Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकर
[७५७] कारव्यादि गुटिका (यो. र. । अरु.) [७६०] कासहरीवटी (व्या. यो. सं.) कारव्यजाजिमरिचं द्राक्षावृक्षाम्लदाडिमम् । पिप्पली पिप्पलीमूलं वासा द्राक्षा हरीतकी । सौवर्चलं गुणः क्षौद्रमेषां कार्या वटी शुभा ॥ मधुना वटिका चैषा पश्चकासनिवर्हिणी ।। बदरास्थिमिता साऽऽस्ये धार्याऽरोचकनाशिनी॥ पीपल, पीपलामूल, बासा, दाख और हैड़।
कलौंजी, जीरा, काली मिर्च, दाख, इमली, | सबका समान भाग चूर्ण लेकर शहदके साथ अनारदाना, साँचल (काला नमक) गुड़ और शहद | गोलियां बनावें । इनमेंसे चूर्ण योग्य औषधियोंका चूर्ण करके फिर इनके सेवनसे पांच प्रकारकी खांसी नष्ट सबको एकत्र मिला कर बेरकी गुठलीके बराबर
| होती है। गोलियां बनावें।
[७६१] कासादिहरीवटी (व्या. यो. सं.) ___ इन्हें मुंहमें रखनेसे अरुचि दूर होती है। । भारंगी शुण्ठयतिविषा पथ्यानां मधूना वटी। [७५८] कासिमबागुटी
खादेव सायं प्रभाते च कासश्वासविनुत्तये ।। (वृ. नि. र. । संग्रह., वै. र. अशो.) भारंगी, सोंठ, अतीस और है। प्रत्येकका कार्पासमजा लशुन खर्जिकाक्षारहिंगुकम् ।। | चूर्ण बराबर लेकर शहदमें मिलाकर गोलियां बनावें। घृतेन कोलमात्रा हि गुटिकाों विनाशिनी ।।
इन्हें सुबह और शाम खानेसे खांसी और श्वासका
नाश होता है। विनौलेकी गिरी, ल्हसन, सज्जीखार और हींग।
[७६२] कासीसादिगुटी (वृ. नि. र. । मुख.) सब समान भाग लेकर पीसकर घीके साथ बेरके
कासीसं हिंगु सौराष्ट्री देवदारु समं जलैः। बराबर गोलियां बनावें । इनके सेवनसे बवासीरका नाश होता है।
| गुटिको धारयेद्धतकृमिशूलहरां पराम् ॥ [७५९] कासकर्तरीगुटिका
कसीस, हींग, फिटकरी और देवदारु बराबर
बराबर लेकर पानीसे गोलियां बनावें । (वृ. यो. त.। ७८ त.)
इन्हें दातोंमें रखनेसे दांतोंके कृमि और शूल रंगं कृष्णाभयाक्षारं रूपमार्गी क्रमोत्तरा। तत्समं खादिरं सारं बब्बूलकाथभावितम् ॥
आदिका नाश होता है। एकविंशतिवारांश्च मधुनाऽक्षमितागुटी।।
[७६३] कुबेराक्षवटी (वृ. नि. र. । शूल.) कासं श्वासं क्षयं हिका हन्त्यत्येषा कासकर्तरी ॥
कर्षेकं च कुबेराक्षं कक्कं च महौषधम् । बंगभत्म १ भाग, पीपल २ भाग, हैड़ ३ |
" सौवर्चलं च कर्षाद्ध कांधे भृष्टहिंगुकम् ॥ भाग, यवक्षार ४ भाग, बांसा ५ भाग, भारंगी ६ | राष्ट्र मूलरसनव रसानस रसन वा । भाग और खैर सार २१ भाग। सबको बबूलके
पिष्ट्वा सर्व प्रयत्नेन खछांगारे विपाचयेत् ॥ काथकी २१ भावना देकर शहदके साथ ११-१॥ | भुक्त्वा विनाशयेचैव शूलमष्टविधं तथा ॥ तोलाकी गोलियां बनावें।
लताकरञ्ज और सोंठ १।-११ तोला, काला इनके सेवनसे खांसी, श्वास, यक्ष्मा और | नमक ७॥ माषा, और भुनी हुई हींग ७॥ माषा। हिचकीका नाश होता है।
सबको सहजने या ल्हसनके रसमें घोटकर
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