Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अकारादि-रस
( १११ )
दिव्याभ्रं क्षयपाण्डुसंग्रहणिकाशूलं च कुष्ठामयम् । सर्वश्वासगदं प्रमेहमरुचिं कासामयं दुर्धरं । मन्दाग्नि जठरव्यथां परिहरेच्छेषामयानिचितम् वली पलितनाशः स्याज्जीवेच्च शदां शतम् । नातः परतरं किंचिजरामृत्युविनाशनम् ॥
अभ्रक भस्म को हल्दी, पीपल का चूर्ण और शहद के साथ सेवन करने से बीस प्रकार के प्रहों का नाश होता है। सोनेके साथ अभूक भस्म सेवन करने से क्षयका नाश होता है तथा अभ्रक भस्म को चांदी की भस्म और स्वर्ण भस्म के साथ सेवन करने से अत्यन्त धातु वृद्धि होती है । अभ्रक भस्म, गुड़ और हैड़ का चूर्ण मिलाकर देने से अथवा इलायची का चूर्ण और चीनी मिला कर देने से रक्तपित्त का नाश होता है। शहद और त्रिकुटा, त्रिफला, दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर और चीनी के साथ प्रातः काल सेवन करने से क्षय, बवासीर और पाण्डु का नाश होता है। गिलोय के सत और चीनी के साथ खानेसे प्रमेहका नाश होता हैं। इलायची, गोखरू, भूमि आमला, मिश्री और दूध के साथ प्रातः काल सेवन करनेसे मूत्रकृच्छ्र का नाश होता है और पीपल चूर्ण तथा शहद से साथ सेवन करनेसे भ्रम और जीर्णज्वर का नाश होता है। शहद और त्रिफले के चूर्ण के साथ सेवन करने से दृष्टि पुष्ट होती है । मूर्वा के सत के साथ सेवन करने से ब्रण मिटते हैं। गाय के दूध और बिदारीकन्द के साथ सेवन करने से अत्यन्त बल वृद्धि होती है । अभ्रक भस्म भिलावे के साथ सेवन करने से बवासीर का नाश होता है । सोंठ, पोखरमूल, भारंगी, असगन्ध,
वेल्लव्योषसमन्वितं घृतयुतं वल्लोन्मितं सेवितं । करने से वातत्र्याधिका नाश होता है। दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर और चीनी के साथ अभ्रक भस्म सेवन करने से पित्त रोग शान्त होते हैं । कायफल, पीपल का चूर्ण और शहद के साथ सेवन करने से कफ रोग शान्त होते हैं । जवाखार, सुहागा, सज्जीखार आदि खारों के साथ सेवन करने से अभ्रक भस्म अत्यन्त अग्नि प्रदीप्त करती है तथा मूत्रकृच्छ्र, मूत्राघात और पथरी का नाश करती है । भांग के रस के साथ सेवन करने से वीर्य स्तम्भ करती है। लौंग और शहद के साथ सेवन करने से अत्यन्त धातुवृद्धि होती है | गाय के दूध और चीन के साथ खाने से पित्त रोगों का नाश होता है । अभ्रक भस्म को बायविडंग, त्रिकुटा और धी के साथ एक बल ३-४ रती ) प्रमाण में सेवन करने और पथ्य पालन करने से क्षय, पाण्डु, संग्रहणी, शूल, कुष्ठ, सब तरह का खाम, प्रमेह, अरुचि, प्रबल खांसी, मंदाग्नि, उदर व्य रोगोंका नाश होता है । अभ्रक सेवन से बलीपलित बुढापा और अकालमृत्यु का नाश हो कर मनुष्य १०० वर्ष तक जीवित रह सकता है । (३०९) अभ्रककल्प ( आ. वे. प्र. । अ. ४) निश्चन्द्रमभ्रकं भस्म धात्रीव्योषविडङ्गकम् || भृङ्गाम्बुना जलैर्वाऽपि खल्वे मधे द्वियामकम् ॥ गुटिकां कारयेत्सव छायाशुष्कां सुरक्षयेत् । एकैकां भक्षयेत्प्राज्ञो वर्षमेकं निरन्तरम् || द्वितीये तु पुनर्वर्षे भक्षयेद्गुटिकाद्यम् । एवं संवत्सरेणैव गुटिकैकां विवर्धयेत् ॥ त्रिवर्षस्य प्रयोगोऽयमभ्रकस्य प्रकीर्तितः । अनेन क्रमयोगेन व्योम्नः शतपलं नरः ॥ अद्याद्भवेन संदेहो वज्रकायो महाबलः ।
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इनके चूर्ण और शहद के साथ अभ्रक भस्म सेवन । मासत्रयेण रक्ताख्यं क्षयं श्वासं सुदारुणम् ॥
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