Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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आकारादि क्वाथ
[३७८] आरग्वधादिगणः (३८१] आरोग्याम्बु (भा. प्र. म. खं)
(सु. सं. सू. अ. ३८) । पादशेषं तु यत्तोयमारोग्यांबु तदुच्यते । आरग्वधमदनगोपघोंटाकुटजपाठाकरण्टकी आरोग्याम्बु सदा पथ्यं कासश्वासकफापहम्॥ पटलाव॑न्द्रययसप्तपर्णनिम्बकुरुण्टकदासी सद्यो ज्वरहरं ग्राहि दीपनं पाचनं लघु । कुरुण्टकगुडूचीचित्रकशाष्टाकरञ्जद्वय | आनाहपांडशूलाओं गुल्मशोथोदरापहम् ।। पटोलकिराततिक्तकानि सुषवी चेति
जो जल औटाते औटाते चार भाग का एक आरग्वधादिरित्येष गणः श्लेष्मविषापहः॥ भाग अर्थात् सेरभर का पावभर शेष रहा हो उसको मेहकुष्ठज्वरवमीकण्डूनो व्रणशोधनः ॥ "आरोग्याम्बु” कहते हैं । आरोग्याम्बु-सदैव पथ्य, ___ अमलतास. मैनफल, गोपघोंटा, कुडा, पाठा, खांसी, श्वास और कफ नाशक, विशेषतः ज्वरको कटैली, पाढल, मूर्वा, इन्द्रयव, सतौना, नीम, |
नानी तत्काल हरनेवाला, मलरोधक, अग्निदीपक, पाचन कुरण्ट (पियाबांसा), दासी कुरण्ट (नीले फूल का
और हलका है एवं आनाह (अफारा) पांडुरोग, पियाबांसा) गिलोय, चीता, - शार्ङ्गष्टा, नाटा
| शूल, बवासीर, गुल्म, सुजन और उदर रोगोंको
नष्ट करता है। करंजवा, परवल, चिरायता और करेला । यह (आरग्वधादि गण) कफ, विष, प्रमेह, कोढ, ज्वर,
[३८२] आर्द्रक स्वरसः (वृ. नि. र. शोथे) वमन और कण्डु नाशक तथा ब्रण शोधक है।
आर्द्रकस्वरसः पीतः पुराणगुडमिश्रितः ।
अजाक्षीराशिनां शीघ्र सर्वशोथहरो भवेत् ॥ [३७९] आरोग्यपश्चकम् (१) (वं. से.)
____ अदरक के रस और पुराने गुड़ को मिलाकर पिप्पली पिप्पलीमूलं चव्य चित्रक नागरैः।
सेवन करने तथा बकरी का दूध पीनेसे शीघ्र ही सब दीपनीयः भृतोवर्गः कफानिलगदापहः॥
प्रकार की सूजनें नष्ट हो जाती हैं । पीपल, पीपलामूल, चव, चीता और सोठ ।। ३८३] आकादि कल्कः इनका क्वाथ दीपन पाचन और कफज तथा वातज
(भा. प्र. म. खं. ज्वरे) रोग नाशक है।
सहाईकयवक्षारौ पीत्वा कोष्णेन पारिणा । [३८०] आरोग्यपञ्चकम् (२)
नानादेशसमुद्भूतं वारिदोषमपोहति ॥ (वै. श. सिं.)
___अदरक और जवाखार का कल्क बनाकर पध्यारग्वधतिक्तात्रियदामलकेषु । किञ्चित गरम जलके साथ पीनेसे अनेक देशों के एतत्सिद्धं पाचनं सामे जीर्णज्वरे हितम् ॥ जलके पीने (पानी लगनेसे)से उत्पन्न हुए रोग दूर
हर, अमलतास,कुटकी, निसोत और आमला। | हो जाते हैं। इनका पाचन आमञ्चर तथा जीर्ण ज्वरके लिये [३८४] आर्द्रकादि कवलग्रह हितकर है।
(च. द. ज्वरे) * गोपघोंटा-विलायती कुम्हेड़ा, सुपारी भेद। आद्रेकस्वरसोपेतं सैन्धवं कटुकत्रयं । x शार्ङ्गष्ठा-काक जंघा, मकोय, चौटली। 'आकण्ठाद्धारयेदास्ये निष्ठीवेच्च पुनः पुनः॥
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