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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भारत-भैषज्य रत्नाकर कलिंगरोहिणीनिशाकटुत्रिकेभकेसरम् । [७०१] काकजङ्घादिः (वृ. नि. र. । स्त्री. रो.) विचूर्णित कफज्वरं निहंति कोष्णवारिणा।। काकजानुकमूलं वा मूलं कार्पासमेव च । इन्द्रजौ, कुटकी, हल्दी, त्रिकुटा और नाग- पांडुप्रदरशांत्यर्थ पिबेत्तंदुलवारिणा ॥ केसर । इन का चूर्ण बनाकर किञ्चितोष्ण (गुनगुने) । काकजंघा अथवा कपास की जड़ को पीस पानी के साथ सेवन करने से कफज ज्वर का | कर चावलों के पानी के साथ पीने से पांड्ड और नाश होता है। प्रदर का नाश होता है। [६९९] कल्याणकं चूर्णम्(यो. र. । अपस्मा.) [७०२] कामदेववृणम् [नपुंसकामृत पञ्चकोलं समरिचं त्रिफला बिदसैन्धवम् । । पानी पिलं पिकला कृष्णाबिडङ्गपूतीकयवानीधान्यजीरकम् ॥ पलं नागबलाबीजं पलमेकं शतावरी ॥ पीतमुष्णाम्बुना चूर्ण वातश्लेष्मामयापहम् । विहारकंदचूर्णस्य पलद्वयमथापि वा । अपस्मारे तथोन्मादे दुर्नामग्रहणीगदे ॥ पलं त्रपुषबीजश्च वाजिगन्धा पलत्रयम् ॥ एतत्कल्याणकं चूर्ण नष्टस्याग्रेश्च दीपनम् ॥ वासा च तालमूली च गुडूची रक्तचन्दनम् । पंचकोल (पीपल, पीपलामूल, चव, चीता त्रिसुगन्धी कणाधात्री लवंगं नागकेसरम् ॥ और सोंठ) कालि मिर्च, त्रिफला, बिड्लवण, सेंधा एतानि कर्षमात्राणि सूक्ष्मचूर्णानि कारयेत् । नमक, पीपल, बायबिडंग, नाटाकरंजवा, अजवायन, धनिया और जीरा । सब चीजें समान भाग बलाशाल्मलिमूलश्च भवेदेकैका विंशतिः॥ लेकर चूर्ण बनावें । कुशकाशशिफासप्त शर्करा सप्तयोजितम् । इसे गरम पानीके साथ पीनेसे वातज और दुष्टशुक्रं वीर्यहानि मूत्रकृच्छ्राणी यानि च ॥ कफज रोग, मिरगी, उन्माद, बवासीर, संग्रहणी मूत्राघातं मूत्रदोषाञ्जयेच्छुकविवर्द्धनम् । और अग्निमांद्यका नाश होता है। दशकं गच्छति स्त्रीणां हयतुल्यपराक्रमः ।। [७००] कल्याणलवणम्(वृ. नि. र. संग्रह) कामदेवाभिधं चूर्ण धन्वन्तरिनिरूपितम् ॥ मल्लातकानि त्रिफलादन्तीचित्रकमेव च । गोखरू ५ तोला, कौंचके बीज १० तोला, समभागानि सर्वाणि सैंधवं द्विगुणं भवेत् ॥ | नागबला (गंगेरन)के बीज और शतावर ५-५ तोला, कपालपुटसंपर्क मृदुना गोमयामिना। विदारीकन्द का चूर्ण १० तोला, खीरे के बीज ५ कल्याण नामलवण श्रेष्ठमशोविकारिणाम् ॥ | तोला, आसगन्ध १५ तोला । वासा, तालमूली भिलावे, त्रिफला, दन्ती, चीता प्रत्येक १-१ (मूसली) गिलोय, लाल चन्दन, त्रिसुगन्धी (दालभाग और सेंधा नमक २ भाग लेकर सब को चीनी, इलायची, तेजपात) पीपल, आमला, लौंग, एकत्र कर शरावसंपुट करके कण्डों [उपलों की नागकेशर, प्रत्येक ११-१। तोला खरैटी और मन्दाग्निमें भस्म करें। सेंभल की मूसली ११-१। सेर, कुश और कांसकी __ यह (कल्याण लवण) बवासीर के लिये / जड़ तथा खांड ३५-३५ तोला लेकर चूर्ण बनावें। उत्तम गुणकारी है। इसके सेवन से वीर्य के दोष, वीर्यपात, For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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