Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अकारादि-पाक
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समभागानि सर्वाणि करकीकृत्य विपाचयेत् । । शीघ्र नाश होता है। सर्वज्वरान् हरत्याशु सर्वधातुविवर्द्धनम् ॥ [१९०] अष्टकट्वर तैलम् एतदभ्यञ्जनेनाशु क्षयरोग विमुश्चति ॥
(भा. प्र., वृ. यो. त. त. ९२) ___ असगन्ध, बला, लाख प्रत्येक, १-१ सेर पलाभ्यां पिप्पलीमूलानागरादष्टकट्सवरम् । लेकर १६ सेर जलमें पकावे, जब चौथा भाग शेष तैलप्रस्थं समंदना गृध्रस्युरुग्रहापहम् ॥ रहे तो छानलें। फिर दधिमस्तु ६ सेर और सस्नेहदधि सघृतं तर्क कवरमुच्यते । असगन्ध, मनशिल, दारूहल्दी, रेणुका, कूठ, नाग- अष्टकवरतैले च तैलं सार्षपमिष्यते ॥ रमोथा, चन्दन, हल्दी, कुटकी, सोया, लाख, मुर्वा, पिप्पलीमूलशुण्ठयाच प्रत्येक द्विपलं कृतम् ।। मूली, देवदारू, मजीठ, मुल्हैठी, खस और सारिवा पीपलामूल और सोंठ १०-१० तोले लेकर समान भाग मिलित २५ तोले इनका कल्क करके कल्क बनावें, कट्वर (मलाई युक्त दहीसे बनाया उसके साथ १॥ सेर लेलका पाक सिद्ध करे। यह । हुवा घृत युक्त मदा) सरसों का तेल और दही तैल सब प्रकारके ज्वरोंका नाश तथा सब धातुओं | प्रत्येक १ सेर। इनसे पका हुआ तेल गृध्रसी की वृद्धि करता है। इसकी मालिशसे क्षयरोगका | और उरुग्रह रोग का नाश करता है।
अथ अकाराद्यासवारिष्ट प्रकरणम्
व्याख्या आसव और अरिष्ट दोनों मद्यके भेद हैं
__ यथा-यदपकौषधाम्बुभ्यां सिद्ध मद्यं स आसवः । अर्थात्-अपक्क औषधियों और जलसे जो मद्य तैयार किया जाता है उसे आसव कहते हैं।
अरिष्टः क्वाथसिद्धः सात् सम्पको मधुरद्रवैः । औषधियों के क्वाथ और मधुर वस्तु तथा तरल पदार्थोंसे सिद्ध (मद्य) का नाम अरिष्ट है ।* यद्यपि आसव और अरिष्ट मद्य हैं परन्तु इनसे नशा नहीं होता।
निर्माण-विधि पात्र—आसवारिष्ट साधारणतः मिट्टीके पात्रमें ही बनाये जाते हैं, यद्यपि किसी किसी स्थान पर स्वर्ण
पात्र में भी आसव संधान करनेका विधान है। जिस पात्रमें आसव अरिष्ट तैयार करना हो पहिले उसे भीतरसे घी से भले प्रकार चिकना कर देना चाहिये और साथ ही धाय के फूल तथा
लोध के कल्क का लेप करके सुखा लेना चाहिये । एवं उपरोक्त विधि से पात्र तैयार करके * ये परिभाषाएं “पारिभाषा प्रदीप" के अनुसार लिखी गई है परन्तु चरकसुश्रुत में पह विधान नहीं मिलता।
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