Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-रस
(२९५)
इस प्रयोग से वृद्ध भी युवा के समान हो | खट्टे पदार्थो से परहेज़ करें और रोज़ दूध के साथ जाता है।
सेंभलकी मूसली तथा खांड, आमला और कौंच के [९७९] कामदूतरसः
बीजों का सेवन करें। ___ (र. र. । वाजी. 1 धन्व.) ___इसके सेवन से वीर्य, बुद्धि और पुष्टि तथा सूतं गंध कान्तभस्मापि तुल्यं
कामशक्ति प्राप्त होती है। याम नीरैशाल्मलीसम्भवोत्थैः। [२८०] कामदेवरसः (१) गोलं कृत्वा वेष्टयित्यन्धमू
(र. चिं. म. । ७ स्तष्कः) राढयपक्त्वा काचकुप्यां निधाय ॥
कामदेवमथो वक्ष्ये कामिनां कामदं परम् । तोयं भूकूष्मांड नागवल्ली च
यस्य प्रभावतो रम्या रमन्ते रमणैः स्त्रियः॥ पिष्टवा दद्याद्रात्रिमेकान्तयत्नात् ।।
पारदं पलमेकं स्याद् द्विपलं शुद्धगंधकम् । सिद्धःसूतःकामदेवस्य वल्लं__ मध्वाज्याभ्यां योजयेत्तत्रिसप्तम् ।।
बटुफल्याच तोयेन विमर्च काचकूप्यके ।। खण्डं दुग्धं चानुपाने च दद्या
निक्षिप्य टङ्कणं दत्त्वा मुखं तस्य निरुध्यते । द्रात्रौ दुग्धं शक्यमाने च देयम् ।
वालुकायन्त्रमध्ये तं कूपकं कुरुते दृढम् ॥ पेयं तिक्तं रूक्षं वर्जयित्वाति
वेदयामावधि वह्नि शनैः कुर्यान्न चाधिकम् । चाम्लनित्यं शाल्मली क्षीरयुक्तम् ॥
शीतमादाय तत्रस्थं रसं समुद्धरेत्ततः॥ खण्ड धात्रीवानरीमूलदुग्धं
दरदेन समं रक्तं सोज्ज्वलं भस्म जायते । पुष्टिं वीर्य जायते तत्प्रभृतम् ।
भव्यं तच नयेच्छ्रीमघृतेन मधुना समम् ॥ कुर्यानित्यं रम्यकान्ताविनोदं
पश्चाद् दुग्धं शुभं भुक्तं कृष्णेक्षुश्चापि शर्करा। ___कृत्वा दिव्यं कामदेवं रसेन्द्रम् ॥
द्राक्षाखर्जूरमधुकं प्रातः प्रातश्च भक्षयेत् ॥ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और कान्तिसार लोह
मनोभिरामरामाभी रमतेऽक्षीणसदलः । की भस्म बराबर२ लेकर (कजली करके) १ पहर
निगुंडिकारसेनायं वातोत्थामतिवेदनाम् ।। तक सेंभल के रसमें घोटें । फ़िर उसका गोला बना
वेगेन शमयत्येव नूतनं च वपुर्भवेत् । कर उसे अन्धम्षा में बन्द करके पुट लगावें। फिर
अर्द्धशेषेण दुग्धेन भक्षितोऽयं महारसः ॥ उसे निकाल कर कांचकी शीशी में भरकर उसमें
वंध्यानामपि जायंते पुत्रकाश्चिरजीविनः । विदारीकन्द और पान का रस डालकर एक रात
उद्यानचारी च भवेचन्द्रं चन्द्रमुखीं भजेत् ॥ रहने दें।
दिव्यकायो भवेदेव मानवश्चास्य सेवनात ॥ इसे ३ रत्ती की मात्रानुसार शहद और धीमें | शुद्ध पारद ५ तोला, शुद्ध गन्धक १० तोला मिलाकर २१ दिन तक सेवन करें और दवा खाने | लेकर कजली करके सोना पाठा (या नागर मोथा) के बाद खांड युक्त दूध पियें तथा रात्री को भी | के रसमें घोट फिर उसे आतशीशीशीमें भर कर यथाशक्ति दूध पिएं एवं तिक्त, रूक्ष और अधिक | ऊपरसे सुहागा भर कर उसका मुंह बन्द कर दें
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