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आकारादि क्वाथ
(१२९)
आ
अथाकारादि क्वाथ प्रकरणम् [३५७] आकल्लकादि काथः ___ बासा, सिरस की छाल, असगन्ध और पुनर्नवा
____ (वृ. नि. र. अश्म.) (बिसखपरा)। इससे दूध पका कर पीने से राजआकल्लगोक्षुरजटातुलसीशिलाभि- यक्ष्मा का नाश होता है।
रेरंडमूलमगधामधुकैः प्रयुक्तः।। [३५९] आटरूषादि कषायः (२) तक्राह्वमूलसुरसासुरपुष्पशुंठी
(यो. र. । र. पि.) काथो निहंति बहुलाप्रतिवापतोयम् ।।
वृषपत्राणि निष्पीडय रसं समधुशर्करम् । सप्ताहमेव पिवता नियमेन पुंसां घोराश्मरीमतिरुजं सहशर्करां च ।
अनेन प्रशमं याति रक्तपितं सुदारुणम् ।। आवीपयो मधुविमिश्रितमाशु तद्वत् ।
मध्वाटरूपकरसौ यदि तुल्यभागौ । चूर्ण त्रिवृत्कुटजबीजभवं वदन्ति ॥
कृत्वा नरः पिबति पुण्यतरः प्रभाते । अकरकरा, गोखरू, जटामांसी, तुलसी, शिला
तद्रक्तपित्तमतिदारुणमप्यवश्यजित, अरण्डमूल, पीपल, मुलैठी, x तक्रा (एक
माशु प्रशाम्यति जलैरिव वह्निपुञ्जः ।। प्रकार का पौदा) की जड़, निर्गुण्डी (संभाल) लौंग
आटरूषक नियूहः प्रियङ्गुम॒त्तिकाञ्जने । और सोंठ। इनके काथ में इलायची के चूर्णका ! विनीय लोध्र सक्षौद्रं रक्तपित्तहरं पिवेत् ॥ *प्रक्षेप डालकर नियमपूर्वक सात दिन तक पीनेसे | पिष्टानां वृषपत्राणां पुटपाको रसो हिमः। अत्यन्त पीड़ा युक्त अश्मरी और शर्करा (पथरी और | मधुयुक्तो जयेद्रक्तपित्तकासज्वरक्षयान् ॥ रेग) का नाश होता है । भेड़के दूध में मिलाकर बांसे के पत्तों के स्वरस में शहद और खांड पीने या निसोत और इन्द्रयव का चूर्ण सेवन करने | मिलाकर सेवन करने से या केवल शहद और बांसे से भी पथरी और रेग का नाश होता है । के पत्तों का स्वरस बराबर बरावर (१..१ तोला) [३५८] आटरूषादि कषायः (१)
मिलाकर प्रातः काल सेवन करने से अथवा बांसे के (वृ. नि. र. क्षय)
| पत्तों के कषाय में फूल प्रियंगु, सौराष्ट्रीमृत्तिका
(गोपीचन्दन) रसौत तथा लोघ का चूर्ण और शहद आटरूषो शिरीषाश्वगन्धाश्चेति पुनर्नवा ।। एतै + काथ्यं पयः पीतं क्षयरोगविनाशनम्॥
डालकर पीने से रक्तपित्त का नाश होता है । x तक्राका अर्थ कोई कोई कैथ भी करते हैं।
बांस के पत्तोंको पीसकर * पुटपाक विधि * प्रक्षेप-विधि पृष्ठ ३ में देखिये।
से रस निकालकर उसमें शहद मिलाकर पीनेसे + पक्कामिति समुचित पाठः । रक्तपित्त, खांसी, ज्वर और क्षय का नाश होता है।
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