Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ककारादि-रस
(२९१)
R
अनुपानविशेषेण निहन्ति विविधान् गदान ।। मेध्यं रसायनवरं सकलामयानां रसःकल्पतरुर्नामा शंकरेण विनिर्मितः ।।
नाशाय यक्ष्मनिवहे कथितं हरेण ॥ ____ शुद्ध मीठा तेलिया ३ माशा, कालीमिर्च २ वज्राभ्रक की उत्तम भस्म ५ तोले लेकर उसे तोला, आकरकरा २॥ तोला, कुलिंजन १॥ तोला, | आमला, नागरमोथा, बड़ी कटेली, शतावर, ईख, जायफल २॥ तोला, जावित्री २॥ तोला और | बेल, अरनी, सुगन्धवाला, बासा, कटेली, सोनापाठा, पीपल ११ तोला लेकर विधिवत खरल करें। पाढल और बला (खैरटी) के ५-५ तोला रस में
इसे शहद के साथ ४ रत्ती की मात्रानुसार | पृथक् २ घोटकर १-१ रत्ती की गोलियां बनावें । सेवन करने से खांसी, श्वास, क्षय, कुष्ठ, संग्रहणी, इसके सेवन से यक्ष्मा, क्षय, सब प्रकार के अग्निमांद्य, वातकफज रोग और बीस प्रकार के शोष रोग, कफ, पित्त, अरुचि, बदन टूटना, शोथ, प्रमेहों का नाश होता है तथा पुष्टि, वल, वीर्य, स्वरक्षय, अजीर्ण, उदर्द, शूल, प्रमेह, ज्वर, विषउत्साह और कामशक्ति की वृद्धि होती है । यह | विकार, उरोग्रह, पांडु, हिचकी, कृशता (दुबलापन), अनुपान भेदसे अनेक रोगों का नाश करता है।। कृमि, अम्लपित्त, तिल्ली, हलीमक, रक्तगुल्म, तृष्णा, [९६९] कल्याणसुन्दरानम् आमवात, दुष्ट संग्रहणी, विस्फोटक, कुष्ठ, आंखो के (भै. र. । रा. य.)
रोग, मुख रोग और शिरोरोग, मूर्छा, वमि और वज्राश्रमेकपलिकं पुटनैःसुजीर्ण
विरसता (जायका खराब होना) आदि रोगों का धात्रीपयोदयहतीशतमूलकेक्षु ।
| नाश होता है। यह रस बलकारक, मेधावर्द्धक, बिल्वामिमन्थजलवासककण्टकारी
वीर्यवर्द्धक और अत्युत्तम रसायन है । श्योनाकपाटलिबलाचरसैरमीषाम् ।। [९७०] कल्याणसुन्दरो रसः सम्मर्दितं पलमितैः पृथगेकशश्च
(भै. र. हृदोगे.) गुञ्जासमं सुबलितं वटिकाकृतश्च । | सिन्दूरमभ्रं तारश्च तानं हेमं च हिगुलम् । यक्ष्मक्षयौ सकलशोषबलासपित्तं सर्व खल्लतले क्षिप्त्वा मर्दयेद् वन्हिवारिणा ॥
श्वासं समीरमरुचिं सकलाङ्गसादम् ॥ हस्तिशुण्डयम्भसा पश्चाद्भापयित्वा च सप्तधा। शोथं स्वरक्षयमजीर्णमुदईशूलं
गुञ्जामात्र वटीं कृत्वा कोणतोयेन दापयेत् । मेहं ज्वरं विषमुरोग्रहपाण्डुहिक्काः। | उरस्तोयश्च हृद्रोगं वक्षोयातमुरोऽस्रकम् । कार्य कृमि बलविनाशनमम्लपित्तं फौप्फुसान् हन्तिरोगाश्च रसाकल्याणसुन्दरः॥
प्लीहामयं सहहलीमकमस्रगुल्मम् ॥ | रस सिन्दूर, अभ्रक भस्म, चांदी भस्म, ताम्र तृष्णामवातनिचयं ग्रहणीं प्रदुष्टां भस्म, सोना भस्म और शुद्ध शिंगरफ। सब चीजें
विस्फोटकुष्ठनयनास्यशिरोगदांश्च । समान भाग लेकर चीते के क्वाथ में घोटें फिर मूछी वमि विरसतां विनिहन्ति सद्यः । हाथीसुंडीके रस की सात भावना देकर १-१
कल्याणसुन्दरमिदं सुवृष्यम् ॥ रती की गोलियां बनावें ।
For Private And Personal Use Only