा, गलराग, | पारद, सोने की भस्म और हीरे की भस्म समान गलग्रह, दन्तरोग, कर्णरोग, नेत्ररोग और सन्निपात
भाग लेकर घीकुमार के रसमें घोटकर गोला बनावें, का नाश होता है।
फिर उसके ऊपर अरण्ड का पक्का पत्ता लपेट कर [९६०] कफचिन्तामणि रसः
डोरे से मजबूत बांध दें और अनाज के ढेरमें (रसे. सा. सं. । कफरो.)
दबा दें। फिर तीन दिन पश्चात् निकाल कर हिंगुलेन्द्रयवं टंकं त्रैलोक्यबीजमेव च। महीन चूर्ण करलें। मरिचञ्च समं सर्व विभाग रससिन्दुरम् ॥
___इसे यथोचित मात्रानुसार शहद और त्रिफले आर्द्रकस्य रसेनैव मईयेद्याममात्रकम् ।
के काथ के साथ सेवन करनेसे जरा (बुढ़ापा) और चणकाभा वटी कार्या सर्ववातपशान्तये ॥ ।
व्याधि का नाश होकर सुख प्राप्त होता है। कफरोग निहन्त्याशु मास्करस्तिमिरं यथा ॥ शुद्ध शिंगरफ, इन्द्रजौ, सुहागेकी खील, भांग
___यह सब प्रकार के प्रमेह, पांच प्रकार की के बीज और कालीमिर्च, १-१ भाग, तथा रस
खांसी, पांडु, हिचकी, घाव, कफ, वायु, हलीमक, सिन्दूर ३ भाग लेकर १ पहर तक अद्रक के | अग्निमांद्य, खुजली, कोढ़, विसर्प, विद्रधि, मुखरोग, रसमें घोटकर चनेके बराबर गोलियां बनावें।
अपस्मार (मिरगी) आदि अनेक रोगों का नाश इनके सेवन से समस्त वात रोग और कफ रोगों का नाश होता है।
यह वैद्यों के लिए अत्यन्त यशकर और हर
| स्थान में आसानी से तैयार हो सकने वाला अत्यन्त [९६१] कमलाविलास रसः (र. र. स. । अ. २६)
गोपनीय रस है। लोहाघौ बलिस्तहाटकपविस्तुल्यं कुमारीरसे । [९६२] कम्पवातारि रसः पक्कैरण्डदलैर्निवध्य सुदृढं सद्धान्यराशौ व्यहम् ॥ (र. रा. सुं. । वा. व्या.) क्षिप्त्वोद्धृत्यविचूर्णितंमधुवरोयुक्तंयथासात्म्यतः मृतंसूतं मृतं तानं मर्दयेत्कटुकीद्रवैः । कृष्णात्रेयविनिर्मितं गदजराविध्वंसि सौख्यप्रदम् एकविंशतिवारं तच्छोष्यं पेष्यं पुनः पुनः ।। आझासिद्धमिदं रसायनवरं सर्वपमेहप्रणुद । । चणमात्रां वटीं खादेत्सर्वागकंपवातहत् ॥ कासं पञ्चविधं तथैव तनुगं पाण्डु च हिकांबणम्। रस सिन्दूर और ताम्र भस्म, बराबर २ लेप्माणं पवनं हलीमकगई हन्याच मन्दानलम् लेकर उन्हें कुटकी के रसकी २१ भावना देकर कण्डकुष्ठविसर्पविद्रधिमुखापस्मारकाचाजयेत् ।। चने के बराबर गोलियां बनावें ।
करता है।
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