Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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दूसरे अध्याय में उल्का, अशनि, उत्पातों के स्वरूप, विकार, भय फलों का विवेचन
तीसरे अध्याय में उल्काओं के रूप-रंग, शेर, हाथी, चंद्र, सूर्य, मगर जैसी दृष्ट उल्काओं के नगर व्यक्रि और मौसम, प्रकृति पर प्राप्त विस्तृत फलों का वर्णन है।
चतुर्थ अध्याय में—परिवेषों का वर्णन है। चोकौर, तिकोन, चंद्राकार, एवं वर्षा, दुष्काल सूचक सभी परिवेषों का वर्णन एवं विभिन्न दिशानुसार उनका फल वर्णित है।
पंचम अध्याय में नील, ताम्र, गौर, और उनके आकार भेद ध्वनि और सभी ऋतुओं में उनके फलों का वर्णन है।
षष्ठम अध्याय में बादलों की आकृति, उनके फल, भेद-रथ, ध्वजा, पताका, घंटा, तोरण के फल, चिकने, सफेद बादलों के फल एवं भाला, त्रिशूल धनुष, कवच रूप तथा टेढ़े तिरछे बादलों के फल नगर और नागरिकों पर उनके प्रभाव और तिथि अनुसार उनकी विवेचना है।
सप्तम अध्याय में—सूर्योदय, सूर्यास्त, संध्या, की आकृति एवं मण्डलों के फल तालाब, प्रतिमा जैसी आकृति एवं उनके रंगों के फलों का वर्णन है। किस तिथि नक्षत्र माह वार में उनका विशेष फल कब कैसे मिलेगा।
'अष्टम अध्याय में मेघों के भेद, वर्ण, जाति, वर्षा की सूचना और वर्षाकाल द्वारा नगर, सेना, राजा, कृषि, व्यापार पर होने वाले फल वर्णित हैं मेघों की आकृति शृंगाल शेर जैसी किस-किस को त्रास देगी, दुर्भिक्ष, सुभिक्ष कहाँ होगी?
___ नवम अध्याय में वायु-वर्णन भेद द्वारा जय, पराजय, कथन और दशों दिशाओं में वायु टकराने, तथा रात्रि, मध्याह्न में वायु उत्पत्ति द्वारा, सभी दिशाओं के राजा और प्रजा को प्राप्त फलों का वर्णन है।
दशम अध्याय में वर्ष किस नक्षत्र में, कब कहाँ कैसा फल और उपज देगी यह वर्णन है, वर्षा का प्रमाण एवं बारह महीनों की वर्षा का विस्तृत फलादेश है।
एकादश अध्याय में-गंधर्व नगर का फल है सूर्योदय, एवं दिशा में किस वर्णन