Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रसप्रकरणम्
(३०७)
मात्रानुसार शहद में मिलाकर सेवन करना चाहिए। | सेवन करने से किलास कुष्ठ और विशेषतः दाद का
नाश होता है। (१०१४) कासारि रसः (र० रा० सुं०। कासे)
(१०१६) किरातादिमण्डूरम् अभ्रक शम्भबीजञ्च तीक्ष्णं शुल्बसमन्वितम्।
(वृ० नि० र०। पाण्डु) कासमर्दवरागस्तिवेतसाम्लैर्विमर्दयेत्।। चतुर्गजावटी हन्ति कासं पञ्चविधं किराततिक्तं सुरदारुदा- मुस्तागुडूची तथा।।
कटुकापटोलम्।
दुरालमापर्पटकं सनिम्बं कटुत्रिकं वह्निअभ्रक भस्म, रस सिन्दूर, तीक्ष्ण लोह भस्म और
फलत्रिकं च।। ताम्र भस्म बराबर बराबर लेकर कसौंदी, त्रिफला, अर्गास्त और अम्लवेत के रस में घोटकर ४-४ रत्ती की फलं विडङ्गस्यसमांशकानि सर्वैः समं गोलियां बनावें।
चूर्णमथायसं च। इन के सेवन से पांचों प्रकार की खांसी नष्ट होती है। व्यवहारिक मात्रा १-२ रत्ती।
सर्पिर्मधुम्यां वटिकाविधेया तत्रानुपानाद्भिषजा
प्रयोज्या।। (१०१५) कासीसबद्धो रसः
निहन्ति पाण्डं च हलीमकं च शोथं प्रमेहं (र० र० स०। अ० २०) |
ग्रहणीरुजं च।
श्वासं च कासं च सरक्तपित्तमस्यियोर्वोपलं रसं हि कासीसैर्युतं पञ्च गुणैः सह।
ग्रहमामवातम्।। मर्दयेद्यामपर्यन्तमर्जनस्य त्वचो रसैः।।
व्रणांश्च गुल्मान् कफविद्रधींश्च श्वित्रं च शरावसंपुटे रुध्या पुटेत्क्रोडपुटेन हि।
कुष्ठं सततप्रयोगात्।। रसः कासीसबद्धोऽयं मधुना वल्ल
तुल्यकः।।
शाणबाकुचिकायुक्तः सेवितो हन्ति
चिरायता, देवदारु, दारुहल्दी, मोथा, गिलोय, निश्चितम्।
कुटकी, पटोलपत्र, धमासा, पित्तपापड़ा, नीम की
छाल, त्रिकुटा, चीता, त्रिफला और बायबिडंग का चूर्ण त्रिभिर्मासैः किलासं हि दद्रूण्यपि
१-१ भाग तथा लोह चूर्ण सबके बराबर मिलाकर धी विशेषतः।। और शहद के साथ गोलियां बनावें।
इन्हें यथोचित अनुपान के साथ निरन्तर सेवन
करने से पाण्डु, हलीमक, सूजन, प्रमेह, ग्रहणी, श्वास, १ पल पारद और ५ पल कसीसको १ पहर तक खांसी, रक्तपित्त, बवासीर, उरुग्रह, आमवात, घाव, अर्जुन की छाल के रस में घोटकर शराब-संपुट में बन्द गुल्म, कफजविद्रधि और सफेद कोढ़ का नाश होता है। करके बराह पुट में फूकें।
इसे १ वल्ल (२-३ रत्ती) की मात्रानुसार १ शाण | (१०१७) किलासनाशनो रसः बाबची के चूर्ण के साथ शहद में मिलाकर ३ मास तक
(र० र० स०। अ० २०)
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