Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(२६८)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
सफेद कदम्ब के कल्क से सिद्ध तैल काम में कूठ, आक, तूतियां, कायफल, मूलीके बीज, लाना चाहिए।
| कुटकी, इन्द्रजौ, नीलोफर, नागरमोथा, बडी कटेली, ___ यह प्रयोग रेवती-ग्रह-ग्रस्त बालकों के | कनेर, कसीस, पंवाड़, नीम, पाठा, धमासा, बाय
बिडंग, कड़वी तोरीके बीज, कमीला, आक, सरसों, [८८२] कुष्ठादितैलम् (३) बच और दारु हल्दी ।
(वृ. नि. र. । गुल्मरो.) ____ इनसे सिद्ध तैल कोढ़ का नाश करता है। श्वेतकुष्ठ तथा हिंगु प्रतिनिष्कद्वयं द्वयम् । कुष्ठमें इन्हीं औषधियों का लेप, मर्दन, घर्षण और क्षारं तत्रिफला चूर्ण दशमागं सुचूर्णितम् ॥ | अवचूर्णन करना चाहिए। कल्कं गोक्षीरतः पिष्ट्वा पूर्व तैलं स्नुहिप्लुतम् । ८८४] कुसुम्भतैलम् (यो. र.) । पचेतैलावशेषं तु पिबेनिष्कद्वयं द्वयम् ॥ कुसुम्भतैलं विष्टम्भि पाके च कटुकं गुरु । विरेकांते तु तक्रेण शाल्पन्नं भोजयेल्लघु।
विदाहि च विशेषेण सर्वदोषप्रकोपणम् ।। चतुर्दिनांते दातव्यमिदं तैलं न नित्यशः॥ कुसुम्भ (कैड़) का तेल विष्टम्भि, पाकमें कटु, गुल्मं जलोदरं प्लीहां शुलश्च वयथुप्रणुत् ॥ । गुरु, विदाही और सर्व दोषकोपकारक है । सफेद कूठ और हींग १०-१० माशे
[८८५] कृमिकर्णारितैलम् जवाखार और त्रिफले का चूर्ण ५०-५० माशे
(र. र. स.। अ. २४) लेकर पहिले गो दुग्ध में पीसें और फिर उसमें सेहुंड (सेंड) का दूध मिलावें। इस कल्क से तेल
अब्धिफेनो वचा शुण्ठी सैंधवं च समं समम् । सिद्ध करके रक्खें ।
समतैलार्द्रकद्रावैः पक्के तस्मिन्पलद्वये ॥ इसे ४-४ दिन के अन्तर से १०-१० । पूर्वोक्तचूर्ण कपाशं क्षिप्त्वोत्तार्य सुशीतलम् । माशे की मात्रानुसार सेवन करने से गुल्म, जलोदर, तत्तल प्रक्षिपेत्कणे ध्रुवं गोमक्षिका व्रजेत् ॥ तिल्ली, शूल और सूजन नष्ट होती है। ___ समन्दर झाग, बच, सोंठ और सेंधा नमक ___इसके सेवन से विरेचन होने के बाद तक | समान मात्रा में मिले हुवे ११ तोला । अदकका रस (छाछ) के साथ भात खाना चाहिए। १। सेर, तेल १। सेर । यथा विधि तेल पाक करें। [८८३] कुष्ठादितैलम् (४) ____इसे ठंडा करके कानमें डालने से मक्खी आदि
___(च. सं. । चि. अ. ७) कीट पतंग कानसे बाहर निकल आते हैं। कुष्ठार्कतुत्थकटुफलमूलकबीजानि रोहिणीकटुका [८८६] कृष्णाचं तैलम् (यो. र. । नेत्र.) कुटजफलोत्पलमुस्तं बृहतीकरवीरकाशीशम् ॥ कृष्णाविडङ्गमधुयष्टिकसिन्धुजन्म एडगजनिम्बपाठादुरालभाचित्रको विडंगच। विश्वौषधैः पयसि सिद्धमिदं छगल्याः । तिक्तेक्ष्वाकुबीजं कम्पिल्यर्कसर्षपवचादा: ॥ तैलं वणं तिमिरशुक्रशिरोक्षिवर्म एतैस्तैलं सिद्धं कुष्ठनं योग एष वा लेपः। पाकात्ययाञ्जयति नस्यविधौ प्रयुक्तम् ।। तन्मर्दनं घर्षणमवचूर्णनमेष एवेष्टः । पीपल, बायबिडंग, मुल्हठी, सेंधा नमक और
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