Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(२३२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
संचूर्ण्य मधुना सर्व गुटिकां कमिघातिनीम् । कर पीनेसे क्रिमियोंका नाश होता है। खादन पिपासुस्तोय च मुस्तानां कृमिशान्तये॥ [७७०] कृष्णायो मोदकः (मै, र. । श्ली.) आखुपर्णीकषायं वा प्रपिबेत् शर्करान्वितम् ॥ कृष्णाचित्रकन्दतीनां कर्षमर्द्धपलं पलम् ।
शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, | विंशतिश्च हरीतक्या गुडस्य तु पलद्वयम् ॥ अजमोद ३ भाग, बायबिडंग ४ भाग और पलास मधुना मोदकं खादञ्छलीपदं हन्ति दुस्तरम् ॥ पापड़ा (ढाकके बीज) ५ भाग तथा शुद्ध कुचला पीपल ११ तोला, चीता २॥ तोला, दन्ती ५ ६ भाग लेकर चूर्ण करके शहदसे गोलियां बनावें। तोला, हैड १। सेर, गुड १० तोला। ___इन्हें सेवन करने और प्यास लगने पर नागर यथा विधि मधुसे मोदक बनावें । इनके सेवन मोथेका पानी या चूहाकन्नी का पानी चीनी डाल से इलीपद (हाथी पग) का नाश होता है।
अथ ककारादि गुग्गुल्लप्रकरणम्। [७७१] काश्चन गुटिका गुग्गुलुः । यावच्चूर्णमिदं सर्व तावत्मात्रस्तु गुग्गुलुः ।
(भै. र. गलगण्ड.) संकुटय सर्वमेकत्र पिंडं कृत्वा च धारयेत् ॥ त्रिफलायाखयोभागा व्योषाच द्विगुणोमतः। गुटिकाः शाणिका: कार्याः तस्माचद्विगुणं ज्ञेयं कांचनारस्य वल्कलम् ॥ प्राताह्या यथोचिताः। एकीकते तु चूर्णेऽस्मिन् समो देयोऽथगुग्गुलुः। गंडमालां जयत्युग्रामपचीमर्बुदानि च ।। क्षौद्रं दशगुणं दद्यात् त्रिफलाचूर्णतो भिषक् ॥ ग्रन्थीन्त्रणांस्त्र गुल्मांश्च कुष्ठानि च भगन्दरम् । सर्वासु गण्डमालासु गलगण्डे तथैव च। प्रदेयश्चानुपानार्थ क्कायो मुंडितिकाभवः॥ नाडीव्रणेषु गण्डेषु गुटिकेयं प्रशस्यते ॥ काथः खदिरसारस्य पथ्याक्वाथोष्णकं जलम् ॥
त्रिफला ३ भाग, त्रिकूटा ६ भाग, कच- कचनारकी छाल ५० तोला, त्रिफला ३० नारकी छाल १२ भाग, गूगल २१ भाग । शहद तोला, त्रिकुटा १५ तोला, बरनेकी छाल ५ तोला, ३० भाग । चूर्ण योग्य चीज़ोंका चूर्ण करके मिला | इलायची, दालचीनी, तेजपात प्रत्येक १०-१। कर कूटें। इसके सेवनसे गण्डमाला, गलगण्ड और तोला । सबको एकत्र करके चूर्ण करें और सब घावोंका नाश होता है।
चूर्णके बराबर गूगल मिलाकर कूटें और ४-४ [७७२] काश्चनार गुग्गुलुः (वृ.नि.र.गण्डमा.) मापेकी गोलियां बनावें । काञ्चनारत्वचो ग्राह्यं पलानां दशकं बुधैः। इन्हें मुंडी, खैरसार या हैड़के काथ या गरम त्रिफलाषद्पला कार्या त्रिकटुस्यात्पलत्रयम् ॥ जलके साथ प्रातः काल सेवन करनेसे भयंकर पलैकं वरुणं कुर्यादेलात्वपत्रकं तथा । । गंडमाला, अपचि, अर्बुद, ग्रन्थि, घाव, गुल्म, कुष्ठ एकं कर्षमात्रं स्यात् सर्वाण्येकत्र चूर्णयेत् ।। और भगन्दरका नाश होता है।
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