Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-गुटिका
(२२१)
अथ ककारादि गुटिकाप्रकरणम्
[७३६] कणादिवटी (१) वटीकनकवतीनाम अनुपानं च कथ्यते ॥
(रसे. चि. म. अ. १) भल्लातत्रिफलादन्तीवदिचूर्णसमं समम् | कणावचादारुपुनर्नवानां चूर्ण सैन्धवं सर्वतुल्यं स्याद्भर्जयेत्सपरे चिरम् ।।
___सविल्वं समवृद्धदारकम् । मृद्वग्निना भवेत्सिद्धं कर्ष तत्रं पोनरः ॥ संमद्य चैतस्य निहन्ति बल्लः
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध हरताल, सेंधा___सकांजिकः श्लीपदमुग्रवेगम् ॥ नमक, कलिहारी और तुम्बी का फल, प्रत्येक ५-५
पीपल, वच, देवदारु, पुनर्नवा, बेल, प्रत्येक तोला एवं लसहन २० तोला लेकर चर्ग करके १--१ भाग बिधारा सबके बराबर लेकर चूर्ण करके एक दिन तक करेले के रस में घोट कर १-१ १-१ वल्ल (२-३ रत्ती) की गोलियां बनावें । रत्ती की गोलियां बनावें । इन्हें कांजी के साथ सेवन करने से श्लीपद का इनको सेवन करनेसे बवासीर. वातरक्त, नाश होता है।
विशेषतः कफज बवासीर का नाश होता है। [७३७] कणादिवटी (२)
___ अनुपान----भिलावा, त्रिफला, दन्ती, चीता, (वृ. नि. र. । वा. व्या.) प्रत्येक का चर्ण समान भाग और सेंधानमक का कणामूलं कणा दारु घिडंगं वहिसैन्धवम् । चण सब के बराबर लेकर मिट्टी के ठीकरे में सपुष्पा ह्यजमोदा च मरिचं समचूर्णकम् ॥ मन्दाग्नि पर बहुत समय तक भूनें। उपरोक्त गुडाचितस्य तस्याथ गुटिका एकविंशतिः।। (कनकावतीवटी) खाने के बाद ११ तोला यह चर्ण भक्षितास्तास्त्रिसप्ताहं मारुतं नन्ति सर्वतः॥ । खाकर ऊपर से तक (छाश) पियें । ___ पीपलामूल, पीपल, देवदारु, बायबिडंग, चीता, ! [७३९] कफनीवटी (व. नि. र. । कास.) . सेंधानमक, सोया, अजमोद और कालीमिर्च, सब । कर्पूरमर्यकर्ष मृगमदमपि देवकुसुमयुगम् । चीजोंका चूर्ण समान भाग लेकर गुड़ में मिला कर | मरिचं कणाक्षकुलिंजनमेकैकं शुक्तिपरिमाणम् ।। २१ गोलियां बनावें । इन्हें २१ दिन तक सेवन । दाडिमफलवल्कलपलमखिलसमं करने से समस्त प्रकार के वात विकार नष्ट होते हैं।
खदिरसारमवचूर्ण्य । [७३८] कनकावती वटी (र. र. । अर्श.) वटिका मुद्गसमाना कृता धृतास्ये कफनी स्यात् ॥ शुद्धस्तं समं गन्धं तालसिन्धुत्थलागली। कपूर ७॥ माषा, कस्तूरी ७॥ माषा, लौंग पलं तुम्बीफलैकैकं लशुनञ्च चतुष्पलम् ॥ २॥ तोला, काली मिर्च, पीपल, बहेड़ा और कुलिंकारवेल्या द्रवैमा दिनकं वटकीकृतम् । । जन प्रत्येक २।।-२॥ तोला, अनार के फलकी गुंजामात्रं सदा खादेत्पायुजश्चापि नाशयेत् ॥ | बकली (नासपाल) ५ तोला, खैरसार सब चीजों रक्तवातकफोत्थानि हशासि नाशयेद्ध्वम् । के समान लेकर मूंगके बराबर गोलियां बनावें ।
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