Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत- - भैषज्य -
(२७८ )
मनसिल | सब चीज़े समान भाग लेकर स्त्री के दूध में पीसें ।
इसका अंजन करने से तिमिर, पटल, काच (मोतियाबिन्द), अर्म, शुक्र (फूला), खुजली, क्लेद (रतूबत) और अर्बुदादि नेत्र रोगों का नाश होता है । [ ९२४] करंजाद्यंजनम् (वृ. नि. र. नेत्र; वा. भ . ) करंजपद्मकिञ्जलकचन्दनोत्पलगैरिकैः । गोशकद्रससंपिष्टैर्न कान्ध्ये हितमंजनम् || करंजवा, कमल, कमलकेसर ( या कूठ ) चन्दन, नीलोफर और गेरू को गोबर के रसमें पीसकर अंजन करने से रतौंध का नाश होता है। [ ९२५] कस्तूरीकाथंजनम्
(बृ. नि. र. । सन्नि यो. र. ज्वरा . ) कस्तूरीमरिचं वाजिलाला च मधुनांजनम् । तंद्रां निवारयत्याशु व्योषं क्षिप्तं यथा नसि ॥
कस्तूरी और कालीमिर्च को घोड़े की लार में पीसकर शहद में मिलाकर अंजन करने या त्रिकुटे के चूर्ण की नस्य लेने से तन्द्रा का अत्यन्त शीघ्र
अथ ककारादि
[ ९२९] कणादि नस्यम् (बृ. नि. र. ज्व . ) कृष्णामल कसरामठदाववचाराजसर्षपरसोनैः । छागमूत्रपिष्टेनस्यश्चकादिरम् ॥
पीपल, आमला, हींग, दारु हल्दी, बच, सफ़ेद सरसों और ल्हसन को बकरी के मूत्र में पीसकर नस्य लेने से दैनिक आदि ज्वर नष्ट होते हैं। [९३०] करञ्जादि नस्यम् (वृ.नि. र. । र. का. घे. अप; यो. त. त. ३९; यो. र. ) करंजदारुसिद्धार्थकभी रामठं वचा ।
- रत्नाकर
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नाश होता है । [९२६] काश्मर्याद्यञ्जनम् (वृ. नि. र. । नेत्र यो. र. ) काश्मरी पुष्पमधुकदार्वीलोधरसांजनैः । सक्षौद्रमंजनं कुर्यात्पित्तव्याधिप्रशांतये ॥
खम्भारी के फूल, मुल्हैठी, दारूहल्दी, लोध्र और रसौत को पीसकर शहद में मिलाकर अंजन करने से पिज नेत्र रोगों का नाश होता है। [ ९२७] कृष्णांजनम् (भा. प्र. । उन्मादे) कृष्णामरिच सिन्धूत्थ मधुगोरोचनाकृतम् । अंजनं सर्वदेवादिकृतोन्मादहरं परम् ॥
पीपल, कालीमिर्च, सेंधानमक और गोरोचन को पीस कर शहद में मिलाकर अंजन करने से देवादिकों के कोप से उत्पन्न हुवा उन्माद नष्ट होता है।
[ ९२८] कृष्णांद्यजनम् (बृ. नि. र. । सन्नि. ) कृष्णामनः शिलाताल मंजनमेव तंद्रिके त्विष्टम् ।
पीपल, मनसिल और हरताल को पीसकर अंजन करनेसे तन्द्रिक सन्निपात का नाश होता है।
नस्यप्रकरणम्
समंगा त्रिफला व्योषः प्रियंगुश्च समशकः ॥ बस्तमूत्रेण संपिष्ट्वा नस्यपानांजनादिषु । योज्यो योगोयमुन्मादेऽपस्मारे भूतरोगिषु ||
करंजवा, देवदारु, सरसों, मालकंगनी, हींग, बच, मजीठ, त्रिफला, त्रिकुटा और फूलप्रियंगु, बराबर २ लेकर बकरे के मूत्र में पीसकर नस्य, पान और अंजन आदि द्वारा प्रयोग करने से उन्माद, अपस्मार और भूतव्याधि का नाश होता है।
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