Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रसप्रकरणम्
(३०१)
पथ्य ---स्निग्ध (चिकने) और गरम पदार्थ । । आक के पत्तों के रस में घोटकर शरावसम्पुट कर [९९५] कालवज्रायनी रसः
के पुट लगावे । इसके पश्चात् 'चूर्ण करके उसमें (व. नि. र. । विष.)
समान भाग काली मिर्च का चूर्ण और उस सबसे पारदं गन्धाहूं तुत्थं ढङ्कणं रजनी समम् ।
चौगुना शुद्ध गन्धक मिलाकर खरल करें। देवदाल्या द्रवर्मा दिनं शुष्कं तु भक्षयेत् ।।
इसे ५ माशे की मात्रानुसार २१ दिन तक कालच त्राशनि म रसः सर्वविषापहः।
घी के साथ सेवन करने से असाध्य (कष्ट साध्य) नरमृत्रं पिबेचानु कालदष्टोऽपि जीवति ॥ | राजयक्ष्माका भी अवश्य नाश हो जाता है।
शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, शुद्ध तूतिया, सु- (व्यवहारिक मात्रा २.-४ रत्ती) हांगे की खील और हल्दी बराबर बराबर लेकर १ [९९७] कालविध्वंसनो रसः दिन तक देवदाली के रसमें घोट कर सुखा कर | (र. र. स. | अ. १९) रक्व । यह रस समस्त प्रकारके विषों का नाश कर- शुद्धसूतं हेमतारं तानं तुल्यं च मर्दयेत् । ता है। इसे आदमी के मूत्र के साथ खिलाने से जंबीरनीरसंयुक्तमातपे मर्दयेद्दिनम् । काले सर्प के काटे हुवे को भी आराम हो जाता है। सर्वतुल्यं पुनः सूतं क्षिप्त्वा पिष्टं प्रकल्पयेत् । [९९६] कालवञ्चको रसः
धत्तूरफलमध्ये तु दोलायन्त्रे व्यहं पचेत् ।। (र. रा. सु. । यक्ष्मा.)
धत्तरोत्थद्वैरेव यन्त्रं पूर्य पुनः पुनः। । मृत सूतं मृतं नागं गन्धकं तुत्थरङ्कणम् ।।
आदाय बंधयेसद्वस्त्रे इष्टिकायन्त्रगं पचेत् ॥ प्रत्येकमर्द्ध निष्कं स्यान्मृतशुल्बे द्विनिष्ककम् ।। जंबीरगंधकं पिष्ट्वा अधश्चोर्धव च दापयेत । शख निष्कद्वयं चूर्ण नवनिष्कवराटकम् । तुल्यं पुनः पुनर्देयं रुध्या लघुपटे पचेत् ॥ पूरयेत्पूर्ववच्चूण पुटयेल्लोकनाथवत् ॥ षड्गुणे गन्धके जीर्णो तत्तुल्यं मृतलोहकम् । ततस्त्वकदलद्रावैध रुध्या पुटे पचेत् ।। दत्वा मद्य दिनैकं च कण्टकार्या द्रवैदृढम् । आदाय चूर्णयेत् श्लक्ष्णं तुल्यांशमरियुतम् ।। रुध्वाथ करिषाग्निस्थकपोताख्यपुटे पयेत् । चूर्णाचतुर्गुणं गन्धनकीकृत्य विचूर्णयेत् ।। पुनर्मद्य पुनर्भाव्यं त्रिवारं पूर्वजैवैः ॥ पञ्चमापैघृतेर्लेझमसाध्यं राजयक्ष्मकम् । बृहत्युत्थद्रवैस्तद्वत् त्रिधा मर्थे पुटेत्रिधा । त्रिसप्ताहान्न सन्देहो रसोयं कालवश्चकः ॥ | वलयकेनक्तमालानां पृथग्द्रावैर्द्विधा द्विधा।
रस सिन्दूर, सीसा भस्म, शुद्ध गन्धक शुद्ध | मद्य रुध्वा पुटे तद्वद्दशांश वत्सनामकम् । तूतिया और सुहाग की खील २-२ माशे तथा | दत्वा तस्मिन्विचूाथ गुञ्जामात्र प्रयोजयेत् तांवे और शंखकी भस्म ८-८ माशा लेकर चर्ण | कालविध्वंसनो नाम रसः पाण्ड्वामयापहः । करके उसे ३६ माशा कौड़ियों में भर कर उनका | अभयाऽथ गवां मूत्रैः पिष्ट्वा चानु प्रदापयेत्।। मुख सुहागे से बन्द कर के शरावसम्पुट करके शुद्ध पारद, सोना भस्म, चांदी भस्म और पुट लगा दें। फिर स्वांग शीतल होने पर निकालकर तांबा भस्म, बराबर बराबर लेकर १ दिन पर्यन्त
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