Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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इकारादि-रस
अथ इकारादि रसप्रकरणम् । [४६३] इच्छाभेदीरसः (१) (ग्सा. सा.) । कगता है इस लिये इस को इन्छाभेदी रस कहते सूतशुण्ठयग्निकोलानां समानामर्द्धगन्धकः।। हैं। यह ग्स विना दस्त कराये पच नहीं सकता। निशोथस्तत्समस्तुल्या जैपालाः स्नेहवर्जिताः ॥ इस के सेवन करने से विष्टम्भ रोग, गुल्मरोग, भावयित्वाऽम्बुना बढ़े चणकप्रमिता वटीः॥ उदावर्नरोग, अरुचि, नष्ट होजाते हैं और शास्त्रकुर्यात्सर्वस्य चूर्णास्य करकोष्ठोऽपि रिच्यते ।। लिग्वित बवासीर. भगन्दर आदि रोगों के प्रयोगों
हिंगुलकापारद, सोंट, चित्रक, कालीमिर्च, | के साथ इसके सेवन करने से मुग्वी होजाता है । १-१ तोला और २ तोला शुद्ध गंधक लेकर [४६५] इच्छाभेदीरसः (३) पारद गंधक की कजली करले, बाद सोंठ, मिरच, (रसे. चि. म. ९. अ; र. का. धे. उदर) चित्रक के चूर्ण को और भी मिलादे। इस चूर्ण में | सूतं गन्धं च मरिच टङ्कणं नागरामये । ६ तोले निसोथ के चूर्ण को और १२ तोले शुद्ध जैपालपीजसंयुक्तं क्रमोत्तरगुणं भवेत् ।। जमालगोटे के चूर्ण को डालकर घोटे। इस चूर्ण | सर्वगुल्मोदरे देय इच्छाभेदी स्वयं रसः। में चित्रक के काटे की भावना देकर चने के समान | द्वित्रिगुजां वटी भुक्त्वा तप्ततोयं पिबेदनु ।। गोलियां बनावे । बलाबल देख कर एक गोली से | शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक ३ भाग, चार गोली तक ताजा पानी के साथ या धारोष्ण काली मिर्च ३ भाग, सुहागा की खील ४ भाग, (ताजा) दूध के साथ देने से मनुष्य कैसा ही कर- सोट ५ भाग. हैड़ ६ भाग और शुद्ध जमाल कोष्टी क्यों न हो जुलाब अवश्य होता है। गोटा ७ भाग । प्रथम पारा गन्धककी कजली बनावें [४६४] ईच्छाभेदीरसः (२) (रसा. सा.) | फिर उसमें अन्य द्रव्योंका चूर्ण मिलाकर खरल टणं पिप्पली शुण्ठी हिङ्गुलुनिम्बुशोधितः । | करें। हेमपत्रा त्रिवृदन्ती तिस्रो द्विद्विगुणाःक्षिपेत् ॥ इसे २ रत्ती मात्रा में गरम पानी के साथ चूर्ण धारोष्णदुग्धेन गिलेद् गुञ्जात्रयोन्मितम् । सेवन करने से ( विरेचन होकर ) गुल्म और सब इच्छया भेदकं नैतत् पच्यते रेचन विना॥ प्रकार के उदर रोगोंका नाश होता है। गुल्मं विष्टम्भकं हन्यादुदावर्त्तमरोचकम् । [४६६] इच्छाभेदीरसः (४) अर्घाभगन्दरादीनां योगैस्सेवेत कालवित् ॥ (र. सा. सं. रेचनाध्याये) __ अग्नि पर फुलाया हुआ सुहागा, पीपल, सोंट, | तुल्यं टकणपारदं समरिचं तुल्यांशकं गन्धक नीबू के रस में शोधा हुआ सिंगरफ, ये चारों | विश्वा च द्विगुणां ततो नवगुणं जैपालचूर्ण चीज़ १-१ तोले, सनायकी पत्ती २ तोले, निसोथ | क्षिपेत् । गुञ्जकप्रमितो रसो हिमजलै संसे४ तोले, शुद्ध जमालगोटे का चूर्ण ८ तोले | वितो रेचयेद्यावनोष्णजलं पिवेदपि वरं ले। इस चूर्ण की मात्रा कम से कम ३ रत्ती | पथ्यश्च दध्योदनम् ॥ लेकर ताजे दूध के साथ पीवे । यह यथेष्ट दस्त सुहागे की खील, शुद्ध पारा, काली मिर्च
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