Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-गुटिका
(२२३)
पिष्ट्वा दुग्धेन गुञ्जका वटी दुग्धेन पाययेत् ।। परहेजके सेवन की जा सकती हैं । इनके सेवनसे दुग्धं पाने भोजने च देयं न लवणं जलम् ॥ कुष्ट, बवासीर, कामला, प्रमेह, गुल्म, उदररोग, ग्रहणी चिरकालीनां हन्ति शोथं सुदर्जयम्। | भगन्दर, संग्रहणी और पाण्डुका नाश होता तथा चिरज्वरं पांडुरोगं नाम्ना कल्पलता वटी॥ | पुंसत्व शक्ति बढ़ती है।
शुद्ध मीठा तेलिया, शुद्ध शंगरफ, धतरेके [७४६] कस्तुरिगुटिका (नपुंसकामृत) बीज, प्रत्येक १२-१२ रत्ती। अफ़ीम ३६ रत्ती। स्वणश्च मृगनाभिश्च रोप्यकाश्मीरीको तथा। सबको दूध में पीसकर १-१ रत्तीकी गोलियां बनावें। लध्वीमेलां जातिफलं तुगाक्ष. तथैव च ॥ ____ इन्हें धके साथ सेवन करने और आहार | जातिपत्रीं च संचूण्य भागवृद्धया प्रयोजयेत । पान आदिमें केवल दूध ही देनेसे और लवण तथा | अजादुग्धे च संपिश्य नागवल्लीरसे तथा ॥ जल वर्जित करनेसे पुरानी संग्रहणी, दुस्साध्य शोथ, | | दिनत्रयं विमर्याथ युग्मगुञ्जा समा वरी । पुराना ज्वर और पाण्डु नष्ट होता है। सन्तानिकायुतं भुकं रेतः क्षयनिवारणम् ।। [७४५] कल्याणगुटिका(च. सं. क. अ. ७) मधुना मेहनाशाय शैथिल्ये पर्ण संयुतम् । विडङ्गपिप्पलीमूलत्रिफलाधान्यचित्रकम् । गुटिकां भक्षयेद्धीमान् धातुसञ्जीवनी शुभाम् ॥ मरिचेन्द्रयवाजाजीपिप्पलीहस्तिपिप्पली ॥ सोना भस्म १ भाग, कस्तूरी २ भाग, चांदी लवणान्यजमोदा च चूर्णितं कार्षिक पृथक् । भस्म ३ भाग, केसर ४ भाग, छोटी इलायची ५ तिलतैलत्रिवृच्चूर्णभागी चाष्टपलोन्मितौ॥ । भाग, जायफल ६ भाग, बंसलोचन ७ भाग, धात्रीफलरसप्रस्थीस्त्रीन् गुहार्द्ध तुला तथा।
| जावित्री ८ भाग, लेकर ३-३ दिन तक बकरीके पक्त्वा मृद्वग्निना खादेद्वदरोदुम्बरोपमान् ॥
| दूध और पानके रसमें घोटकर २-२ रत्तीकी गुडान् कृत्वा न चास स्थाद्विहाराहारयन्त्रणा।
गोलियां बनावें। कुष्ठाशः कामलामेहगुल्मोदरभगन्दरम् ।।
इन्हें मलाईके साथ सेवन करनेसे शुक्रक्षय,
शहदके साथ सेवन करनेसे प्रमेह और पानमें रखग्रहणीपांडरोगांश्च हन्युःपुंसवनाश्च ते।। कल्याणका इतिख्याताः सर्वेष्वृतुषु यौगिकाः ।।
कर खानेसे शैथिल्य (सुस्ती ) नष्ट होती है। बायबिडंग,पीपलामूल, त्रिफला, धनिया, चीता,
[७४७] काकणप्रवटी (र. र. । कुष्ठे) काली मिर्च, इन्द्रजौ, जीरा, पीपल, गजपीपल, पांचों लोहभस्मविष वह्निकटुक त्रिकटुत्रयम् । नमक और अजमोद। प्रत्येकका चूर्ण ११-१॥ तुल्यांशं चूर्णित भाव्यं काथेनानेन तदिनम् ॥ तोला । तिलका तेल ४० तोला, निसोतका चूर्ग पथ्यानिंबविडंगानि खदिरं वासकामृता । ४० तोला, आमलेका रस ३ सेर और गुड़ जलेरष्टावशेषन्तु कषायं मावने हितम् ॥ २५० तोला लेकर आमलेके रसमें गुड़की चाशनी | माषमात्रं लिहेत्क्षौद्रेः काकणं हन्ति तद्वटी । बनाकर उसमें अन्य औषधियोंका चूर्ण मिलाकर इन्द्रवारुणिकामूल वागुचीत्रिफलाग्निकान् । बेर या गुलरके समान गोलियां बनावें। निम्बश्च वहिं शुण्ठीश्च मरिचं चूर्णयेत्समम् ।
यह प्रत्येक ऋतुमें बिना किसी प्रकारके | गौमूत्रैः पाययेन्कर्षमनुपानेन भक्षयेत् ।।
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