Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२१०)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
अथ ककारादि चूर्ण प्रकरणम् [६७०] ककुभचूर्णम् (यो. र. कासे) । पिबेत् सचूर्ण ककुभत्वचोत्थम् । काकुभ पिष्टं कृत्वा वासारसभावितं बहून् वारान्॥ हृद्रोगजीर्णज्वररक्तपित्त मधुघृतसितोपलाभिलेह्य क्षयकासरक्तपित्तहरम् । जित्वा भवेयुश्चिरजीविनस्ते ॥
अर्जुनकी छालका चूर्ण करके बासाके रसकी घृतके साथ, दूधके साथ अथवा गुड़के पानी अनेक भावना देकर शहद, घी और चीनी के साथ
के साथ अर्जुन की छाल का चूर्ण पीने से हृद्रोग, मिलाकर चाटने से क्षय, खांसी, और रक्तपित्त का
जीर्णज्वर और रक्तपित्तका नाश होता है एवं नाश होता है।
दीर्घायु प्राप्त होती है। [६७१] ककुभादिचूर्णम् (भै. र. हृद्रोगे) [६७४] कटुकादिः (यो. र. हृदोगे) ककुभत्वग्वचा रास्ता बला नागवलाभया। पिष्ट्वा वा कटुका पेया सयष्टीका सुखाम्बुना। शटीपष्करमल पिप्पली विश्वभेषजम॥ जीर्णज्वरं रक्तपितं हृद्रोगं च व्यपोहति सर्वाण्येतानि संचूर्ण्य सर्पिषा शाणमात्रया। कुटकी और मुल्हैठीको पीसकर किंचितोष्ण भक्षयेत्प्रातरुत्थाय सर्वहृद्रोगशान्तये ॥
| पानीके साथ पीनेसे जीर्णज्वर, रक्तपित्त और हृद्रो
गका नाश होता है। अर्जुनकी छाल, बच, रास्ना, खरैटी, नागबला ( गंगेरन ) हैड, कपूरकचरी, पोखरमूल, पीपल और
[६७५] कटुकी चूर्णम् (१) सोंठ । सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण करें।
(वृ. नि. र. ज्वरे। यो. चि. म. अ. ७)
| सशर्करामक्षमात्रा कटुकी चोष्णवारिणा । इसे प्रातः काल ४ माशे की मात्रानुसार |
पीत्वा ज्वरं जयेजन्तुः पित्तश्लेष्मसमुद्भवम् ।। सेवन करनेसे सब प्रकारके हृद्रोग नष्ट होता है।
१। तोला प्रमाण कुटकीका चूर्ण खांड और [६७२] ककुभायं चूर्णम् (१)
गरम पानीके साथ सेवन करनेसे पितकफचर (वृ. नि. र. क्षय.)
| नष्ट होता है। ककुभत्वङ्नागबलाधात्रीवातारिबीजानाम् । [६७६] कटुकी चूर्णम् (२) चूर्ण मधुघृतयुक्तं सशिवं यक्ष्मादिकासहरम् ।। (वृ. नि. र । बालरोग.) ___ अर्जुन की छाल, नागबला (गंगेरन ), | चूर्णकटुकरोहिण्या मधुना सहयोजयेत् । आमला, अरण्ड के बीज और सुहागेकी खील । | हिक्कां प्रशमयेत्क्षिप्रं छर्दिश्चापि चिरोत्थिताम् ॥ सब समान भाग लेकर चूर्ण कर के रक्खें। कुटकी का चूर्ण शहद के साथ चाटने से
इसे शहद और धी के साथ सेवन करने से | पुरानी हिक्का (हिचकी ) और छर्दि (वमन) यक्ष्मा और खांसी आदिका नाश होता है। का नाश होता है। [६७३] ककुभायं चूर्णम् (२) [६७७] कटुत्रिकादि (वृ. नि. र. कासे) (यो. र. हृद्रोगे)
कटुत्रिकं च चूर्णित गुडेन सर्पिषा युतम् । घृतेन दुग्धे गुडाम्भसावा
निहन्ति कास दरं निषेवणं निरंतरम् ।।
For Private And Personal Use Only