Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रस
(२९३)
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इसे १ माशे की मात्रानुसार घीके साथ १ । रेतितं कान्तचूर्णस्य मणैकं सूक्ष्मचूर्णितम् । वर्ष पर्यन्त सेवन करने से जरा (बुढ़ापा) और त्रिफलामूत्रसंक्षुण्णं शरावेषु परिक्षिपेत् ॥ (अकाल) मृत्यु का नाश होता है।
गर्ता हस्तप्रमाणस्य वनश्छाणकैभृता । (व्यवहारिक मात्रा १-२ रत्ती) तत्र गर्भपुटं दत्त्वा ह्यग्निं प्रज्वालयेत्ततः ।।
दवा खाने के पश्चात् मकोय के रसमें घोटा खांगशीतलता प्रासं चूर्ण संपेषयेत्पुनः । हुवा १ तोला आमले का चूर्ण शहद में मिलाकर क्षुण्णं तेनैव मूत्रेण शरावे च क्षिपेत्पुटेत् ॥ चाटना चाहिये।
एकविंशतिवारांश्च देयो युक्त्यानया पुटः । [९७४] कान्तरसायनम्
सूक्ष्मं चूर्ण मुहुः कार्य मूत्रे क्षुण्णं पुटे पुटे । (र. र. स. । अ. २६) वस्त्रमृत्तिकयोपेतं गर्तागर्ने क्षिपेन्मुहुः। कातं तुल्याभ्रसत्वं चरणपरिमित हेम तत्तुल्यमकं चूर्ण कान्तायसं जातं सिन्दूरानं पयस्तरम् ।। वैकातं ताप्यरूपं कृमिहरकटुकैस्तुल्यभागैःसमेतम् गद्याणैकोऽस्य चूर्णस्य देयः सर्वेषु रोगिषु । लीढं देवद्रुतैलैविरचयति नृणां देहसिद्धिं समृद्धा उचितं यश्च रोगाणामनुपानं च दीयते ।। पथ्यं कल्पोक्तमुक्तं हरति च
अष्टवल्लात्मकं सत्वं गुडूच्यास्तावती सिता । सकलान् रोगपुंजाञ्जवेन ॥ शीतोदकेन वै देयो गद्याणः पाण्डुरोगिषु ॥ तदेतत्सर्वरोगनं रम्यं कांतरसायनम् । बलक्षीणेषु मेहेषु रक्तदोषे वरेषु च । सेव्वं वृष्यं सुपुत्रीय मांगल्यं दीपनं परम् ॥ | नाशयत्येव रोगांश्च कान्तलोहरसायनम् ॥
कान्तिसार लोह भस्म १ भाग, अभ्रक सत्व १ मन त्रिफला को १ घड़ा गोमूत्र में धीरे १ भाग, सोना भस्म, ताम्र भस्म, वैक्रान्त भस्म | धीर सात दिन तक घोटें फिर उसमें १ मन
और सोनामक्खी भस्म प्रत्येक चौथाई भाग बाय- कान्तिसार लोहे का बारीक बुरादा मिलाकर शराव बिडंग और कुटकी प्रत्येक १ भाग लेकर चूर्ण बनावें। संपुट करें । अब १ हाथ गहरे गढ़े में जंगली
इसे देवदार के तेलके साथ देनेसे देहसिद्धि | उपले भरकर मध्यमें शराव संपुट रखकर अग्नि और समृद्धि प्राप्त होती है एवं अनेक रोगों का | लगा दें। फिर स्वांग शीतल होने पर निकाल कर अत्यन्त शीव नाश हो जाता है।
उसी प्रकार गोमूत्र में घोटे हुवे त्रिफला के चूर्ण यह "कान्त रसायन" सर्वरोग नाशक अत्यु- | के साथ पुट दें। इसी प्रकार २१ पुट दें। हर बार त्तम, सेवन करने योग्य, वृष्य, पुत्रोत्पादन की | शराव संपुट पर कपड़ मिट्टी कर लेनी चाहिए। शक्ति देने वाली, मंगलकारक और अग्निदीपक है। इस प्रकार २१ पुट देने से लोह चूर्ण सिन्दूर [९७५] कान्तलोहरसायनम् | के समान लाल और दूध पर तैरने योग्य हो जायगा।
(र. चि. म. । ८ स्तब्कः) ___इसे १ गद्याण (६ माशे) की मात्रानुसार गोमूत्रभृतकुम्भेन पेषयेत् त्रिफलामणम् । यथोचित अनुपान के साथ समस्त रोगों में देन एकसप्ताहपर्यन्तं मर्दयेत्सुन्दरं शनैः ॥ चाहिए । पाण्डु में ३ माशा गिलोय के सत और
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