Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
(८२)
[२३६] अग्निकुमारो रस: ( ४ ) (बृ. नि. र.)
www.kobatirth.org
भारत-भैषज्य-२
सूतेन गन्धं सह टङ्कणेनसमं विषं योज्यमिह त्रिभागम् । कपर्दशंखावपि तत्र भागौमरीचकैरष्टगुणैर्विमिश्रम् || जम्बीरनीरेण विमर्दनीयं
सिद्धो भवेदग्निकुमार एषः । देयो हि गुञ्जाद्वितयो हि शूलेत्रिदोषजे योजय सानुपानम् ॥
शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध सुहागा १-१ भाग, विष ३ भाग तथा कौड़ी भस्म और शंख भस्म, २-२ भाग, कालीमिर्च ८ भाग । सबको जंबीरी नींबू के रस में खरल करे यह 'अग्निकुमार रस' उचित अनुपानसे २ रत्ती मात्रा में सेवन करनेसे त्रिदोषज शूलका नाश करता है ।
[२३७] अग्निकुमारो रस: (५) ( र. र., रसे. (चि. )
टङ्कणं रसगन्धौ च सम भागंत्रयं विषात् । कपर्दः स्वर्जिकाक्षारो मागधी विश्वभेषजम् ॥ पृथक्पृथक् कर्षमात्रं वसुभागमिहोषणम् । जम्बीराम्लैर्दिनं घृष्टं भवेद ग्रिकुमारकः ॥ विसूचीशूलवातादिवह्निमान्द्यप्रशान्तये |
शुद्ध सुहागा, शुद्धपारा, शुद्ध गन्धक, प्रत्येक १। - १। तोला, शुद्ध विष ३ ||| तोला, कौड़ी भस्म, सज्जीखार, पीपल और सोंठ, ११-१| तोला, काली मिर्च १० तोला लेकर, पहले पारे गन्धककी कज्जली करके सबको जम्बीरी नींबू के रसमें खरल करे। यह 'अग्निकुमार रस' विषूचिका, शूल, अग्निमांद्य और आमाजीर्ण का नाश करता है ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[२३८] अग्निकुमारी रस: ( ६ ) ( र. र.) शुद्धं सूतं विषं गन्धं प्रतिनिष्कत्रयं त्रयम् । मरिचं सर्वतुल्यं स्यात्कण्टकारीफलद्रवैः || मर्द्दयेद्भावयेत्तेन भावनाचैकविशंतिः ॥ देया गुञ्जाद्वयं खादेत्सर्वाजीर्ण प्रशान्तये । विसूचिकां निहन्त्याशु रसोह्यग्निकुमारकः ।
शुद्ध पारा, शुद्ध विष, शुद्ध गन्धक १-११ तोला, काली मिर्च सबके बराबर लेकर प्रथम पारा गन्धककी कज्जली करके सबको कटेलीके फलों के रसकी २१ भावना दे । यह 'अग्निकुमार रस' सर्व प्रकार के अजीर्ण और विसूचिका का नाश करता है । मात्राः - २ रत्ती ।
[२३९] अग्निकुमारो रसः (७)
( र. र., र. र. स.)
शुद्धतं 'विषं गन्धं द्विक्षारं पदुपञ्चकम् । दशकं तुल्यतुल्यांशं भर्जिता विजयानवा || दशानां तुल्यभागानां ततोर्द्ध शिशुमूलकम् । तत्सर्व विजयाद्रावैः शिचित्रकभृङ्गजैः ॥ द्रवैर्दिनद्वेयं मद्यं ततो भाण्डे पचेल्लघु दीप्ताग्निना तु यामेकं शुद्धं पक्कं समुद्धरेत् ।। सप्तधा चार्द्रकद्रावैचित्रकैर्भावयेद् भिषक् ॥ दीपनोऽग्रिकुमारोऽयं निष्कैकं मधुनालिहेत् । प्रतिकर्ष गुडं शुण्ठीमनु स्यादग्निदीपनः ॥
शुद्ध पारद, शुद्ध विष, शुद्ध गन्धक, यवक्षार, सजी क्षार, पांचोनमक । यह दशों चीजें समान भाग, ताजी भुनी हुई भांग सबके बराबर सौंजनेकी जड़की छाल भांगसे आधी लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य पदार्थों का चूर्ण मिलाकर सबको भांग, सौंजने, चीते और भांगरेके रसमें पृथक् पृथक् २-२ पाठान्तर :- १ मृतं २ त्रिक्षारं ३ श्रयं
For Private And Personal Use Only