Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अकारादि-रस
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अथ अकारादि रस प्रकरणम्
ज्ञातव्य रसों की शक्ति अचिन्त्य है, जहां अन्य समस्त औषधियां निष्प्रयोजन सिद्ध होती हैं वहां रस अपने अनन्य प्रभाव से पण्डितों तक को आश्चर्य में डाल देते हैं । रसों के सेवन से वृद्धावस्था का निरोध, रोगोंका बहिष्कार और स्वस्थ शरीरों में शक्ति का संचार होता है। सर्व साधारण का यह विचार कि ४० वर्षकी अवस्थासे पहिले रस सेवन न करना चाहिये, यह सर्वथा निर्मूल और शास्त्र विरुद्ध है, वस्तुतः शास्त्र लेख तथा अनुभव तो कहता है कि जन्म काल से अन्त समय तक हर अवस्था में निर्भय होकर रसोंका सेवन किया जा सकता है। रसों के समान गुणकारी हानि रहित अन्य वस्तु मिलना कठिन हैं, परन्तु वह सब गुण तभी प्राप्त हो सकते हैं कि जब औषधियां शास्त्रोक्त रीति से तैयार की गई हों अन्यथा लाभ के स्थान में हानि हो तो कोइ आश्चर्य की बात नहीं है। इसके अतिरिक्त रसोंमें जो धातु, उपधातु, रन, उपरत्न, उपरस, विष, उपविष आदि व्यवहृत होते हैं उन्हें भी विधिवत् शोधन, मारण करके ही लेना चाहिये चाहे पाठ में शोधन की आज्ञा स्पष्ट रूपेण लिखी हो अथवा इस विषय में मौन धारण किया गया हो।
[२३०] अगन्धखर्परपर्पटी (वृ. नि. र.) , जयन्ती, निर्गुण्डी, त्रिकुटा, वासा, कन्या कुमारी। भागौ रसस्य द्वावेको द्वावेको लोहमस्मनः। | इनके रसकी ७-७ भावना देकर सुखाकर १
लघु पुट दे। यह रस उचित अनुपान के साथ एतद् घृते द्रवीभूतं मृद्वग्नौ कदली दले॥
सेवन करने से समस्त रोगों का नाश करता है पातयेत् गोमयगते तथैवोपरि योजयेत् । ।
और पान तथा तुलसी के काथ के साथ या गो ततः पिष्ट्वा द्रवैरेभिर्मदयेत् सप्तधा पृथक् ॥
मूत्र के साथ सेवन करनेसे श्वास और खांसी का माङ्गीशुण्ठीमुनिवराजयानिर्गुण्डिकाद्रवैः।।
नाश होता है। मात्रा २ माशे । व्यवहारिक व्योषवासककन्याद्रवैः शुष्कैः पुटेल्लघुः॥
मात्राः-२ रती। अगन्ध खर्परो नाम्ना पर्पटीति रसोभवेत् ।
[२३१] अगस्ति सूतराजः (१) (र.से.चि.) सर्वरोगहरः स्वैः स्वैरनुपानैर्द्विमाषतः॥ ।
रसोंऽशुमालीजयपाललोहःताम्बूलपत्रसहितः कासश्वासहरः परः।
शिलाहरिद्रावलयः समांशाः । सकणः सुरसाकाथोऽनुपानं वा सगोजलम् ।।
व्योषाग्निभृङ्गाकनिम्बुनीरैशुद्ध पारा १२ भाग, लोह भस्म १२ भाग,
निर्गुण्डिकारग्वधमूलकाभिः॥ इनको खूब घोट कर फिर थोड़ेसे धीमें मन्दी आग
पृथग्विमोदरनाशनीयम्पर पिघलाकर विधिवत् गोवर केलेके पत्र पर पर्पटी
बल्लद्वयो वा क्रमसात्म्यतो वा। बनावे फिर पीसकर नीचे लिखी चीजोंकी ७-७ कम्पिल्लचूर्णेन समश्च दत्तोभावना दे। भारंगी, सोंठ, अगथिया, त्रिफला, जलोदरादीञ्जयतीह रोगान् ॥
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