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(१३०)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
[३६०] आटरूषादि कषायः (३) । [३६२] आमलक्यादि कषायः (वृ. नि. र. सन्नि.)
(वृ. नि. र. ज्वरे) सिंहास्यपर्पटारिष्टयष्टीधान्याब्दनागरम् ।। आमलकीघननागरसिंहि दारूग्रगन्धेन्द्रयवश्वदंष्ट्रा ग्रनथिकं तथा ॥
छिन्नलताविहितश्च कषायः। एषां कषायमाहृत्य सन्निपातज्वरी पिबेत् ।।
माक्षिकमागधिकापरिमिश्रो श्वासातिसारकासघ्नं शूलारुचिहरं परं ।। ___हन्त्यनिशं संततज्वरमाशु ॥ ___अडूसा, पित्तपापडा, नीमकी छाल, मुलैहटी, आमला, नागरमोथा, सोंठ, कटेरी और गिलोय धनिया. नागरमोथा. सोंड देवदास, बचइन्द्रजी. के काढ़ेमें शहद और पीपल का चूर्ण डालकर गोखरू और पीपलामूल । इनका काढा सन्निपात
पीने से संततम्बर का नाश होता है। वर, स्वास, अतिसार, खांसी, शूल और अरुचि | [३८३] आमलक्यादिक्वाथ: का नाश करता है।
(वृ, नि र. मू. कृ.) [३६१] आमलक योगः।
गुडेनामलकीकाथं श्रमनं तर्पणं परम् । (वृ. नि. र. स्त्री. रो.)
पित्तासृग्दाहशूलनं मूत्रकृच्छनिवारणम् ।। जलेनामलकीबीजकल्कं समधुशर्करम् ।
___ आमलों के काढ़ेंमें गुड मिलाकर पीनेसे रक्तपिबेदिनत्रयेणैव श्वेतप्रदरनाशनम् ॥
| पित्त, दाह, शूल, मूत्रकृच्छू और थकावट का नाश __ आमले की गुठलीको जलमें पीसकर उसमें
| होता है। शहद और मिश्री मिलाकर तीनदिन तक पीनेसे
[३६४] आमलक्यादि गणः श्वेत प्रदर का नाश होता है।
(सु. सं. सू. अ. ३८)
आमलकीहरीतकीपिप्पल्यश्चित्रकश्चेति । * पुटपाकविधिद्रव्यमापोथितं जम्बुवटपत्रादिसंपुटे।
आमलक्यादिरित्येष गणःसर्वज्वरापहः॥ वेष्टयित्वा ततो बदध्या दृढं रज्वादिना तथा॥ चक्षुष्यो दीपनो वृष्यः कफारोचकनाशनः॥ मृल्लेपं प्रयङ्गुलं कुर्यादथवांगुलिमात्रकम् । । आमला, हैड, पीपल और चीता । यह आमलदहेत्पुटान्तरादग्नौ यायल्लेपस्य रक्तता॥ | क्यादि गण सर्व ज्वर नाशक, नेत्रोंके लिये हितकारी,
(प्र० प्र० २ खं०) | दीपन, वृष्य और कफ तथा अरुचि नाशक है। द्रव्य को कुचलकर जामन, बढ़ आदि के पत्तो | में लपेटकर उसे डोरे से खूब कसकर बाँध
[३६५] आमलक्यादियोगः दे फिर उसके ऊपर १ या २ अंगुल मोटा
(वृ. नि. र. वा. व्या.) मिट्टी का लेप करके अग्नि में दवा दे। जब आमलक्याश्च करकेन बस्तिभागं प्रलेपयेत् । ऊपर वाले लेप का रंग लाल हो जाय तो |
तेन प्रशाम्यति क्षिप्रं नियमान्मूत्रनिग्रहः ।। औषधि को निकाल कर उसका रस निचोड़ले। मात्रा-पलमात्रो रसोग्राह्य कर्षमात्रं मधुक्षिपेत् ।
बस्ति पर आमले के कल्क का गाढ़ा २ लेप अर्थात ५ तोला रस लेना चाहिये और उसमें | करने से मूत्राघात (पेशाब की रुकावट) को अवश्य १। तोला शहद डालना चाहिये।
आराम होता है।
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