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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकारादि-रस (१२७) यथाक्रम आधे आधे सेर गाय के दूध, गोमूत्र । [३५२] अष्टाङ्ग रस (र. सा.सं.,र. चं. अशें) और भांगरे के रस में घोटकर सुखा कर गोलियां | गन्धं रसेन्द्रं मृतलौहकिट्टे बनावे । (यह अनुपान भेदसे अनेकों रोगोंका नाश | फलत्रयं त्र्यूष्णवभृिङ्गम् ॥ करता है) कृत्वा समं शाल्मलिकागुडूची [३४९] अष्टधातुनिरूपणम् रसेन यामत्रितयं विमद्य ॥ (र. सा. १ पट.) निष्कप्रमाणं गदितानुपानः सुवर्ण रजतं तानं लोहं च त्रपु शीसकम् ।। सर्वाणि चाांशि हरेद्रसोऽयम् ॥ रीतिका कांस्यकं चैव अष्टधातून् क्रमेण तु ॥ शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारा, लोहभस्म, मण्डूर ___ सोना, चांदी, तांबा, लोहा, रांग, सीसा, पीतल भस्म, हरड, वहेडा, आमला, सोंठ, काली मिर्च, और कांसी इन आठ चीजों का नाम अष्टधातु है।। पीपल, चीते की जड़ और भांगरा इन सब औष[३५०] अष्टमहारसाः (रा. नि. व. २२) | घिया धियों को समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी दरदः पारदः शङ्खः वैक्रान्तं कान्तमभ्रकम् । कजली बनावे फिर उसमें अन्य औषधियों का चूर्ण माक्षिकं विमलञ्चति स्युरेतेऽष्टौ महारसाः ॥ मिलाकर सेमल और गिलोय के रस में तीन प्रहर खरल कर के रक्खे । इसे चार माशे की मात्रा में १ हिंगुल (शिंगरफ), २ पारा, ३ शंख, ४ यथोचित अनुपान के साथ सेवन करने से सब वैक्रान्त, ५ कान्तलोह, ६ अभ्रक, ७ सोनामक्खी, प्रकार की बवासीर दूर होती है। इसको अष्टांग और ८ रूपामक्खी, इन आठ चीजों का नाम रस कहते हैं। "महारसाष्टक" है। (३५१] अष्टमूर्तिरस (वृ. नि. र. ज्वरे) | [३५३] अष्टादशरससंस्काराः ___ (र. प्र. सु. १ अ.) हेमरूप्यं ताम्रनागं मृतं गन्धकमाक्षिकं॥ विमला च शिला शुद्धा सर्वाशं शुद्धसतकं ॥ स्वेदनं मर्दनं चैव मूर्छनं स्यात्तदुत्थितम् । पातनं रोधनं सम्यक् नियमं च सुदीपनम् ॥ अम्लेन मर्दयेद्यामं पुटे कुम्भधरे पचेत् ॥ | तथाभ्रकग्रासमानं चारणं च क्रमेण हि । अष्टमूर्तिरसो नाम गुंजैकं भूतिक ज्वरे ॥ गर्भद्रुतिर्बाह्यद्रुतिः प्रोक्तं जारणकं तथा। देयश्चातुथिकं व्याहं द्वथाहिकं च विनाशयेत् ॥ रञ्जनं सारणं प्रोक्तं क्रामणं बेध कर्म च सुवर्ण, चांदी, तांबा, और सीसा इनकी भस्म सेवनं पारदस्याथ कर्माण्यष्टादशैव हि ॥ शुद्ध गन्धक, सोनामक्खी भस्म, शुद्ध मनसिल समान भाग, इन सबके बराबर शुद्ध पारा लेकर उद्देशतो मयाऽत्रैव नामानि कथितानि वे। पारद के निम्न अठारह संस्कार होते हैं:प्रथम पारेगन्धककी कजली बनाकर सबको एकत्र कर नींबूके रसमें एक प्रहर घोटकर कुम्भपुट देवे, | (१) स्वेदन (२) मर्दन (३) मूर्छन (४) उत्थापन यह (अष्टमूर्ति रस) १ रत्ती की मात्रा में ज्वरवाले | (५) पातन (६) रोधन (अन्य ग्रन्थों में 'रोधन) के को देनेसे भूतज्वर, चातुर्थिक, त्र्याहिक, द्वयाहिक, स्थान में 'बोधन' भी लिखा है) (७) नियमन् (८) आदि का नाश होता है। | दीपन (९) अभ्रक प्रासमान (१०) चारण (११) For Private And Personal Use Only
SR No.020114
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1985
Total Pages700
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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