Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१५२)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
लगे तब शीतल जल देवे तथा रात्रीमें थोडी भांग । करता है। शुद्धकर घोट छानके पीवे तो यह अतिसार वालेको | [४४१] आनंदरसः (वृ. नि. र. अति.) हीतकारक होती है।
जातीफलं सैन्धवहिङ्गुलश्च [४३९] आनन्दभैरवो रसः (३)
वराटशुण्ठीविषहेमबीजम् । (भै. र, अति.)
सपिप्पलीकं वटिकां च हिङ्गुलश्च विषं व्योषं टङ्गनं गन्धक समम् । कुर्याद्गुंजाप्रमाणां जठरामयघ्नीं ॥ जम्बीररससंयुक्तं मर्दयेद्याममात्रकम् ॥ निहन्ति वातं कफशूलमात्रकासश्वासातिसारेषु ग्रहण्या सानिपातिके । मामातिसारं ग्रहणीविकारम् । अपस्मारेऽनिले मेहऽप्यजीणें वह्निमान्धके । । निहन्ति शुष्कं सितया गुञ्जामात्रः प्रदातव्यो रसो ह्यानन्दभैरवः॥ । समेतं रसोयमानंद इति प्रदिष्टः ॥ ___ शुद्ध सिंगरफ, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिकुटा, | ___ जायफल, सेंधा लवण, शुद्ध शिंगरफ, कौड़ी सुहागेकी खील और शुद्ध गन्धक सब चीजें समान | भस्म, सोंठका चूर्ण, शुद्ध मीठा तेलिया, धतूरे के भाग लेकर महीन चूर्ण करके एक पहर तक जम्बीरी | बीज और पीपल । सब चीजें समान भाग लेकर नींबू के रस में धोटें। इसे १ रत्तीकी मात्रा में सेवन | घोट कर एक एक रत्ती की गोलियां बनावें । करने से खांसी, श्वास, अतिसार, संग्रहणी, सन्नि- इनको खांडके साथ सेवन करने से उदररोग, वात, पात, अपस्मार, वातव्याधि, प्रमेह, अजीर्ण और | कफशूल, आमातिसार, संग्रहणी और मुखिया मसान मन्दाग्नि का नाश होता है।
का नाश होता है। [४४०] आनन्दभैरवो रसः (४) [४४२] आनन्दोदय रसः (भै. र. पाण्डु)
(र. रा. सुं. श्वासे.) पारदं गन्धकं लोहमभ्रकं विषमेव च । पारदं गन्धकं चैव भृङ्गराजेन मर्दयेत् ।। समांशं मरिचं चाष्टौ टङ्कणश्च चतुर्गुणम् ॥ हिङ्गुलं च विषं व्योष टङ्कणं मगधा समम् ।। | भृङ्गराज रसैः सप्त भावना चाम्लदाडिमैः । मातुलुङ्गरसर्मद्य रसमानन्दभैरवम् । गुञ्जाद्वयं पर्णखण्डे खादेत सायं निहन्ति च॥ कासे खासे क्षये गुल्मे ग्रहण्या सान्निपातिके ॥ वातश्लेष्मभवान् रोगान् मन्दाग्नि ग्रहणी ज्वरान् अपस्मारे महाघोरे शस्तमानंदभैरवम् ।। अरुचिं पाण्डुताश्चैव जयेदचिरसेवनात् ॥ ___ शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक समान भाग | नष्टमग्नि करोत्येष कालभास्करतेजसम् । लेकर कजली करके भांगरे के रस में घोटें फिर पर्वतोऽपि हि जिर्यंत प्राशनादस्य देहिनः॥ इसमें शुद्ध शिंगरफ, शुद्ध मीठा तेलिया, त्रिकुटा, गर्वनमम्लमाषश्च भक्षणादेव जीर्यति । सुहागेकी खील और पीपल । इनमें से प्रत्येक का
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, लोहभस्म, अभ्रकचूर्ण पारेकी बराबर मिलाकर बिजौरे नींबू के रस | भस्म और शुद्ध मीठातेलिया १-१ भाग, काली में खरल करें। यह खांसी, श्वास, राजयक्ष्मा, गुल्म, | मिर्च ८ भाग, सुहागेकी खील ४ भाग । प्रथम संग्रहणी, सन्निपात और घोर अपस्मार का नाश पारागन्धककी कजली बनावें फिर उसमें अन्य
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