Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(२८६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
श्लेष्मवातविकारजाठर परेस्यात्सन्निपाते ज्वरे।।। इसे १ रत्ती की मात्रानुसार बकरी के मूत्र के ___ सीसे की भस्म, शुद्ध पारा, कालीमिर्च और | साथ सेवन कराने से कफज कुष्ठ का नाश शुद्ध मीठा तेलिया समान भाग लेकर खरल | होता है । करके, देवदाली, कौंच और अकरकरेके रस की T
[९५४] कफकेतुः (भै. र. । ज्व.)
om ७-७ भावना दें।
दग्धशङ्ख त्रिकटुकं टङ्कन समभागिकम् । ___ इसे १ बल्ल (२-३ रत्ती) की मात्रानुसार
विषश्च पश्चभिस्तुल्यमार्द्रतोयेन मर्दयेत् । अदरक के रस और पानके रसके साथ सेवन कराने से, कफज और वात रोग, उदर विकार तथा
वारत्रयं रक्तिकाञ्च वटीं कुर्याद्विचक्षणः ।
प्रातःसायञ्च वटिकाद्वयमाद्रकवारिणा ॥ सन्निपातका नाश होता है।
| कफकेतुःकण्ठरोगं शिरोरोगञ्च नाशयेत् । [९५२] कफकुठाररसः
पीनसं कफसङ्घातं सन्निपातं सुदारुणम् ॥ ___ (र. रा. सुं । ज्व.)
___शंखकी भस्म, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल और पारदं गन्धकं व्योषं मृततानं मृतायसम् ।
सुहागेकी खील १-१ भाग और शुद्ध मीठा तेलिया कंटकारीफलद्रावैर्भाव्यं तद्यामयुग्मकम् ॥
५ भाग लेकर खरल करके अदरक के रस की रोहिण्यास्तु रसेनैव धत्तूरस्वरसेन च ।
| भावना देकर १-१ रत्ती की गोलियां बनावें। गुंजाद्वयं पर्णखण्डैदेयं श्लेष्मज्वरापहम् ।।
___प्रातः और सायंकाल २-२ गोली अदरक ___शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, त्रिकुटा, ताम्र भस्म
के रस के साथ सेवन करने से कंठरोग, शिरोरोग, और लोह भस्म, बराबर २ लेकर कटेली के |
पीनस, कफ और सन्निपातका नाश होता है। फल के रस, कुटकी के रस तथा धतूरे के स्वरस | में २-३ पहर तक घोटें।
____ + एक गुजराती विद्वान निम्न प्रकार इसे २ रत्ती की मात्रानुसार पान के साथ | अर्थ करते है:-सोना भस्म १ तोला, अभ्रक खिलाने से कफज ज्वर का नाश होता है।
भस्म १ तोला, पारद १ तोला लेकर तीनों
को खूब घोटें जब पारद मिल जाए तो एक [९५३] कफकुष्ठहरो रसः कढाही में तेल चुपडकर उसमें ६ तोला गन्धक (र. र. स. । अ. २०)
डालें और अग्नि पर चढादें। जब गन्धक कनकाभ्रकसंकोचस्तैलगंधकपाचितः।
पिघल जाए तो उसमें उपरोक्त चीजों का
चूर्ण और जरासा तेल डालकर थोड़ी देर विषव्योषाब्दवेल्लत्वक्तुल्यस्त्रिगुणचित्रकः॥ पकायें फिर यथाविधि पर्पटी बनाकर बारीक गुंजामानोजमूत्रेण पिण्डितः श्लेष्मकुष्ठनुत् ॥ चूर्ण करें और उसमें वछनाग, त्रिकुटा, नाग
सोना भस्म, अभ्रक भस्म, केसर (या फिट- | रमोथा, बायबिडंग और दालचीनी सब बराकरी), शुद्ध गन्धक, शुद्ध मीठातेलिया,त्रिकुटा, नागर |
बर २ लेकर चूर्ण करके पर्पटी के बराबर
मिलावें तथा चीतामूल का चूर्ण २७ तोला मोथा, बायबिडंग और दारचीनी प्रत्येक १ भाग,
मिलाकर बकरी के मूत्र में घोटकर १-१ चीता ३ भाग । सब का चूर्ण करके तेल में पकावें। रती की गोलियां बनावें ।
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