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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२८) भारत-भषग्य-रत्नाकर गर्भद्रुतिः (१२) बाह्यद्रुतिः (१३) जारण (१४) [३५५] अष्टावक्ररसः (भै. र. रसा.) रञ्जन (१५) सारण (१६) क्रामण (१७) वेधकर्म रसराजस्य भागकं द्विभागं गन्धकस्य च । (१८) सेवन । भागमेकं सुवर्णस्य भागाद्धं रजतस्य च ।। [३५४] अष्टादशाङ्ग लोह (भा. प्र. पांडु) नागं तानं खपरश्च वङ्गं चैव समांशकम् । किराततिक्ता सुरदारु दावी प्रत्येकं रजतार्द्धश्च सर्वमेका मर्दयेत् ॥ मुस्ता गुडूची कटुका पटोलम् । वटाङ्कुररसैर्याम यामं कन्यारसैः सह । दुरालभा पर्पटकं सनिम्बं कूप्यभ्यन्तरे संस्थाप्य त्रिदिनं पाचयेत्सुधीः॥ कटुत्रिकं वह्नि फलत्रिकञ्च ॥ दाडिमीकुसुमप्रख्यं जायते चाविकल्पतः । फलं विडङ्गस्य समांशिकानि बलीपलितविध्वंसि बलपुष्टिकरं महत् ।। सर्वैः समं चूर्णमथायसश्च । आरोग्यजननं मेधाकान्तिकृच्छुक्रवर्द्धनम् । समिधुभ्यां वटिका विधेया महौषधवरश्चैतदष्टावक्रेण निर्मितम् ॥ ___ तक्रानुपानाद्भिपजा प्रयोज्या ॥ शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गन्धक दो भाग, निहन्ति पाण्डुश्च हलीमकञ्च सोना भस्म एक भाग, चांदी भस्म आधा भाग, शोथं प्रमेहं ग्रहणी रुजश्च । सीसा भस्म, ताम्रभस्म, खपरिया और बंगभस्म प्रत्येक चौथाई भाग, प्रथम पारे और गन्धककी श्वासश्च कासश्च सरक्तपित्तमास्यथो वाग्ग्रहमामवातम् । कजली बनावे और फिर अन्य औषधियां मिलाकर बरगदके रस और धीकुमार के रसमें मर्दन करके वांश्च गुल्मान् कफविद्रधिश्च आतशी शीशी में भरकर बालुकायन्त्र में तीन दिन चित्रश्चकुष्ठश्च ततः प्रयोगात् ।। तक पकावे । तैयार होने पर इसका रङ्ग अनारके चिरायता, देवदारु, दारुहल्दी, नागरमोथा, | फूलके समान हो जाता है। यह बलीपलित गिलोय, कुटकी, परवल, धमासा, पित्तपापड़ा, नीम, नाशक, बलवर्द्धक, पौष्टिक, आरोग्यरक्षक और बुद्धि त्रिकुटा, (सोंठ, मिर्च, पीपल) चीता, हरड, बहेडा, कान्ति तथा वीर्य वर्द्धक है। आमला, और वायबिडंग, ये सव औषधियां सम भाग लेकर चूर्ण करे और सबकी बराबर लोहभस्म [३५६] अष्टावुपरसाः (र. प्र. मु.अ. ५) मिलाकर धी और शहद के साथ गोलियां बनाकर । तालकं तुवरी गन्धं कष्टं कुनटी तथा । मठेके साथ सेवन करनेसे पाण्डु, हलीमक, सूजन, सौवीरं गैरिकं चैव अष्टमं खेचराह्वयम् ॥ प्रमेह, संग्रहणी, श्वास, खांसी, रक्तपित्त, अर्श, १ हरताल, २ सौराष्ट्र मृत्तिका, ३ गन्धक, जीभका रुक जाना, आमवात, ब्रण, बायुगोला, ४ कंकुष्ट ५ मनसिल, ६ सौवीराञ्जन (सुरमा), कफरोग, विद्रधि, और श्वेत कुष्ट आदि का नाश | ७ गेरु, ८ कसीस । यह आठ चीजें "उपरसाष्टक" होता है। कहलाती हैं। For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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