Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(११२)
भारत-भैषग्य-रत्नाकर
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पञ्चकासांश्च हृच्छूलं ग्रहण्यशोगदांस्तथा। ___पांच तोला शुद्ध पारद, पांच तोला शुद्ध आमवातं तथा शोषं पाण्डुरोग सुदारुणम् । गंधक, पांच तोला निश्चन्द्र, शतपुटी अभ्रक, पांच मृत्युकल्पं महाव्याधि वातपित्तकफोद्भवम् । तोला सोंठ, पांच तोला काली मिर्च, पांच तोला इन्त्यष्टादशकुष्ठानि नृणां पथ्याशिनां ध्रुवम् ॥ चौकिया सुहागे की खील । इन चीजों में से पहिले
निश्चंद्र अभ्रक भस्म, आंबला, त्रिकुटा और | गन्धक पारे की कजली कर ले फिर अभ्रक को वायविडंग, सब समान भाग लेकर भांगरे के रस भी उस कजली में डाल कर खूब घोट ले फिर अथवा पानी में २ पहर घोट कर गोलियां बनाकर | सोठ आदि सब चीजों को कूट कर कपरछन कर छाया में सुखावे । १-१ गोली वर्ष भर तक सेवन | ले । फिर सब चीजों को मिलाकर मर्दन करे, करे फिर दूसरे वर्ष २-२ गोली खावे और तीसरे और इन चीजों के स्वरस की भावना दे-मांगरा, वर्ष प्रति दिन ३-३ गोली सेवन करे। इस प्रकार | चित्रक, सम्भालु, भांग, मोगरा, अरणि, ब्राह्मी,श्वेता१०० पल अभ्रक सेवन करने से मनुष्य वनकाय पराजिता (सफेद कोयल) इनमें से जो चीज सूखी हो जाता है । ३ मास में क्षय, श्वास, पांच प्रकार
मिलें उनका क्वाथ करले और हरी पत्ती मिलें तो की खांसी, हृदय का शूल, ग्रहणी, बवासीर, आम
उनका स्वरस निकाल लें। जब सब चीजों की वात, शोष, पाण्डु तथा अठारह प्रकार के कुष्टोंका
पृथक् पृथक् भावना समाप्त हो जायं तब उस चूर्ण, नाश होता है, परन्तु पथ्य सेवन करना आवश्यक
के बराबर काली मिर्च का चूर्ण लेकर डाल दें।
फिर उक्त स्वरसों की एक एक भावना और देकर है। इस कल्प को पूरे तीन वर्ष तक सेवन करने
मटर के समान गोलियां बना ले । इनको छाया में से शरीर अत्यन्त दृढ़ हो जाता है ।
सुखाकर रख छोडे । इसको अभ्रक रसायन कहते [३१०] अभ्रकरसायनम् (रसा. सा.) ।
हैं । मनुष्य की जठराग्नि और ताकत तथा व्याधि सूतगन्धाभ्रकव्योपभृष्ट टङ्कणकाःसमाः। | को देखकर योग्य अनुपान के साथ देनेसे श्वास, सूतगन्धककज्जल्या जातायां पटगालितान् । कास, क्षय, कफजन्य व्याधि, वात व्याधियों को सनीय मईयेत्सर्वान् भावयेदेभिरौषधैः।। यह अभ्रक रसायन दूर करे और शुक्र, जठराग्नि, भडाराजाग्निनिर्गुण्डीविजयाग्रीष्मजाजया ॥ ताकत और कान्ति को बढ़ाती है एवं अतिसार, ब्राझी श्वेता समस्तानां मरिचं समचूर्गकम् । | ज्वर, सूतिका रोग में अच्छा काम करती है । इस श्लक्ष्णमर्दितकल्कस्य वटिका रेणुकोन्मिता॥ रसायनके सेधन करनेमें भोजनपान आचार कुछ समीक्ष्याग्नि बलं व्याधि योजयेदनुपानतः। पालन करना नहीं पड़ता केबल मैथुनको त्याग श्वासकासक्षयश्लेष्मवातिकव्याधिसम्भवम् ॥ देना चाहिये और रोज़ दही सेवन करना चाहिये। निहन्याज्जनयेच्चाशु शुक्रं वह्नि बलं प्रभाम् ।। [३११] अभ्रकविकारशान्तिः अतीसारे ज्वरे मृतौ पूज्यं चाऽभ्ररसायनम् ॥
(रसा. सा.) आचारे भोजने पाने यन्त्रणा नापि विद्यते । दुष्टाभ्रसेवाजनिस्तांस्तु रोगा दधि संसेव्यते चात्र मैथुनं च विवर्जयेत् ॥ । नपानुनुन्सुर्यदि सेवते ना।
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