Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि-चूर्ण
(२१३)
साथ पीनेसे खूनी बवासीरके मस्से गिर जाते हैं। पीतमुष्णांमसा चूर्ण मूत्ररोध निवारयेत् ॥ [६९२] करञ्जबीजादिः (यो. र. छर्दि.) ककड़ी के बीज, सेंधा नमक और त्रिफला। ईषद्धृष्ट करञ्जस्य बीजं खण्डीकृतं पुनः। सब चीज़े समान भाग लेकर चूर्ण करके गरम महर्मुहुरो भुक्त्वा छर्दि जयति दुस्तराम् ॥ पानी के साथ पीने से मूत्रावरोध (पेशाब बन्द होना)
करंजवे की गिरी को कुछ भून कर ट्रकड़े | नष्ट होता है। टुकड़े करके बार बार खाने से दुस्साध्य छर्दि भी | [६९६] कर्कोटकाद्युद्वर्तनम् नष्ट हो जाती है।
_ (वृ. नि. र. सन्नि.) [६९३] करजादिपुटपाकः
कर्कोटिकाकंदरजाकुलित्था(वृ. नि. र. गुल्मे.)
__कृष्णावचाकट्फलकृष्णजीरैः । करञ्जवटपत्राणि चव्यं वहिः कटुत्रयम् । किराततिक्तानिकटवलाबु इन्द्रवारुणिकामूलं पुटे पाच्यं ससैन्धवम् ॥ पथ्याभिरुद्वर्तनमत्र शस्तम् ॥ तद्पक्कं वारिणा पीतं पलार्द्ध मधुनापि वा । (शीतांग सन्निपात में) ककोड़े की जड़, हंति गुल्मोदरं पाण्डु द्वन्दजं श्वय) तथा ।। | कुलथी, पीपल, बच, कायफल, काला जीरा, चिरा
___ करंजवेके पत्ते, बड़के पत्ते, चव, चीता, | यता, चीता, कड़वी तोरी और हैड़ । इनका चर्ण त्रिकुटा, इन्द्रायन की जड़ और सेंधा नमक, इन्हें | करके शरीर पर मालिश करना चाहिये। पुट पाक करके चूर्ण बनावें ।
[६९७] कर्पूराद्यं चूर्णम् इस चूर्णको २॥ तोलेकी मात्रानुसार जल के (यो. र. । कासे; व. से । राजय.) साथ अथवा शहद के साथ पीने से गुल्म, उदर कपूरचोचककोलजातीफलदलाः समाः। रोग, पांडु और द्वंदज शोथ का नाश होता है। लवङ्गमांसीमरिचकृष्णाशुण्ठीविवद्धिताः। [६९४] करादि शीर्षरेचनम् चूर्ण सितासमं ग्राह्यं रोचनं क्षयकासजित् । (वृ. नि. र. । शिगे.)
वैस्वर्यश्वासगुल्मार्शच्छर्दिकण्ठामयापहम् ।। करञ्जशिशु बीजानि पत्रकं सर्षपत्वचः।। प्रयुक्तं चानपानेषु भिषजा रोगिणां हितम् ॥ सर्वेषां शीर्षरोगणामेतच्छीर्षविरेचनम् ॥ ___ कपूर, चोच, (दाल चीनी भेद) कंकोल, जाय___ करंजवे के बीज, सौंजने के बीज, तेजपात, | फल, पतरज प्रत्येक १-१ भाग । लौंग १ भाग, सरसों और दालचीनी, सब चीजें समान भाग जटामांसी २ भाग, काली मिर्च ३ भाग, पीपल ४ लेकर चर्ण करें।
भाग, सोंठ ५ भाग और खांड सब के बराबर । ___इसकी नसवार लेने (सूंघने) से शिरोविरेचन यथा विधि चूर्ण तैयार करें। होकर समस्त शिरोरोग नष्ट होते हैं ।
इसे सेवन करने और पथ्य पालन करने से [६९५] कर्कटीवीजादि चूर्णम् अरुचि, क्षय, खांसी, स्वरभंग, श्वास, गुल्म,
(बृ. नि. र. । मूत्रा.) बवासीर, वमन और कंठरोग नष्ट होते हैं। कर्कटीवीजसिंधूत्थत्रिफलासमभागिकम् । [६९८] कलिंगादि चूर्णम्(वृ. नि. र. । ज्वरे)
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