Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रसप्रकरणम्
(३०५)
* भिषक्।
दारुणम्।।
सर्वेभ्यस्त्रिगुणं श्यामं क्षिप्त्वा चूर्णीकृतं । हिगुलं मरिचं गन्धं सव्योषं टङ्कणं
तथा। वृषापामार्गनिर्गण्डीभगाभङगरसेन द्विगुञ्जमाईकद्रावैः सन्निपातं सदारुणम्।।
च।। कासं नानाविधं हन्ति शिरोरोगं मर्दयेहिनमेकैकं रसः कालेश्वरो भवेत्।
विनाशयेत्।। एकगुज़ द्विगुकं या बलं ज्ञात्वा
प्रयोजयेत्।।।
__शंगरफ, मरिच, गन्धक, त्रिकुटा और सुहागा
| बराबर बराबर लेकर चर्ण करें। कासं श्वासं निहन्त्याशु कफरोगं च
___इसे २ रत्ती की मात्रानुसार अदरक के रस के साथ सेवन कराने से दारुण सन्निपात, अनेक प्रकार की
खांसी और शिर के रोगों का नाश होता है। वङ्ग भस्म, लोह भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, पारद, गन्धक, सोनामक्खी भस्म, शंगरफ, कान्त | (१००८) कासकेसरी लोह भस्म, जायफल, छोटी इलायची, दाल चीनी, !
(वृ०नि० र०। कासे) केसर, मीठा तेलिया, धतूरे के बीज, जमालगोटा और सुहागा समान भाग तथा सब के वजन से ३ गुना मिर्च दरदं मरिचं मुस्तं टङ्कणं च विषं समम्। का चूर्ण लेकर १-१ दिन बासा, चिरचिटा, संभाल,
जम्बीराद्भिश्च संमई कुर्यान्मुद्गनिभा । भांग और भांगरे के रस में घोटें।
वटीम्।। इसे रोगी के बलानसार १-२ रत्ती की मात्रानसार
आर्द्रकस्वरसेनैव कासं श्वासं व्यपोहति।। सेवन कराने से खांसी, श्वास और दारुण कफ रोगों का नाश होता है।
शंगरफ, मरिच, मोथा, सुहागा और मीठा तेलिया (१००६) कासकर्तरी रसः
समान भाग लेकर जम्बीरी नीबू के रस में घोटकर मूंग
के बराबर गोलियां बनावें। (र० रा० सुं। कास०)
इन्हे अदरक के रस के साथ सेवन कराने से खांसी रसगन्धकपिप्पल्यो हरीतक्यक्षवासकम्।। और श्वास का नाश होता है। यथोत्तरं गुणं चूर्ण बब्बूलक्वाथभावितम्।। एकविंशतिवारेण शोषयित्वा विचूर्णयेत्। । (१००९) कासनाशनो रसः भक्षयेन्मधुना हन्ति कासं वै कासकर्तरी।। (र० र० स०। अ० १३)
पारा १ भाग, गन्धक २ भाग, पीपल ३ भाग, हैड़ | साकतीक्ष्णाभ्रको Sगस्त्यकासमर्दवरारसैः। ४ भाग, बहेड़ा ५ भाग और बासा ६ भाग लेकर चूर्ण | मर्दितो वेतसाम्लेन पिण्डितः करके उसे कीकर के रस की २१ भावना दें।
कासनाशनः।। इसे शहद मे साथ सेवन करने से खांसी का नाश होता है।
ताम्र भस्म, तीक्ष्णलोह भस्म और अभ्रक भस्म को
अगस्ति, कसौंदी, त्रिफला और अम्लबेत के रस की (१००७) कासकुठारः
भावना देकर गोलियां बनावें। (र० रा० सुं। कासे)
इनके सेवन से खांसी का नाश होता है।
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