Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२९२)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
इन्हें गरम पानी के साथ सेवन करनेसे ; भस्म, कस्तूरी और शुद्ध मनसिल ११-१। तोला उदरस्तोय (लूरिसी-फुफ्फुसावरणमें पानी भर जाना) | लेकर खरल करके पानी से २.२ रत्ती की गोलियां हृद्रोग, छातीके वातज रोग, छाती से खून आना | बनावें ।
और फुस्फुस (फेफड़े) के रोगों का नाश होता है। | । इन्हें दोषानुसार यथोचित अनुपान के साथ [९७१] कस्तूरीभैरवो रसः । सेवन करने से अनेक उपद्रवयुक्त क्षय, खांसी, कफ,
(र. सा. सं. । ज्व.) पित्त, बीस प्रकार के प्रमेह और अस्सी प्रकार के हिंगुलश्च विपं टंक जातीकोषफलन्तथा। वातज रोगों का अत्यन्त शीघ्र नाश होता है, तथा मरिच पिप्पली चैव कस्तूरी च समं समम् ॥ बलवीर्य की वृद्धि होती और मेटू दृढ़ होता है। रक्तिद्वयं ततः खादेत्सन्निपाते सुदारुणे ॥ इसके सेवन से कांचन के समान कान्ति और
शुद्ध शिंगरफ, शुद्ध मीठातेलिया, सुहागे की | कामदेव के समान कमनीय शरीर होता है। यह खील, जावित्री, जायफल, कालीमिर्च, पीपल | अत्यन्त वाजीकरण है। इसे प्रातः काल सेवन और कस्तूरी बराबर २ लेकर २-२ रत्ती की करना चाहिए। गोलियां बनावें। ___इनको सेवन करनेसे दारुण सन्निपात का |
[९७३] काश्चायनरसः नाश होता है।
(र. र. । र. खं. । २ उप.) [९७२] काश्चनाभ्ररसः (र. र. । राजय.)
मृतस्तसमं गन्धं काकमाच्या द्रवैदिनम् । काञ्चनं रससिन्दूरं मौक्तिकं लौहमभ्रकम् ।
मर्दितं चान्धितं पच्यात्करीपाग्नौ दिवानिशम्।। विद्रुममभयातारं कस्तूरी च मनःशिला ।।
दिव्यौषधदलद्रावर्दिनं मद्य तमन्धयेत् । प्रत्येकं बिन्दुमात्रं च सर्व मद्य प्रयत्नतः ।
ध्मातं तस्मात्समुद्धृत्य तत्तुल्यं हाटकं मृतम् ।। वारिणा वाटिका कार्या द्विगुंजाफलमानतः ।।
एकीकृत्य घृतेर्लेचं मापैकं वत्सरावधि । अनुपानं प्रयोक्तव्यं यथादोषानुसारतः।
जरी मृत्यु निहन्त्याशु सत्यं काञ्चायनो रसः॥ नानारोगप्रशमनं सर्वोपद्रवसंयुतम् ॥ काकमाचीद्रवैर्भाव्यं चूर्ण धात्रीफलोद्भवम् । क्षयं हंति तथा कासं श्लेष्मपित्तहरं तथा । मधुना भक्षयेत्कर्षमनुस्यात्क्रामक परम् ।। प्रमेहाविंशतिं चैव दोषत्रयसमुत्थितान ॥ रससिन्दूर और शुद्ध गन्धक बराबर बराबर अशीति वातजारोगानाशयेत्सद्य एव हि। लेकर १ दिन मकोय के रस में घोटकर अन्धबलवृद्धिं वीर्यवृद्धि लिंगजाडयं करोति च ॥ मूषा में बन्द करके १ दिनरात जंगली उपलों की रसोऽयं सुश्रुतप्रोक्तो वाजीकरणमुत्तमम्। | अग्नि में पकावें फिर उसे निकाल कर १ दिन काश्चनस्य समा कान्तिर्मदनस्य समं वपुः॥ | दिव्यौषधि (सोमलता) के पत्तों के रसमें घोटकर भक्षयेत्प्रातरुत्थाय रसोऽयं कांचनाभ्रकम् ॥ सुखाकर अन्धमूषा में बन्द करके पुनः पकावे ।
सोनेकी भस्म, रससिन्दूर, मोती भस्म, लोह- इसके पश्चात् उसमे समान भाग सोनेकी भस्म भस्म, अभ्रक भस्म, मूंगा भस्म, हरीतकी, चांदी | मिलाकर खरल करें।
For Private And Personal Use Only