Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१५४)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
अनुपानवशेनैव सर्वरोगकुलान्तकः । रसोगन्धकणामूलं वंशजं जयपालकम् । साध्यासाध्यं निहन्त्याशु चामवातं सुदारुणम् ॥ व्योषं च बाणलवणं विडं चंद्रलवं क्षिपेत् ॥ भोजयेत्कण्ठपर्यंत चतुर्गुआमित रसम् । | ताम्बूलरसतोमा दिनं ताम्बूलपत्रयुक् । कट्वम्लतिक्तरहितं पिबेत्तदनुपानकम् ॥ दत्तो नवज्वरं हन्ति तापे शीतक्रियोचिता ।। शीघ्रं जीर्य्यति तत्सर्व जायते दीपनः परः। सर्वज्वरे सन्निपातं ददेत्तं तु द्विगुंज कम् । अनेन सदृशो नास्ति वह्नि संदीपनो रसः ॥ | आरोग्यरागिनामायं रसः परमदुर्लभः ॥ गुल्माझे ग्रहणीरोगशोथपांडूदरापहः ॥ शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, पीपलामूल, वसलो___ शुद्ध गंधक २॥ तोला, ताम्रभस्म २॥ तोला, | चन, शुद्ध जमालगोटा, त्रिकुटा, पांचों लवण, विड शुद्ध पारा ११ तोला, लोहभस्म १॥ तोला । सबकी | नमक और कपूर सब समान भाग लेकर प्रथम कजली करके यथाविधि अरण्ड पत्रपर ढालकर | पारा गन्धककी कजली बनावें फिर उसमें अन्य पर्पटी बनाएं फिर उसे पीसकर पंचकोल के क्वाथ | द्रव्योंका चूर्ण मिलाकर एक दिन पान के रसमें में घोटें और धूपमें सुखा दे । इसी प्रकार २०
| घोटें । इसे २ रती की मात्रा में पानमें रखकर भावना पञ्चकोल के क्वाथकी और १० भावना | सेवन करने से नवीन ज्वर और सन्निपातादि सब गिलोय के रसकी देकर उसमें सुहागेकी खील प्रकार के ज्वरों का नाश होता है । यदि सन्ताप सबके बराबर, विड लवण सुहागे से आधा, काली
| अधिक हो तो शीत-क्रिया करनी चाहिये। मिर्च का चूर्ण बिड लवण के बरावर, तिन्तडीक [४४८] आरोग्यवर्द्धनी गुटीका [रस] के बीज १। तोला, दन्ती १। तोला, त्रिकुटा,
(र. र. स., अ २०) त्रिफला और लौंग प्रत्येक ७॥ माशा सबको । रसगंधकलोहाभ्रशुल्वभस्म समांशकम् । मिलाकर खरल करे।
त्रिफला द्विगुणा योज्या त्रिगुणं तु शिलाजतु।। ___ यह रस अत्यन्त अग्निवर्द्धक और आमवात | चतुर्गुण पुरं शुद्धं चित्रमूलं च तत्समम् । के लिये अत्यन्त उपयोगी है। इसके सेवनसे | तिक्ता सर्वसमा ज्ञेया सर्व संचूर्ण्य यत्नतः॥ अनुपयोगी स्थूलता तथा कृशता नष्ट होकर शरीर | निववृक्षदलांभोभिर्मदयेद् द्विदिनावधि ।। सुडौल हो जाता है । यह अनुपान भेद से सब ततश्च वटिकाःकार्या राजकोलफलोपमाः ॥ रोगों का नाश करता है । अत्यधिक भोजन करने | मण्डलं सेविता सैषा हन्ति कुष्ठान्यशेषतः । के बाद यदि इसमें से ४ रत्ती दवा खा ली जाय | वातपित्तकफोद्भूतावामानाप्रकारजान् ॥ तो वह सब पच जाता है। इसके समान अग्नि- | देया पञ्चदिने जाते ज्वरे रोगे वटी शुमा । संदीपक, गुल्म, बवासीर, ग्रहणी, शोथ, पाण्डु पाचनी दीपनो पथ्या हया मेदोविनाशिनी।।
और उदररोग नाशक अन्य औषधि नहीं है। मलशुध्धिकरी नित्यं दुर्धर्ष क्षुत्प्रवर्तिनी । अनुपान ---मधुर, कषाय और लवण रसयुक्त पदार्थ।। बहुनात्र किमुक्तेन सर्वरोगेषु शस्यते । [४४७] आरोग्यरागि रसः आरोग्यवर्धनी नाम्ना गुटिकेयं प्रकीर्तिता ।
(वृ. नि. र., ज्वरे) सर्वरोगप्रशमनी श्रीनागार्जुनयोगिना ॥
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