Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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ककारादि क्वाथ
मिर्च, कायफल, नागरमोथा, अतीस, आमला, पोखरमूल, चीता, काकडासिंगी और बासा इनका क्वाथ पीनेसे कंठकुब्ज सन्निपातका नाश होता है। [६४८] किरातादिक्वाथः (५) (च.द. ज्वरे) चिरज्वरे वातकफोल्वणे वा - त्रिदोषजे वा दशमूलमिश्रः । किराततिक्तादिगणः प्रयोज्यः शुद्धयर्थिनेवात्रिवृत्ताविमिश्रः ॥ पुराने बुखार, वातकफज्वर और सन्निपात ज्वर की शान्तिके लिये दशमूलयुक्त “किराततितादि गण" * का क्वाथ सेवन करना चाहिये । यदि शोधनकी इच्छा हो तो उसीमें निसोत मिला लेनी चाहिये ।
[ ६४९] किरातादिक्वाथः (६) (बृ. नि. र. ज्वरे) किरातान्दामृताविश्व चंदनोशीश्वत्सकैः । शोथातिसारशमनं विशेषाज्ज्वरनाशनम् ॥
चिरायता, नागरमोथा, गिलोय, सोंठ, चन्दन, खस और इंद्रजौ । इनका क्वाथ शोथ और अतिसार नाशक विशेषतः ज्वर नाशक है । [६५०] किरातादि कषाय: (७) (बृ. नि. र. ज्वरे ) किरातामृतधन्याक चन्दनोशीरपर्पटैः ।
॥
कैः कृतः काथो हन्ति पित्तभवं ज्वरम् दातृष्णाश्रमरुचित्क्लेशं वमथुं क्लमम् ॥
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( २०७ )
चिरायता, गिलोय, धनिया, चन्दन, खस,
इनका काथ पैत्तिक अरुचि, उबकाई और
पित्तपापड़ा और पद्माक । ज्वर, दाह, तृष्णा, श्रान्ति, वमनका नाश करता है । [६५१] किरातादिक्वाथः (८)
(भा. प्र., भैर; वृ. मा; ज्वरे) किराततिक्तममृता द्राक्षाचामलकं शठी । निष्काथ्य सगुडं क्वाथं वातपित्तज्वरे पिबेत् ॥
चिरायता, गिलोय, मुनक्का, आमला और कपूरकचरी, इनका काथ बना कर गुड़ मिलाकर पीने से वातपित्तज्वर शान्त होता है । [६५२ ] कुटजदाडिमक्वाथः (भा. प्र. अति.)
वत्सत्वग्दाडिमतरुशलादुफलसम्भवात्वक् च । त्वग्युगलं पलमानं विपचेदष्टांशसम्मितं तोये || अष्टमभागशेषं काथं मधुना पिबेत्पुरुषः । रक्तातिसारमुल्बणमतिशयितं नाशयेन्नियतम् ।।
कुड़े की छाल और अनार के कच्चे फलो का छिलका, दोनों चीजें २॥ - २॥ तोले ले कर आधा सेर पानी में पकावें, जब ५ तोले पानी शेष रह जाय तो उतार कर छान कर ठंडा कर के उस में शहद मिला कर पिलावें । इस से भयंकर रक्तातिसार भी नष्ट हो जाता है ।
[६५३ ] कुटजयोगः (वृ.नि. र., यो. र; |मू. कृ.) पिष्ट्वा गोपयसा श्लक्ष्णं कुटजस्य त्वच पिबेत् । तेनोपशाम्यति क्षिप्रं मूत्रकृच्छ्रं सुदारुणम् ॥
कुड़े की छाल को गाय के दूध में पीस कर
*
किराततिकादि गण ।
किराततिक्तको मुस्तं गुडूची विश्व मेषजम् । पीने से दारुण मूत्रकृच्छ्र का भी नाश हो जाता है। किरातादिगणो ह्येष चातुर्भद्रकमित्यपि ॥
चिरायता, नागरमोथा, गिलोय और सोंठ। इसका नाम किरातादि गण है । " चातुर्भद्रक" भी इसको कहते हैं ।
[६५४] कुटजक्षीरम् (भा. प्र. रक्ताति.) निःक्काथ्यमूलममलं गिरिमल्लिकायाः सम्यकूपले द्वितयमम्बु चतुःशरावे ।
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