Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अकारादि-अञ्जन
(७७)
बीज, करञ्जवे की गिरी, सफ़ेद सरसों । इन्हे गोमूत्रमें | बकरीके दूधमें ७-७ बार यथा क्रम बुझावे । फिर पीमकर वत्ती बनावे । इसे आंखमें आंजने से चौथिया इस शुद्ध सीसेकी सलाई बनवावे । यह सलाई ज्वर, अपस्मार और उन्माद का नाश होता है। आंख में अञ्जन लगानेके लिए अत्युत्तम है । अञ्जन
[२१८] अञ्जन नं. ४ (वृ. नि. र.) काले भागके नीचे आंखके कोये तक करना शिरीषपुष्पं लशुनं शुण्ठी, सिद्धार्थकं वचा। चाहिये । सलाई से आंखके तिल का स्पर्श न होने मञ्जिष्ठा रजनी कृष्णा बस्तमूत्रेण पेपयेत् ॥ | दे। पहिले बाई आंखमें 3जन लगावें और फिर वटी छायासु शुष्काया सा हिता नावनाञ्जने ॥ दाहिनी आंखमें । हेमन्त और शिशिर ऋतुमें अञ्जन
सिरसके फूल, ल्हसन, सोंठ, सफेद सरसों, मध्याह्नमें लगावें ग्रीष्म और शरदकालमें प्रातः तथा बच, मजीठ, हल्दी, पीपल, इनको बकरेके मूत्रमें सायंकाल एवं वसन्त ऋतुमें चाहे जब लगा पीसकर गोलियां बनाकर छायामें सुखावे । इसका खकते हैं। अञ्जन अथवा इसकी नस्यसे उन्माद का नाश
[२२१] कामला हराञ्जनम् (बृ. नि. र.) होता है।
। अञ्जनं कामलार्वानां द्रोणपुष्पीरसं शुभम् । [२१९] अञ्जन नं. ५ नेत्रशुक्र(फुला)
निशागैरिकधात्रीणां चूणसिंप्रकल्पयेत् ॥ नाशक (वृ. नि. र.) । ताप्यं मधूकसारो वा बीजं चाक्षस्य सैन्धवम् ।
___ कामलासे पीड़ित रोगीके लिये गोमाके रस मधुनाञ्जनयोगास्युश्चत्वारः शुक्रनाशनः॥
| अथवा हल्दी, गेरू और आमले के चूर्णका अञ्जन सोना मक्खी, महुवेका सार, बहेड़ेकी मांग | हितकर और सेंधानमक । इनमें से किसी एकको मध [२२२] अमृताञ्जन नं. ७ (र. चि. म.) साथ मिलाकर अञ्जन करने से आंखके फूलेको रसेन्द्रभुजगौ तुल्यौ ताभ्यां द्विगुणमञ्जनम् । आराम होता है।
ईपत्कर्पूरसंयुक्तमञ्जनं तिमिरापहम् ॥ [२२०] अञ्जनशलाका (यो.र.र. चं। नेत्ररोगा.) शुद्ध पारा और सीसा १-१ भाग, इनसे त्रिफलाभृङ्गशुण्ठीनां रसैस्तद्वच्च सर्पिषा। दोगुना सुरमा और थोड़ासा कपूर मिलाकर बनाया गोमूत्रमध्वजाक्षीरः सिक्तो नागः प्रतापितः॥ हुवा सुरमा तिमिर (आंखों के आगे अंधेरा आना) कृष्णभागादधः कुर्यादपाङ्गं यावदञ्जनम्। रोगका नाश करता है। प्रथमं सव्यमञ्जीयात् पश्चाद्दक्षिणमञ्जयेत् ॥ [२२३] अञ्जन नं. ८ (अपामार्गादि) शलाकया साञ्जनया न च तनयनं स्पृशेत् ।। ।
(वृ. नि. र.) हेमन्ते शिशिरेवापि मध्याह्नेऽञ्जनमिष्यते ॥ अपामार्गस्य पत्राणि मरिचानि समानि च । पूर्वाह्न वा ऽपराह्ने वा ग्रीष्मे शरदि चेष्यते। | अश्वस्य लालया पिष्टान्यञ्जनाद्धन्ति सूचिकाम् ।। वर्षास्विनः नात्युष्णे वसन्ते च सदैव हि ॥ | अपामार्ग (चिरचिटे) के पत्ते और कालीमिर्च
सीसेको तपा तपाकर त्रिफला, भांगरा, सोंठ, समान भाग लेकर घोड़े की लारमें पीसकर अञ्जन इनके रस या क्वाथ और घी, गोमूत्र, शहद तथा लगाने से हैंजेका नाश होता है।
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