Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१८०)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
कारयेत्तेन चाभ्यङ्गं दिनानामेकविंशतिम्। [५३२] उन्मादगजाकुशः (भै. र. उन्मा.) उन्मादापस्मृति हन्ति ह्युन्मादगजकेसरी॥ | त्रिदिनं कनकद्रावैर्महाराष्ट्रीरसै पुनः। ___शुद्ध पारे को तीन दिन तक बच के काथ | विषमुष्टिद्रवैः सूतं समुत्थाप्याचक्रिकाम् ॥ में घोटें फिर उसमे शङ्ख पुष्पी के रस में ३ दिन तक कृत्वा तप्तां सगंधान्तां युक्तथा बन्धनमाचरेत् । घोटा हुआ गन्धक पारे को बराबर मिलाकर गोमूत्र | तत्समं कानकं बीजमभ्रक गन्धकं विषम् ।। में घोट कर गोला बनावें । इसे मूषा में बन्द करके | मर्दयेत्रिदिनं सर्व वल्ल मात्र प्रयोजयेत् । ऊपर ७ कपर मिट्टी कर दें और पुट लगा दें। दोषोन्मादं द्रुतं हन्ति भूतोन्मादं विशेषतः॥ जब स्वांग शीतल हो जाय तो निकाल कर चूर्ण पारे को तीन तीन दिन तक धतूरा, जल करके रक्खें।
पीपल और कुचले के रस में तिर्यपातन करें। __ इसमें से ४ बल्ल (८-१२ रत्ती) दवा | फिर उसमें समान भाग गन्धक मिलाकर समान भाग सरसों के चूर्ण में मिलाकर खाएं और उसकी टिकिया बनाकर धूप में सुखा लें पश्चात् ऊपर से पुराना घी पिवें । २१ दिन तक सरसों | उसे अग्नि में तप्त करें और फिर उसमें समान भाग के तेल की नस्य और अभ्यंग करते रहें। धतूरे के बीज, अभ्रक भस्म, शुद्ध गन्धक और शुद्ध इसके सेवन से उन्माद और अपस्मार का
मीठा तेलिया मिलाकर तीन दिन तक खरल करके नाश होता है।
रक्खें । (४ वल्ल मात्रा अधिक प्रतीत होती है) ____ इसके सेवन से दोषोन्माद और विशेषतः [५३१] उन्मादगजकेसरी रसः (२)
भूतोन्माद का अत्यन्त शीघ्र नाश होता है। मात्रा (र. रा. सुं. उन्मा.)
२-३ रत्ती। वृतं गंधं शिलातुल्यं स्वर्णबीजं विचूर्णयेत् ।
[५३३] उन्मादभञ्जनोरसः भावयेदुग्रगंधायाःक्वाथेन मुनिशःपृथक् ॥
. (र. सा. सं. उन्मा.) ब्राह्मीरसेन सप्तैत्र भावयित्वा विचूर्णयेत् ।।
| त्रिकटु त्रिफला चैव गजपिप्पलिका तथा । रसःसंजायते नून्मुन्मादगजकेसरी ॥
विडङ्गश्च देवदारु किरात कटुकी तथा ॥ अस्य मापःससर्पिष्को लीढो हन्ति हठाद्गदम् । कण्टकारा च यष्ठान्द्रय
कण्टकारी च यष्ठीन्द्रयवं चित्रकमेव च। उन्मादाख्यमपस्मारभूतोन्मादमपि ज्वरम् ॥
बला च पिप्पलीमूलं मूलश्च वीरणस्य च ॥ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध मनसिल और |
शोभाञ्जनस्य बीजानि त्रिवृता चन्द्रवारुणी। धतूरे के बीज समान भाग लेकर चूर्ण करके बच |
वंगं रूप्यमभ्रकश्च प्रवाल समभागिकम् ॥ के काथ और ब्राह्मी के रस की ७-७ भावना
सर्वचूर्णसमं लौहं सलिलेन विमईयेत् । देकर रक्वें ।
उन्मादमपि भूतोत्थमुन्मादं वानजन्तथा ॥ इसे घी के साथ १ माशे की मात्रानुसार | अपस्मारन्तथा कार्य रक्तपितं सुदारुणम् । चाटने से उन्माद, अपस्मार, भूतोन्माद और ज्वर । नाशयेदविकल्पेन रसथोन्मादमअनः॥ का नाश होता है।
त्रिकुटा, त्रिफला, गजपीपल, बायबिडंग,
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