Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(११०)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
मन्दारदुग्धेनदिनद्वयञ्चेद्विमर्च के दूध में खूब घोटे बाद को टिकिया बनाकर
सम्यकच विधायचक्रीः॥ । धूप में सुखाले और गजपुट में फूंक दे, छुट्टी । धर्मेण शुष्काः प्रपुटेर गजाख्ये परन्तु पहले इस सत्व को कूटकर कपरछन करले
बारेण चैकेन भवेत्सभस्म। | फिर मदार के दूधमें धोटे । एक सेर शुद्ध अभ्रक और आधसेर चौकिया (३०८) अथाभ्रआनुपानानि सुहागा दोनों को मिलाकर जिसके तलभाग में सत्व | अभ्रकं च निशायुक्तं पिप्पली मधुना सह । गिरने के लिये छिद्र किया है ऐसी हांडी में खूब | विंशतिं च प्रमेहनां नाशयेनात्र संशयः ।। भरदे और उसके मुख पर शराव रखकर मुद्रा करदे। | अभ्रकं हेमसंयुक्तं क्षयरोगविनाशनम् । परन्तु यह स्मरण रहे कि हाण्डी पर तीन कपरमिट्टी | रोप्यहेमाभ्रकं चैव धातुवृद्धिकरं परम् ॥ करके सुखाले । बाद कषायकरी भट्ठी में पत्थर के | अभ्रकं च हरीतक्या गुडेन सह योजितम् । कोयले भरकर नीचेसे लकड़ी की आंच दे जब कोयले | एलाशकेरया युक्तं रक्तपित्तविनाशनम् ।। खब दहकने लगे तब लोहे के छड़से कुछ कोयलों को | त्रिकटु त्रिफलां चैव चातुर्जातं सशर्करम् । हटाकर बीचमें उस हांडी को रखकर दहकते हुए मधुना लेहयेत्प्रातः क्षयार्शः पाण्डुनाशनम् ॥ कोयलों को उस हांडी के ऊपर से भी ढांक दे, भट्टी | गुडूचिसत्वखण्डाभ्यां मिश्रित मेहनाशनम् ॥
नीचे से सब आंच को निकाल कर हांडी के ठीक | एलागोक्षुरभूधात्रीसितागव्येन मिश्रितम् ।। नीचे भाग में एक लोहे का तसला रख दे । एक प्रातः संसेवनानित्यं मेहकच्छनिवारणम् । घण्टे के बाद हांडी के अभ्रक का सम्पूर्ण सत्व बह पिप्पलीमधुसंयुक्तं भ्रमजीर्णज्वरापहम् ॥ २ कर तसले में गिर जायगा । इसका वर्ण कांच | मधु त्रिफलया युक्तं दृष्टिपुष्टिकरं मतम् । के समान काला होगा जिसको देख कर कोई | मूसत्तयुतं व्योम व्रणानां च विनाशनम् ॥ नहीं पहचान सकता कि यह अभ्रक है। इसमें | गोक्षीरक्षीरकन्दाभ्यां बलवृद्धिकरं परम् । अभ्रक का भी अंश मिला हुआ है इसलिये यह | भल्लातकयुतं व्योम त्वोंदोषनिवारणम् ॥ खाली सत्व नहीं है। इसमें चन्द्रिकाओं का नाम | नागरं पौष्करं भागी गगनं मधुना सह । निशान भी नहीं है । हमने इस सत्व को निकाल- | अश्वगन्धायुतं खादेदातव्याधिनिवारणम् ॥ कर बहत वैद्यों को दिखाया है जिसने देखा उसीने | चातुर्जातं सिता चाभ्रं पित्तरोगनिवारणम् । प्रसंशा की है । जैसे गुड़ और सोरे के योग से कट्फलं पिप्पली क्षौद्रं श्लेष्मरोगनिवारणम ॥ एक बारमें ही अभ्रक निश्चन्द्र हो जाती है इसी | सर्वक्षारयुतं चाभ्रममिद्धिकरं परम्। प्रकार इस विधिसे केवल सुहागेके योगसे भी अभ्रक मूत्राघातं मूत्रकृच्छ्म श्मरीमपि नाशयेत् ।। निश्चन्द्र हो जाती है और अभ्रक का सत्वांश रह | विजयारससंयुक्तं शुक्रस्तम्भकरं परम् । जाता है इसी लिये इसका माम सत्वप्रधान अभ्रक | लवङ्गमधुसंयुक्तं धातुवृद्धिकरं परम् ॥ भस्म रक्खा है। इस सत्व की भस्म करने की यह | गोक्षीर शकरायुक्तं पित्तरोगविनाशनम् । विधि है कि इस अनकसत्व को दो दिन तक मंदार अभ्रक विधिसंयुक्तं पथ्ययोगेन योजितम् ।
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