Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रसप्रकरणम्
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पिष्टं तल्लेपनाद्धन्ति भक्षणाञ्च भगन्दरम् ।। शोषितं सूक्ष्मचुर्णन्तु पादांशं टकणं तथा। रसःकालाग्निनामोऽयं द्विगुजं मृत्युजिद्भवेत् ॥ टङ्कणं सवत्सनागं चूर्ण कृत्वा विमिश्रतम् ।
शुद्र पारा, शुद्ध गन्धक, सीसा भस्म, तूतिया | त्रिकटुत्रिफलावन्हिचातुर्जातकसैन्धवम् ॥ भस्म, जीरा और सेंधा नमक बराबर २ लेकर | सौवर्चलं धूमसारं चूर्णमेतत् समं समम् । कड़वी तोरी के रस में घोटें ।
कृत्वा समं सुभागैकं तत्सर्व चाकद्रवैः ।। इसे खाने और लेप करने से भगन्दरका नाश | शिग्रुजैर्मातुलुङ्गोत्थैलोलयित्वा वटीकृतम्। होता है । मात्रा २ रत्ती।
रसः कालाग्निरुद्रोयं त्रिगुजं खादयेत्सदा ।। [१०००] कालाग्निरुद्रो रसः (१)
अग्निदीप्तिकरं हिक्कावासं सर्वकृतान्तकः । (रसे. चि. म. । अ. ६) | स्थूलानां कुरुते काश्य कृशानां स्थौल्यकारकम्।। सूताम्रकान्तलौहानां भस्मगन्धकमाक्षिकम् । | अनुपानविशेषैस्तु ततोरोगेषु योजयेत । वन्यकर्कोटिकाद्रावस्तुल्यं मद्ये दिनावधि ॥ साध्यासाध्यं जयत्याशु मण्डलामात्रसंशयः॥ वन्यकर्कोटिकाकन्दे क्षिप्त्वा लिप्त्वा मृदा बहिः हीरे की भस्म १ भाग, रस सिन्दूर २ भाग, भूधराख्ये पुटे पश्चादिनकं तद्विपाचयेत् ॥ तांबे की भस्म ३ भाग, सोने की भस्म ४ भाग, रसः कालाग्निरुद्रोऽयं दशाहेन विसर्पनुत् । लोह भस्म ५ भाग, चांदी भस्म ६ भाग और पिप्पलीमधुसंयुक्तमनुपानं प्रकल्पयेत् ॥ । तीक्ष्ण लोह भस्म ७ भाग लेकर चीता, बिजौरा
रस सिन्दूर, अभ्रक भस्म, कान्त लोह भस्म, | नींबू, जम्वीरी नीबू, सहजने की जड़ और घीकुमार शुद्ध गन्धक और सोनामक्खी भस्म बराबर २ / के रस में ३-३ दिन घोटें । फिर सात दिन तक लेकर १ दिन पर्यन्त बनककोड़े के रसमें घोटें | अदरक के रसमें घोटें और सुखाकर महीन चूर्ण
और उसे उसी की (बन ककोड़े की) जड़ के भीतर करें। इसके बाद उसमें सुहागे की खील और शुद्ध भर कर ऊपर से मिट्टी का लेप करके १ दिन | मीठे तेलिये का चूर्ण प्रत्येक उससे चौथाई भाग "भूधरयन्त्र" में पकावें ।
और समान मात्रा में मिला हुवा त्रिकुटा, त्रिफला, इस रस को दश दिन तक सेवन करने से | चीता, चातुर्जात (दालचीनी, तेजपात, इलायची, विसर्प का नाश होता है।
नागकेसर) सेंधा नमक, सौंचल नमक और घरका ___अनुपान-पीपल का चूर्ण और शहद। | धुवां १-१ भाग मिलाकर अदरक, सहंजना और [१००१] कालाग्निरुद्रो रसः (२)
बिजौरे नीबू के रस में घोटकर ३-३ रत्ती की (र. रा. सुं. । श्वा.)
गोलियां बनावें।
यह अग्नि प्रदीप्त करने वाला हिचकी और वज्रसूतार्कस्वर्णायस्तारतीक्ष्णमयं क्रमात् ।
| श्वास नाशक स्थूल और कृश शरीर को समाभागवृद्धथा मृतं सर्व महसा चित्रकद्रवैः ॥
वस्था पर लाने वाला ओर अनुपान भेद से रोगों मर्दयेन्मातुलुङ्गाम्लैजबीरस्य दिनत्रयम्।
| का नाश करने वाला है। शिजले क्वाथैः कन्याक्वार्थदिनत्रयम् ॥ । इसके सेवनसे मण्डल (कुष्ठ भेद)का अवश्य आर्द्रकस्य दिनःसप्त दिवसे भावितं ततः॥ नाश होता है।
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