Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१२६)
भारत-भैषज्य रत्नाकर
है । अजवायन के साथ खाने से दारुण सन्निपात । खाने से आमशूल और गोमूत्र में मिलाकर लेप
और बकरी के दूध के तथा गोघृत के साथ खाने करने से पामा का नाश होता है। भांगरे के रसके से वायु के रोगों का नाश होता है । अथवा वात- | साथ खाने और लेप करने से मकड़ी का विष नष्ट व्याधि के लिए भांगरे की जड़ के स्वरस या होता है । पानी से पीस कर लेप करने और खाने अजमोद और भांग के साथ अथवा त्रिफला या | से पल्ली विष का नाश होता है । नागरमोथे के रसके असगन्ध के चूर्ण और शहद के साथ खाना | साथ सेवन करने से उन्मत्त कुत्ते के काटे का विष चाहिए । विष्णु कान्ता की जड़ के साथ खाने से | नाश होता है। गोमूत्र या गिलोय के रसके साथ धनुर्वात का नाश होता है। पेठे के रस के साथ | खानेसे कुष्ठका नाश होता है। जिसकी इच्छा सदैव खाने से प्रमेह मिटता है । अथवा प्रमेह में गाय | स्वस्थ रहने की हो उसे प्रतिदिन १ या आधी के दही के साथ देना चाहिए । गोखरू के चूर्ण के | गोली उचित अनुपान के साथ खानी चाहिये । साथ खाने से धातु दोष दूर हो जाते हैं। धी के । [३४७] अश्वत्थवाललादि लोहम् साथ खाने से शुक्र वृद्धि होती है। सुपारीके रस
(वृ. नि. र. । क्षये) के साथ सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र मिटता है । एरण्ड अश्वत्थवल्कलं चैव त्रिकटुलॊहकिट्टकम् । तेल के साथ देने से विरेचन होता है। गुड के | गुडेन सह दातव्यं क्षयरोगविनाशनम् ॥ साथ देने से विद्रधि मिटती है । अद्रक के रस में ____ पीपलकी छाल, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और पीसकर लगाने से विच्छू काटे को आराम होता है। मंडूरभस्म । इनके चूर्ण को एकत्र करके गुड के भांगरे के रस में स्वेद और चंपा के रस में शरीर
साथ सेवन करने से क्षय रोग का नाश होता है। की दुर्गन्ध दूर होती है। बकरी के दूध के साथ
[३४८] अश्विनीकुमारो रसः (अनु.त.) सेवन करने से प्रमेह, आमला और मिश्री के साथ | यूषण फलत्रिकश्च नागफेनकं विषम् । खाने से पित्त का नाश होता है। नींबू के रस में | मागधीजटालवङ्गं दन्तिवीजतालकं ॥ घिस कर आंजने से भूतावेश मिटता है। त्रिफलाटणं च गन्धकं रसं पृथक् पिचं प्रिये ।
और एरण्ड के तेल के साथ खाने से उदर रोगों का | क्षीरमर्द्धमस्थक गवां विशोषयेदातपे ॥ विनाश होता है, अथवा मकोय के रसके साथ | मूत्रकं गवां विशोष्य भृङ्गराजनीरकम् । सेवन करने से भी उदरामय मिटते हैं । भांगरेकी शोषयेद्विधर्षयनिरन्तरं विवन्धयेत् ॥ जड़ के रस या प्याज (पलाण्डु) के रसके साथ | पाजीमन्थसनिभा वटीमतीवसुन्दराम् । सेवन करने से सूजन, करञ्जवे की जड़ की छालके | अश्विनीकुमार इत्ययं रसो वराङ्गाने । रसके साथ खाने से कृमि रोगों का नाश होता है। त्रिकुटा, त्रिफला, अफ्रीम, शुद्ध मीठातेलिया, नागरवेल के पानके रसके साथ खाने से शक्ति | पीपलामूल, लौंग, जमालगोटा, शुद्ध हरताल, सुहागे बढ़ती है । जीरा और शहद के साथ खाने से | की खील , शुद्ध गन्धक, शुद्ध पारा । सब चीजें अष्ण वात का नाश होता है । नागरवेल के पानमें | ११-१। तोला लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली खाने से स्वर सुन्दर होता है । मुरामांसी के साथ ' बनावे फिर अन्य औषधियों का चूर्ण मिलाकर
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