Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-क्वाथ
(२०१) [६०४] कट्फलादि पानीयजलम् (५) । तृष्णा और वमन का नाश होता है । (भा. प्र. ज्वरे)
[६०७] कणादिक्वाथः (२) कट्फलं त्रिफला दारु चन्दनं सपरूपकम् ।। | (वृ. नि. र. चरे) कटुका पद्मकोशी विपचेत्कर्षकं जले॥
| कणामधुकमृद्वीकाबलाचन्दनसारिवाः । त्रिदोषदाहतृष्णानं पानमात्रे प्रपूजितम् । निःक्वाथ्य पयसा पीताःक्षीणज्वरविनाशनाः।। दीर्घकालज्वरार्तानामेतत्स्यादमृतोपमम् ॥ पीपल, मुल्हैठी, मुनक्का, खरैटी, चन्दन और कर्ष कदफलाा शीरान्तानां समुदितानां । सारिवा । इन्हें दूध में पका कर पीने से मन्द ज्वर जले प्रस्थमिते विपचेदर्द्धशेष पिबेत् ।
(अथवा क्षीण पुरुष का ज्वर) नष्ट होता है। कट्फलादिपानं तृष्णाया दाहे च ।
[६०८] कणादिक्वाथः (३) ___ कायफल, त्रिफला, देवदारु, चन्दन, फालसा,
(वृ. नि. र. ज्वरे) कुटकी, पनाक और खस । सब चीजें मिलाकर कणारसोनामृतवल्लिविश्वानि११ तोला लेकर १ सेर पानी में पकावें जब आधा
दिग्धिकासिंदुकभूमिनिवैः । भाग शेष रह जाय तो उतार कर छान कर रक्खें ।
समुस्तकैराचरितः कषायो ____ यह जल थोड़ा २ पीने से त्रिदोषज दाह
हिताशिनां हंति गदानिमास्तु ॥ और तृष्णा का नाश होता है। यह जल पुराने
ज्वर मरुत्कोपसमुद्भवं तथा ज्वर में अमृत के समान गुणकारी है ।
बलासजं चानलमंदतां च । [६०५] कट्फलादिः [६]
कंठावरोधं हृदयावरोधं स्वेदं (वृ. यो. त. ५९ त.)
च हिक्कां च हिमत्वमोहान् ॥ कदफलेन्द्रयवारिष्ट तिक्तामुस्तैः शृतं जलम् ।।
___पीपल, ल्हसन, गिलोय, सोंठ, कटेली, संभाल, पाचनं दशमेहि स्यात्तीने पित्तज्वरे नृणाम् ।। चिरायता और नागरमोथा । इनका क्वाथ सेवन तीव पित्तवर में दसवें रोज, कायफल,
करने और पथ्य पालन करने से वातज ज्वर, कफ इन्द्रजौ, नीम, कुटकी और नागरमोथे का पाचन
ज्वर,अग्निमांद्य,कंठावरोध, हृदयावरोध, स्वेद, हिचकी, बना कर पिलाने से ज्वर शान्त होता है।
शैत्य और मोह का नाश होता है। ६०६] कणादिक्वाथः (१) .
| [६०९] कणादिक्वाथः (४)
(वृ. नि. र. ज्वरे) कणाकरेणुजलदक्काथो मधुसितायुतः।। पीतो ज्वरातिसारस्य तृष्णावम्योश्च नाशनः ॥
कणाविश्वामृतादारुकिरातैरंडमूलकः । पीपल, गजपीपल, और नागरमोथे के क्वाथ | निंब एषांकृतःक्वाथःपित्तश्लेष्मज्वरापहः ॥ में शहद और मिश्री मिला कर पीने से ज्वरातिसार,
पीपल, सोंठ, गिलोय, देवरारु, चिरायता, १ भा. प्र. मैं नागरमोथा के स्थान पर
| अरण्डमूल और नीमकी छाल। यह क्वाथ, पित्तखील है।
श्लेष्म ज्वरका नाश करता है।
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