Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अंकारादि-रस
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जातीफलं चतुर्थाशं माषमात्रन्तु भक्षयेत् । । [२८५] अतिसारान्तकोरसः अतिसारेभसिंहोऽयं विख्यातो रस सागरे ।
(रसा. सा. अति.) __शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक और अफीम ४-४ तोले सुवर्णसिन्दूररसेन मर्दिता,
और १ तोला जायफल लेकर प्रथम पारे और कर्पूरकृष्टेन रसेन निर्मिता। गन्धककी कज्जली बना कर सबको भांग और धतूरे सूताई कार्त स्वरभस्मपर्पटी, के रसमें घोटे। इसे १ माशे की मात्रा में सेवन
रुणद्धयतीसारप्रवाहमन्तकम् ॥ करमेसे अतिसार का नाश होता है। रससागर स्वर्ण सिन्दूर (षड गुण बलिजारित ) ग्रन्थमें वर्णित यह रस अतिसार रूपी हाथीके लिये १ भाग, रस करिसे निकले हवे पारे और पारेसे सिंहके समान है। (व्यवहारिक मात्रा-४ रत्ती) | आधे स्वर्ण से बनी हुई स्वर्ण पर्पटी १ भाग। २८३] अतिसारवारणरसः दोनोंको मिलाकर घोटकर रक्खे । इसके सेवन से (र. सा. सं. । अति.)
अतिप्रवल अतिसार का नाश होता है। दरदं कृतकपूर मुस्तेन्द्रयवसंयुतम् ।। [२८६] अनिलरसः (रसे. चि. म. अ. ९) सर्वातीसारशमनं खाखसीक्षीरभावितम् ॥ | ताम्रभस्म रसभस्म गन्धकं ___ शुद्ध हिंगुल, पक्वकपूर, नागरमोथा और इन्द्र वत्सनाभमपि तुल्यभागिकम् । जौं ये सब औषधियां समान भाग लेकर पोस्तके दूध वद्वितोपरिमदित पचेत । (पोस्तके डोढेसे जो दूध जैसा द्रव निकलता है) की | यामपादमथ मन्दवहिना॥ सात भावना देवे । इसको यथायोग्य अनुपान और रक्तिकायुगलमानतोऽनिला उचित मात्रानुसार सेवन करनेसे सब प्रकार का शोथपाण्डुघनपंचकशोषकः ॥ अतिसार नष्ट होता है। इसको अतिसारवारण रस ताम्रभस्म, पारद भस्म, शुद्ध गन्धक, और कहते हैं।
शुद्ध वत्सनाभ; इन सबको बराबर लेकर चूर्ण करके [२८४] अतिसारहरो रस: चीतेके काथमें घोट कर मन्दी आंचसे चौथाई प्रहर (र. प्र. सु. अ. ८)
तक पकावे । इसका नाम अनिल रस है इसे दो रालमोचरसनागफेनकं
रत्ती की मात्रा में सेवन करने से सूजन, पाण्डु वत्सकातिविषमेव नागरम्। आदि का नाश होता है। चूर्णितं च मधुनावलेहितं
[२८७] अनिलारिरसः ____ वल्लमात्रमतिसारकं जयेत् ॥
(र. रा. सु., वा. व्या.) राल, मोचरस, अफीम, कुडेकी छाल, अतीस रसेन गन्धं द्विगुणं विमर्य और सोंठ समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे वातारिनिर्गुण्डिरसैदिनकम् । शहदके साथ सेवन करनेसे अतिसारका नाश होता | निवेशयेत्साम्रमये पुटे तत् है। मात्रा २ या ३ रत्ती।
सर्व मुद्रावेष्टय च बालुकाख्ये ॥ * रसराजसुन्दरस्यातिसारदलनोरसः । यंत्रे पुदोमयचूर्णवन्ही
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