Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
ककारादि-लेह
शृङ्गिभिरद्भुितं मधुयुतोऽवहो जयेत् ॥ सहिमकसनं कफश्वसनमम्भसा सिन्धुजम् । प्रदत्तमपि नावनं झटितिसर्वहिक्काहरम् ||
त्रिकुटा, जवासा, कायफल, कालीज़ीरी, पोखरमूल और काकड़ा सींगीके चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाने से खांसी, कफ और श्वासका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है।
|
सेंधा नमकके पानीकी नसबार लेनेसे भी सब प्रकारकी हिचकियोंका अत्यन्त शीघ्र नाश होता है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२३५)
चटाने से सब प्रकार के अतिसार और सब उपद्रव युक्त प्रवाहिका (पेचिश) का नाश होता है । इस अवलेहके समान संग्रहणी नाशक अन्य औषधि नहीं ।
[७८२] कण्टकार्यवह: (१)
(बं. से. । कासे. ग. नि. लेहा.) कण्टकार्यास्तुलां सम्यक् जलद्रोणे विपाचयेत् । पादावशेषिते तस्मिन् कल्कानेतान् प्रदापयेत् ।। दुरालभा छिन्नरुहाभाग कर्कटकाया । रास्ता मुस्तं शटी चव्यं चित्रकं त्र्यूषणं तथा ।।
वै. २.)
[७७९] कट्फलादिलेह: (च. द. ज्वरे; शा. ध. म, खं; वृ. मा, कट्फलं पौष्करं शृङ्गी कृष्णा च मधुना सह ।। पलांशानि पलान्यत्र शर्करायास्तु विंशतिः । कासश्वासज्वरहरः श्रेष्ठो लेहः कफान्तकृत् || | घृततैलपलान्यस्मिनष्टाष्टौ प्रदापयेत् ॥ कल्की कृत्य घृते शीते मधुनोऽष्टपलं क्षिपेत् । चतुःपलंपिप्पलीनां तुगाचीर्याश्चतुःपलम् । एष लेहः शमयति पश्च कासांश्चिरोत्थितान् ॥
कायफल, पोखरमूल, काकड़ासींगी और पीपलके चूर्ण को शहद में मिलाकर चटानेसे खांसी, श्वास और कफका नाश होता है। [ ७८०] कणाद्यलेह: (१) (बृ. नि. र. । ज्व.) कासे कणा कणामूलं कलिद्रुमफलं रजः । विश्वभेषजं लिह्यान्मधुना वा वृषारसम् ॥ पीपल, पीपलामूल, बहेड़ा और सोंठ का चूर्ण या बांसे का रस शहदके साथ चटानेसे खांसी
होती है।
६ | सेर कटेलीको ३२ सेर पानीमें पकाकर चौथा भाग शेष रहने पर छान लें और फिर उसमें धमासा, गिलोय, भार्गी, काकड़ासींगी, रास्ना, नागरमोथा, कपूरकचरी, चव्य, चीता, सोंठ, काली मिर्च और पीपल प्रत्येकका ५ -५ तोला कल्क तथा १ सेर खांड और १-१ सेर घी तथा तेल
[ ७८१] कणावलेहः (२) (रसे. चि. । अ. ९) डालकर पकायें एवं पाकके अन्तमें उसमें पीपल और बंसलोचनका २० - २० तोला चूर्ण और ठंडा होने पर १ सेर शहद मिलावें ।
कणानागरपाठाभिस्त्रिवर्गद्वितयेन च । बिल्वचन्दनीयेरै सर्वातीसारनुन्मतः ॥ सर्वोपद्रव संयुक्तामपि हन्ति प्रवाहीकाम् । नानेन सदृशो लेहो विद्यते ग्रहणीहरः ||
पीपल, सोंठ, पाठा, हैड़, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, चीता, बायबिड़ंग, वेल, चन्दन और सुगन्धवाला । इनके चूर्ण को शहद में मिला कर
यह अवलेह पांचों प्रकारकी पुरानी खांसीका नाश करता है 1
x ग. नि. में भारंगी, मुस्ता, शटी, चव्य के स्थानमें पीपलामूल है। तेलका अभाव है। मधु २० तोला है ।
For Private And Personal Use Only