Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१४८)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
क्षीरसपियां शालिषष्टिकमश्नीयात् अस्य । काथ । इन में से प्रत्येक वस्तु समान भाग लेकर त्रिवर्षेप्रयोगाद्वषेशतं वयोऽजरं तिष्ठति । उनके साथ सबके वजन से चौथाई घृत का पाक श्रुतमवतिष्ठते सर्वामयाः प्रशाम्यन्ति अपति- सिद्ध करें। इसके सेवन से पित्तगुल्म का नाश हतगतिः स्त्रीष्वपत्यवान् भवतीति ॥ होता है।
उत्तम भूमि में यथोचित कालमें उत्पन्न हुवे । [४२२] आवर्तकीघृतम् (ग. नि.) गन्ध, वर्ण और रससे परिपूर्ण वीर्यवान् आमलों के आवर्तकीमूलशतं सुसिद्धम् स्वरस और चौथाई माग पुनर्नवा के कल्क के साथ ____ काथीकृतं कल्कपलाष्टयुक्तम् ।। ४ सेर घृत सिद्ध करें । फिर उसे बिदारीकन्द के प्रस्थं पुराणाद्धविषः सुगव्यात् स्वरस और जीवन्ती के कल्क के साथ, इसके बाद | पकं शनैः साधु तदावतार्य ॥ चार गुने दूध और बला, अतिबला के कषाय और मात्रां पिबेद्वयाधिवलानुरूपां शतावर के कल्क के साथ सिद्ध करें। उपरोक्त भुजीत चानं सह काक्षिकेन । प्रयोगोंमें से एक के साथ १००-१०० अथवा द्रवोत्तरं कोद्रव सुजीर्णे हजार हजार बार घृत सिद्ध करके चौथा भाग
कामं पुरस्तादपरेऽहि शुद्धात् ॥ खांड और शहद मिलाकर सोने चांदी या मिट्टीके त्रिसप्तरात्रं विधिनवमाशु मज़बूत, स्वच्छ और घृतसे चिकने घड़ेमें भरकर ___ पीतं निहन्यादचिरेणकुष्ठम् । रक्खें । इसे यथोक्त विधि के अनुसार अमिबलानु- खबवणं भग्ननखाङ्गदेहं कुल मात्रा से प्रातः काल सेवन करें और इसके मण्डानुपूर्ध्या विधिनाथ चैतत् ॥ पच जाने पर दूध और घी के साथ साली या साठी । ६। सेर दन्तीमूल के काथ और उसीके ४० चावल का भोजन करें । इसे ३ वर्षे तक सेवन | तोला कल्क से २ सेर पुराना गोघृत मन्दाग्नि पर करने से १०० वर्ष तक यौवनावस्था स्थिर रहती | सिद्ध करें । है । समस्त रोग शान्त हो जाते हैं एवं वह सन्ता- इसे रोगानुसार उचित मात्रा में सेवन करना नोत्पत्ति में समर्थ होजाता है।
चाहिये और विरेचन होने के पश्चात् शामको काजी [४२१] आमलक्यादि घृतम् युक्त आहार एवं उसके पच जाने पर कोदों का (बृ. नि. र. गुल्म)
| काथ सेवन करना चाहिये । इस प्रकार इसे विधिरसेनामलकेक्षणां घृतपादं विपाचयेत् । वत् २१ दिन सेवन करने से स्रावयुक्त व्रण एवं पथ्यायाश्च पिबेत्सर्पिस्तत्सिद्धं पित्तगुल्मनुत् ॥ गलित कुष्ट जिसमें नख और शरीरावयव गल
आमले का रस, ईखका रस और हरीतकी का ' गए हों नष्ट होता है।
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