Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-अवलेह
(२४१)
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[७९८] कुटजरसक्रियाः
___ औषधि के पच जाने पर बकरी के दूधके (च. सं. चि. अ. ९; भै. र; ब. से, अर्शी; | साथ शाली चावलों का भात खाना चाहिये । ग. नि. लेहा. ५)
[७९९] कुटजाष्टकः कुटजशकलम्य साध्यं पलश
(च. द. अति; हा. सं. ३ स्था. ३ अ; ग.नि. तमार्द्रस्य मेघसलिलेन ।
लेहा. ५; वृ. यो. त. त ६४; भै. र. यावत् स्यात् गतरसं तद्रव्यं
____ अति; ब. से; वृ. मा; यो. र. अति.) पूतो रसस्ततो ग्राह्यः ॥ तुलामथाद्रां गिरिमल्लिकायाः मोचरसः समङ्गःफलिनी च समांशिकैस्त्रिभिस्तैश्च संक्षुद्य पक्त्वा रसमाददीत । वत्सकबीजं तुल्यं चूर्णितमत्र प्रदातव्यम् ॥ । तस्मिन्सुपूते पलसम्मितानि पूतः कथितः स रसोदीलेपस्ततः समवतार्य श्लक्ष्णानि पिष्टा सह शाल्मलेन ।। मात्राकालोपहिता रसक्रियैषा जयति रक्तम् ।। | पाठां समङ्गातिविषां समुस्तां छागलिपयसा पीता पेथा
बिल्वं च पुष्पाणि च धातकीनाम् ।। मण्डेन वा यथाग्निबलम् ।
प्रक्षिप्य भूयो विपचेत्तु तावजीर्णौषधश्च शालीन् पयसा छागेन भुञ्जीत ॥
द्दीप्रलेपः स्वरसस्तु यावत् ॥ रक्तास्थितिसारं रक्तं सासृगुजो निहन्यात्त । |
पीतस्त्वसौ कालविदा जलेन बलवञ्च रक्तपित्तं रसक्रियैषा जयत्युभयभागम् ।।
मण्डेन वाजापयसाऽथवाऽपि ॥ कुड़ेकी गीली छालके ६। सेर टुकड़ोंको
निहन्ति सर्व त्वतिसारमुग्रम् ३२ सेर आकाश जल (बारिसका वह पानी जो
कृष्णं सितं लोहितपीतकं वा ।। भूमि पर गिरने से पूर्व ही एकत्रित कर लिया गया
दोषं ग्रहण्या विविधं च रक्तम् हो) में पकावें जब उसका रस निकल आवे (चौथा
शूलं तथाशांसि सशोणितानि । भाग शेष रह जावे) तब उसको छानकर रसको फिर पकावें और गाढ़ा होने पर उसमें मोचरस,
असृग्दरं चैवमसाध्यरूपं बाराहक्रान्ता (या मजीठ) और फूलप्रियंगुका चर्ण
नित्यवश्यं कुटजाष्टकोऽयम् ॥ बराबर तथा इन तीनोंके बराबर इन्द्रजौका कुड़ेकी ६। सेर गीली छालको कूट कर ३२ चूर्ण मिलावें।
सेर जलमें पकावें । जब चौथा भाग शेष रह जाय ___इसे काल और अग्नि बलानुसार उचित मात्रा | तो उसे उतार कर छानकर उसमें मोचरस, पाठा, में बकरी के दूध या पेया अथवा मांडके साथ | बराहक्रान्ता (या मजीठ) अतीस, नागरमोथा, बेलसेवन करनेसे रक्तार्श (खूनी बवासीर) रक्तातिसार, गिरी और धाय के फूल, इनमें से प्रत्येकका ५-५ रक्तप्रदर और ऊर्ध्व गत तथा अधोगत रक्तपित्त का तोला बारीक चूर्ण मिलाकर इतना पकावें कि गाढ़ा नाश होता है।
होकर करछलीसे लगने लगे। १. पलांश. ग. नि.
इसे बलानुसार यथोचित मात्रा से जल, मण्ड
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