Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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प्रस्थत्रयेणा लकीरस्य शुद्धस्यदत्वार्द्धतुलां गुडस्य | चूर्णीकृतैर्ग्रन्थिकजीरकस्
व्योषेभकृष्णाहपुषाजमोदैः ||
ककारादि - अवलेह
विडङ्गसिन्धुत्रिफलाय मानी पाठाग्निधान्यैश्च पलप्रमाणैः । दस्त्वात्रिवृचूर्णपलानि चाष्टावष्टौ
च तैलस्य पचेद्यथावत् ॥ तं भक्षयेदक्ष फलप्रमाणं
यथेष्टचेष्टं त्रिसुगन्धियुक्तम् । ear सर्वे ग्रहणीविकाराः सश्वासकास स्वरभेदशोथाः ॥ शाम्यन्ति चायं चिरमन्थराग्ने
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तस्य पुंस्त्वस्य च वृद्धिहेतुः । स्त्रीणां च वन्ध्यामयनाशनोऽयं
कल्याणको नाम गुडः प्रदिष्टः ॥ तैले मनाग्भर्जयन्ति त्रिवृद चिकित्सकाः । अत्रोक्तमानसाधर्म्यात् त्रिसुगन्धं पलं पृथक् ॥
आमलेका रस ६ सेर, शुद्ध गुड़ २५० तोला, तेल १ सेर और पीपलामूल, जीरा, कय, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, गजपीपल, हाऊबेर, अजमोद, बायबिडंग, सेंधानमक, हैड़, बहेड़ा, आमला, अजवायन, पाठा, चीता और धनिया प्रत्येकका चूर्ण ५-५ तोला तथा तेलमें भुना हुआ निसोत का चूर्ण ४० तोला मिलाकर पकायें। और फिर दालचीनी, तेजपात तथा इलायचीका चूर्ण ५-५ तोला मिलावें । इसे १। तोलाकी मात्रानुसार सेवन करने से संग्रहणी, श्वास, खांसी, स्वरभेद, शोध (सृजन) नपुंसकता और बंध्यत्व नाश होता है।
(बांझपन ) का
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( २३७ )
[ ७८८] कल्याणावलेह : (र. र.) सहरिद्रा वचा कुष्ठं पिप्पली विश्वभेषजम् । अजाजी चाजमोदा च यष्टीमधुकसैंधवम् ।। एतानि समभागानि श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् । तच्चूर्ण सर्पिषा लोड्य प्रत्यहं भक्षययेन्नरः ॥ एकविंशतिरात्रेण भवेच्छ्रतिधरोनरः । मेघदुंदुभिनिर्घोषो मत्तको किलनिखनः ॥ जडगद्गदकत्वं लेः कल्याणको जयेत् ॥
हल्दी, बच, कूठ, पीपल, सोंठ, जीरा, अजमोद, मुल्हैठी और सैंधा नमक । सब चीजें बराबर बराबर लेकर महीन चूर्ण करके धीमें मिला कर २१ दिन तक सेवन करने से मनुष्य श्रुतिधर (किसी बातको एक बार सुनने से ही याद कर लेने वाला) मेघ के समान गर्जन और कोकिल के समान स्वर वाला हो जाता है। एवं इससे जड़ता, गद्गदपना ( हकलाना) और मूकत्व (गूङ्गापन) नष्ट होता है। [ ७८९ ] कासकण्डनोऽवखेहः (वृ. यो. त. ७८ त.) अजामूत्रं शतपलं मन्दाग्नौ गुडपाकवत् । पक्त्वा वैभीतक चूर्ण पलद्वयमितं क्षिपेत् ॥ पलं पिप्पलिचूर्ण च पलमात्रं मृतायसम् । कण्टकारीफलरजो दद्यादत्र पलद्वयम् ।। ततो माषद्वयं खादेदृङ्कं कर्षमथापि वा । क्षौद्रेणोष्णाम्बुना वाऽपि सर्वकासात्प्रमुच्यते ॥ असाध्याभिषजात्यक्ताश्विरजाः पथ्यवर्जिताः ।
ये कासास्तेऽप्यनेनाऽऽशुप्रणश्यन्ति न संशयः ॥ कासकण्डननामाऽयं योग आत्रेय भाषितः ।
बकरीके १२॥ सेर मूत्रको मंदाग्निपर पकाकर गुड़ पाकके समान गाढ़ा करके उसमें बहेड़े का चूर्ण १० तोला, पीपलका चूर्ण ५ तोला,
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