Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१३२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
(वृ. नि. र. ज्वरे)
[३७३] आम्रास्थ्यादि कषायः खुलकर हो जाते हैं, उदरका दोष निःशेष हो जाता ( वृ. नि. र. अति.)
है और भूख खूब लगती है। आम्रास्थिमध्य मालूरफलक्वाथ समाक्षिकः । [३७५] आरग्वधादि कषायः (२) शर्करासहितो हन्याच्छद्यतीसारमुल्वणम् ॥ ___ आमकी गिरीकी गुठली और बेलगिरी का | आरग्वधफलं मुस्तं यष्टीमधुकमेव च । काढा शहद और मिश्री मिला कर पीने से वमन | उशीरमभया चैव हरिद्रादारुसाह्वया ॥ भौर अतिसार का नाश होता है।
पटोलं पिचुमन्दं च ह्यमृता कटुरोहिणी । [३७४] आरग्वधादि कषायः (१) ।
एषां पीतः कषायः स्याद्वातपित्तभवे ज्वरे ।। (रसा. सा. ज्वरे )
___अमलतासका गूदा, नागरमोथा, मुलैठी, खस, विष्टम्भनिःशेषविधौ तु रोगी
हैड़, हल्दी, दारुहल्दी, पटोलपत्र, नीम की छाल, सेवेतयोगं शतशोऽनुभूतम्। गिलोय और कुटकी । इनका क्वाथ वातपित्तज आरग्वधोरोहणिकाऽर्धचन्द्रा- ज्वर के लिये हितकारी है। द्राक्षातथाहेमदलावयःस्था॥
[३७६] आरग्वधादि कषायः (३) पुष्पश्च शुष्कं शतपत्रिकायाः (च. द., वै. र., हा. सं; शा. ध. म. खं; बृ. समानि सर्वाणि तदधभूताः॥
यो. त. त. ५८ ज्वरे) सम्मूञ्छिता शर्करयासुश्रुता
आरग्वधग्रन्थिकमुस्ततिक्तापलार्द्धकल्पाकथिता प्रपेयाः॥ हरीतकीभिःक्कथितःकषायः। ज्वर के दूर होजाने पर यदि विष्टम्भ (कब्- सामे सशूले कफवातयुक्ते ज़ियत) रहे तो इस आगे लिखेहुए काढ़े को पीवे, ज्वरे हितो दीपनपाचनश्च ॥ जो मेरा सैकडों बारका अनुभूत है। अमलतास अमलतास, पीपलामूल, नागरमोथा, कुटकी का गूदा दो तोला, कुटकी दो तोला, निसोत दो और हरड । इनका क्वाथ आम और शूल युक्त सोला, मुनक्का (बीज निकाली हुई ) पांच नग, कफवातज्वर नाशक एवं दीपन पाचन है । सनाय की पत्ती दो तोला, बड़ी हरड़ की छाल दो। [३७७] आरग्वधादि कषायः (४) तोला, सुग्वे हुवे गुलाबके फूल दो तोला) ( यदि
(वृ. नि. र. बाल.) गीले हों तो चार तोला ) सब औषधियों से आधा आरग्वधः सातिविषः समुस्तगुलकन्द । इन आटोंमें से अमलतास का गूदा, स्तिक्ताकपायो ज्वरमाशु हन्यात् । दाख और गुलकन्द, इन तीन चीजों को छोड़कर | सामं सशूलं सवमि सदाहं बाकी पांचों चीजोंको कूटकर चूर्ण करले, पीछे इन | सकामलं हन्ति सरक्तपित्तम् ।। तीनों चीजोंको भी मिलाकर कल्क करले । इस अमलतास का गूदा, अतीस, नागरमोथा कल्कमें से दो ढाई तोले के अन्दाज पावभर पानीमें | और कुटकी। इनका कषाय, शूल, वमन, दाह, डालकर अधौट क्वाथ कर पीवे तो एक दो दस्त कामला और रक्तपित्त युक्त ज्वर का नाश करता है।
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