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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३२) भारत-भैषज्य रत्नाकर (वृ. नि. र. ज्वरे) [३७३] आम्रास्थ्यादि कषायः खुलकर हो जाते हैं, उदरका दोष निःशेष हो जाता ( वृ. नि. र. अति.) है और भूख खूब लगती है। आम्रास्थिमध्य मालूरफलक्वाथ समाक्षिकः । [३७५] आरग्वधादि कषायः (२) शर्करासहितो हन्याच्छद्यतीसारमुल्वणम् ॥ ___ आमकी गिरीकी गुठली और बेलगिरी का | आरग्वधफलं मुस्तं यष्टीमधुकमेव च । काढा शहद और मिश्री मिला कर पीने से वमन | उशीरमभया चैव हरिद्रादारुसाह्वया ॥ भौर अतिसार का नाश होता है। पटोलं पिचुमन्दं च ह्यमृता कटुरोहिणी । [३७४] आरग्वधादि कषायः (१) । एषां पीतः कषायः स्याद्वातपित्तभवे ज्वरे ।। (रसा. सा. ज्वरे ) ___अमलतासका गूदा, नागरमोथा, मुलैठी, खस, विष्टम्भनिःशेषविधौ तु रोगी हैड़, हल्दी, दारुहल्दी, पटोलपत्र, नीम की छाल, सेवेतयोगं शतशोऽनुभूतम्। गिलोय और कुटकी । इनका क्वाथ वातपित्तज आरग्वधोरोहणिकाऽर्धचन्द्रा- ज्वर के लिये हितकारी है। द्राक्षातथाहेमदलावयःस्था॥ [३७६] आरग्वधादि कषायः (३) पुष्पश्च शुष्कं शतपत्रिकायाः (च. द., वै. र., हा. सं; शा. ध. म. खं; बृ. समानि सर्वाणि तदधभूताः॥ यो. त. त. ५८ ज्वरे) सम्मूञ्छिता शर्करयासुश्रुता आरग्वधग्रन्थिकमुस्ततिक्तापलार्द्धकल्पाकथिता प्रपेयाः॥ हरीतकीभिःक्कथितःकषायः। ज्वर के दूर होजाने पर यदि विष्टम्भ (कब्- सामे सशूले कफवातयुक्ते ज़ियत) रहे तो इस आगे लिखेहुए काढ़े को पीवे, ज्वरे हितो दीपनपाचनश्च ॥ जो मेरा सैकडों बारका अनुभूत है। अमलतास अमलतास, पीपलामूल, नागरमोथा, कुटकी का गूदा दो तोला, कुटकी दो तोला, निसोत दो और हरड । इनका क्वाथ आम और शूल युक्त सोला, मुनक्का (बीज निकाली हुई ) पांच नग, कफवातज्वर नाशक एवं दीपन पाचन है । सनाय की पत्ती दो तोला, बड़ी हरड़ की छाल दो। [३७७] आरग्वधादि कषायः (४) तोला, सुग्वे हुवे गुलाबके फूल दो तोला) ( यदि (वृ. नि. र. बाल.) गीले हों तो चार तोला ) सब औषधियों से आधा आरग्वधः सातिविषः समुस्तगुलकन्द । इन आटोंमें से अमलतास का गूदा, स्तिक्ताकपायो ज्वरमाशु हन्यात् । दाख और गुलकन्द, इन तीन चीजों को छोड़कर | सामं सशूलं सवमि सदाहं बाकी पांचों चीजोंको कूटकर चूर्ण करले, पीछे इन | सकामलं हन्ति सरक्तपित्तम् ।। तीनों चीजोंको भी मिलाकर कल्क करले । इस अमलतास का गूदा, अतीस, नागरमोथा कल्कमें से दो ढाई तोले के अन्दाज पावभर पानीमें | और कुटकी। इनका कषाय, शूल, वमन, दाह, डालकर अधौट क्वाथ कर पीवे तो एक दो दस्त कामला और रक्तपित्त युक्त ज्वर का नाश करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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