Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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एकारादि-पाक
(१९१)
हत्यष्टादश कुष्ठानि क्षयरोगांश्च सप्त च । । घृतप्रस्थार्द्धयुक् पक्कं खंडप्रस्थद्वयं क्षिपेत् । पंचैव पांडुरोगांश्च पंच श्वासान् प्रणाशयेत् ॥ त्र्यूषणं सचतुर्जातं ग्रंथिकं वह्निचव्यकम् ।। चतुरो ग्रहणीरोगान् दृष्टिरोगं गलग्रहम् । । छत्रा मिशी शठी बिल्वदीप्यो जीरे निशायुगम्। अनेकवातरोगांश्च तान् सर्वाश्च विनाशयेत् ॥ अश्वगन्धा बला पाठा हपुषा वेल्लपुष्करम् ॥ शुक्लपाकमिदं ख्यातं सर्वरोगनिवारकम् ॥ श्वदंष्ट्र। रुग्वरा दारुबेल्लावालुकावरी ।
अण्डीके बीजोंकी गिरीको आठ गुने दूधमें एतानि पिचुमात्राणि चूर्णितानि विनिक्षिपेत॥ पकावें जब सब दूध खुश्क होजाय तो उन्हें वातव्याधि च शूलं च शोफ वृद्धि तथोदरम्। पीसकर घी मिलाकर मन्दाग्निपर पकायें और पाकके आनाहं बस्तिरुग्गुल्ममामवातं कटिग्रहम् ॥ अन्तमें उसमें त्रिकुटा, लौंग, इलायची, दारचीनी, | ऊरुग्रहं हनुस्तंभ नाशयेदपि योगतः ।। तेजपात, नागकेसर, असगन्ध, सोया, रास्ना,
अण्डी के पक्के बीजों की मांगी (गिरी) १ पीपला मूल, रेणुका, शतावर, लोह भस्म, साठी
सेर लेकर उसे ८ सेर दूध में मन्दाग्नि पर पकावें
और खोया हो जाने पर उसे ४० तोला घी में (विसखपरा) काली निसोत, खस, जावित्री, जायफल और अभ्रक भस्मका महीन चूर्ण और सबके
भून लें और फिर २ सेर खाण्ड की चाशनी में वजन के बराबर खांडकी चाशनी करके मिलावें।
मिला लें और उसमें त्रिकुटा, तेजपात, दालचीनी
नागकेसर, इलायची, पीपलामूल, चीता, चय, इसे प्रातःकाल सेवन करनेसे ८० प्रकारके
| सोया, सौंफ, कचूर, बेल, अजवायन, दोनों जीरे, वातरोग, ४० प्रकारके पित्तरोग, ८ प्रकारके
| हल्दी, दारु हल्दी, असगन्ध, खरैटी, पाठा, हाऊउदररोग, २० प्रकार के प्रमेह, ६० प्रकारके नाडी
बेर, वायबिडंग, पोखरमूल, गोखरु, कूठ, त्रिफला, व्रण, १८ प्रकारके कुष्ट, ७ प्रकार के क्षय, ५ |
देवदारु, काला विधारा, जलालु. (अवालुका-एक प्रकारके पांडु, ५ प्रकारके श्वास, ४ प्रकारके
तरह का कन्द शाक) और शतावर । प्रत्येक का ग्रहणी रोग, दृष्टि रोग, गलग्रह और अनेक प्रकारके
चूर्ण ११-११ तोला मिलाकर रक्खें । इस पाकको वातज रोगोंका नाश होता है।
यथोचित अनुपान के साथ सेवन करने से वात[५७०] एरण्डपाकः (यो. र. वा. व्या.) । व्याधि, शूल, सूजन, वृद्धि रोग, उदर रोग, वातारिबीजं प्रस्थं तु सुपक्कं निस्तुपीकृतम्। अफारा, बस्ति, शूल, गुल्म, आमवात, कटिशूल, क्षीरद्रोणार्द्धसंयुक्त भिषग्मंदाग्निना पचेत् ॥ उरुग्रह और हनुस्तम्भका नाश होता है।
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