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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आकारादि क्वाथ (१३१) [३६६] आमलेकी आलवाल आम और जामनकी कोंपल, कमल और (भा. प्र. म. खं अति.) वडके अंकुर और खस । इनके फांट (अथवा शीत कृत्वालवालं सुदृढं पिष्टैरामलकैभिषक् । कषाय) में शहद डालकर पीनेसे ज्वर, पिपासा, आर्द्रकस्य रसेनाशु पूरयेनाभिमण्डलम् ॥ वमन, अतिसार और दुस्साध्य मूर्छा का नाश नदीवेगोपमं घोरं प्रवृद्धं दुर्द्धरं नृणाम् ।। होता है। सद्योऽतिसारमजयं नाशयत्येष योगराट् ॥ | | [३७०] आम्रादियोगः (वृ. नि. र. संग्र.) ___आमलों को जलमें पीसकर उससे रोगीकी । आम्रास्थिविश्वगोशृंगवत्सश्वानरसेन तु ॥ नाभि के चारों ओर थामला सा बनादे फिर उसमें मर्दयेत् त्रिदिनं सम्मक् सितया सह योजयेत् ।। अदरक का रस भर दे तो शीघ्र ही अत्यन्त भयंकर, तस्यपित्तोद्भवां हन्ति ग्रहणी रोगकारिणी॥ नदीके वेगके समान दुर्जय अतिसार भी नष्ट हो ज्वरातिसारं तीवं च रक्तस्रावं सशूलनुत् ।। जाता है। ___ आमकी गुठली, सोंठ, बबूल की छाल और [३६७] आम्रत्वचाका स्वरस कुडेकी छाल को आमके रसमें तीन दिन तक खरल ___(वृ. नि. र. उपदंशे) करके इसमें मिश्री मिलाकर सेवन करने से पित्तज आम्रत्वचं विनिष्पीडय निगृह्य स्वरसं पलम् ॥ | संग्रहणी, वरातिसार, रक्तस्राव और शूल का नाश चतुःपलं त्वजाक्षीरं संयुक्तं प्रपिबेत्प्रगे। होता है। एवं मुनिदिनं कुर्यादुपदंशवणे हितम् ॥ आमकी छालका ५ तोला स्वरस लेकर उसमें | [३७१] आम्रादि यवागूम् २० तोला बकरी का दूध मिलाकर प्रातःकाल (वृ. नि. र. संग्र, शा. ध. म. खं. अ. २) सात दीन तक पीने से उपदंशत्रण ( उपदंश का | आम्रमानातक जंबृत्वकषाये पचेद्भिषक् ।। घाव ) नष्ट होता है। यवागू शालिभियुक्तां भुक्त्वा तां ग्रहणीं जयेत्।। [३६८] आघ्रादिकषायः (वृ.नि. र. तृष्णा) __आम, अंबाडा और जामुन की छालका काढा आमजबूकषायं वा पिडेन्माक्षिकसंयुतम् ।। करके उसमें शाली चावलोंकी यवागू सिद्ध करके छर्दि सनी प्रणुदति सृष्णां चैवापकर्षति ॥ सेवन करने से पित्तज संग्रहणी का नाश होता है । ____ आम और जामुन की छाल का काढ़ा शहद [३७२] आम्रादिहिम (रक्तपित्तपर) मिलाकर पीनेसे सब प्रकार की वमन और तृषा शान्त हो जाती है। (शा. ध. २ खं. ३ अ.) [३६९] आम्रादि फांट (हिम) आनं जम्बू च ककुभं चूर्णीकृत्य जले क्षिपेत् । (शा. ध. म. खं., वृ. नि. र. ज्वर.) | हिमं तस्य पिबेत्प्रातः सक्षौद्रं रक्तपितजित् ॥ आमजबूकिसलयैर्वटभंगप्ररोहकैः ॥ ___ आम, जामन और अर्जुनकी छाल के चूर्ण उशीरेण कृतः फांटा सक्षौद्रो ज्वरनाशनः॥ | का शीत कषाय (हिम) बनाकर उसमें शहद मिलापिपासाच्छर्यतीसारान् मूछों जयति दुस्तराम्॥ कर प्रातःकाल पीनेसे रक्तपित्त का नाश होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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