Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य रत्नाकर
कलिंगरोहिणीनिशाकटुत्रिकेभकेसरम् । [७०१] काकजङ्घादिः (वृ. नि. र. । स्त्री. रो.) विचूर्णित कफज्वरं निहंति कोष्णवारिणा।। काकजानुकमूलं वा मूलं कार्पासमेव च ।
इन्द्रजौ, कुटकी, हल्दी, त्रिकुटा और नाग- पांडुप्रदरशांत्यर्थ पिबेत्तंदुलवारिणा ॥ केसर । इन का चूर्ण बनाकर किञ्चितोष्ण (गुनगुने) । काकजंघा अथवा कपास की जड़ को पीस पानी के साथ सेवन करने से कफज ज्वर का | कर चावलों के पानी के साथ पीने से पांड्ड और नाश होता है।
प्रदर का नाश होता है। [६९९] कल्याणकं चूर्णम्(यो. र. । अपस्मा.) [७०२] कामदेववृणम् [नपुंसकामृत पञ्चकोलं समरिचं त्रिफला बिदसैन्धवम् । । पानी पिलं पिकला कृष्णाबिडङ्गपूतीकयवानीधान्यजीरकम् ॥
पलं नागबलाबीजं पलमेकं शतावरी ॥ पीतमुष्णाम्बुना चूर्ण वातश्लेष्मामयापहम् ।
विहारकंदचूर्णस्य पलद्वयमथापि वा । अपस्मारे तथोन्मादे दुर्नामग्रहणीगदे ॥
पलं त्रपुषबीजश्च वाजिगन्धा पलत्रयम् ॥ एतत्कल्याणकं चूर्ण नष्टस्याग्रेश्च दीपनम् ॥
वासा च तालमूली च गुडूची रक्तचन्दनम् । पंचकोल (पीपल, पीपलामूल, चव, चीता
त्रिसुगन्धी कणाधात्री लवंगं नागकेसरम् ॥ और सोंठ) कालि मिर्च, त्रिफला, बिड्लवण, सेंधा
एतानि कर्षमात्राणि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । नमक, पीपल, बायबिडंग, नाटाकरंजवा, अजवायन, धनिया और जीरा । सब चीजें समान भाग
बलाशाल्मलिमूलश्च भवेदेकैका विंशतिः॥ लेकर चूर्ण बनावें ।
कुशकाशशिफासप्त शर्करा सप्तयोजितम् । इसे गरम पानीके साथ पीनेसे वातज और
दुष्टशुक्रं वीर्यहानि मूत्रकृच्छ्राणी यानि च ॥ कफज रोग, मिरगी, उन्माद, बवासीर, संग्रहणी
मूत्राघातं मूत्रदोषाञ्जयेच्छुकविवर्द्धनम् । और अग्निमांद्यका नाश होता है।
दशकं गच्छति स्त्रीणां हयतुल्यपराक्रमः ।। [७००] कल्याणलवणम्(वृ. नि. र. संग्रह) कामदेवाभिधं चूर्ण धन्वन्तरिनिरूपितम् ॥ मल्लातकानि त्रिफलादन्तीचित्रकमेव च ।
गोखरू ५ तोला, कौंचके बीज १० तोला, समभागानि सर्वाणि सैंधवं द्विगुणं भवेत् ॥ |
नागबला (गंगेरन)के बीज और शतावर ५-५ तोला, कपालपुटसंपर्क मृदुना गोमयामिना।
विदारीकन्द का चूर्ण १० तोला, खीरे के बीज ५ कल्याण नामलवण श्रेष्ठमशोविकारिणाम् ॥ |
तोला, आसगन्ध १५ तोला । वासा, तालमूली भिलावे, त्रिफला, दन्ती, चीता प्रत्येक १-१
(मूसली) गिलोय, लाल चन्दन, त्रिसुगन्धी (दालभाग और सेंधा नमक २ भाग लेकर सब को
चीनी, इलायची, तेजपात) पीपल, आमला, लौंग, एकत्र कर शरावसंपुट करके कण्डों [उपलों की
नागकेशर, प्रत्येक ११-१। तोला खरैटी और मन्दाग्निमें भस्म करें।
सेंभल की मूसली ११-१। सेर, कुश और कांसकी __ यह (कल्याण लवण) बवासीर के लिये / जड़ तथा खांड ३५-३५ तोला लेकर चूर्ण बनावें। उत्तम गुणकारी है।
इसके सेवन से वीर्य के दोष, वीर्यपात,
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